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    देश के इतिहास का बदनुमा दाग था भागलपुर दंगा

    By Edited By:
    Updated: Fri, 16 Oct 2015 02:34 AM (IST)

    - 24 अक्टूबर 1989 को शुरू हुआ दंगा 6 दिसंबर तक चलता रहा था - जस्टिस शमसुल हसन और आरएन प्रसाद कमीशन

    - 24 अक्टूबर 1989 को शुरू हुआ दंगा 6 दिसंबर तक चलता रहा था

    - जस्टिस शमसुल हसन और आरएन प्रसाद कमीशन की रिपोर्ट में 1852 लोग मारे गए थे

    - सरकारी आंकड़े 1070 लोगों की थी

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    कौशल किशोर मिश्र, भागलपुर

    24 अक्टूबर 1989 से 6 दिसंबर 1989 तक चला भागलपुर दंगा देश के इतिहास का बदनुमा दाग था। जिसे याद कर आज भी लोगों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं। दंगा समाप्ति के कुछ दिनों बाद तक तो माहौल बिल्कुल शांत रहा पर उसके बाद 22 और 23 फरवरी 1990 को भी दो घटनाएं घटी थी। तब सरकारी आंकड़े में पहले 1070 फिर बाद में 1161 लोगों के मारे जाने की बात कही गई। जबकि जस्टिस शमसुल हसन और आरएन प्रसाद कमीशन की रिपोर्ट के अनुसार 1852 लोग मारे गए थे। 524 लोग घायल हुए थे। 11 हजार 500 मकान क्षतिग्रस्त हुए थे। 600 पावर लूम, 1700 हैंड लूम क्षतिग्रस्त हुए थे। सरकारी आंकड़े के अनुसार 68 मस्जिद, 30 मजार भी क्षतिग्रस्त हुए थे। दंगे में कुल 48 हजार लोग प्रभावित हुए थे। कई पीड़ितों की जमीन जबरन लिखा ली गई थीं।

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    886 मामले हुए थे दर्ज

    1989 के दंगे में विभिन्न थानों में कुल 886 मामले दर्ज किए गए थे। अनुसंधान के पश्चात 329 मुकदमों में आरोप पत्र दाखिल किया गया था। भागलपुर में 265 और बांका जिले में 64 आरोप पत्र दाखिल किए गए। 329 मामलों से संबंधित मुकदमे का ट्रायल भागलपुर न्यायालय में आरंभ हुआ। इनमें 142 सेशन ट्रायल थे जो बड़े अपराध से संबंधित थे। शेष मजिस्ट्रेट न्यायालय के ट्रायल थे।

    100 केस में आरोपियों की हुई थी रिहाई

    वर्ष 2000 में दंगे से संबंधित 100 केस में साक्ष्य के अभाव में आरोपियों की रिहाई हो गई थी। जुलाई 2000 में सिर्फ तीन दर्जन बड़े सेशन ट्रायल न्यायालय में लंबित थे। 886 केसेस में 557 केसेस की फाइनल रिपोर्ट न्यायालय में तत्कालीन पुलिस ने सौंप दी थी।

    मुख्य आरोपी कामेश्वर यादव भी तब कर दिए गए थे बरी

    दंगा कांड के मुख्य आरोपी हिन्दू महासभा से जुड़े चर्चित कामेश्वर यादव एवं अन्य को साक्ष्य रहते हुए तब बरी कर दिया गया था। बाद में नीतीश कुमार की सरकार आई तो दंगे के ऐसे मामलों की सुध ली गई।

    27 मामले फिर खोले गए

    फरवरी 2006 में नीतीश कुमार की सरकार सत्ता में आई तो 1989 के दंगे से संबंधित 27 केस को फिर से खोला गया। इनमें 19 मामलों में साक्ष्य के आधार पर फिर से आरोप पत्र पुलिस ने दाखिल किया। कामेश्वर यादव को भी दो केस में आरोपी बनाया गया।

    कोतवाली थाना कांड संख्या 77-90, 83-90 में कामेश्वर को सजा

    कोतवाली तातारपुर थाना कांड संख्या 83-90 में जुलाई 2007 को तत्कालीन सप्तम अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश शंभू नाथ मिश्र ने कामेश्वर यादव को उम्र कैद दी थी। इस कांड की सूचक बीबी बलीमा थी।

    कोतवाली तातारपुर थाना कांड संख्या 77-90 में भी कामेश्वर यादव को उम्र कैद दिया गया। तब यहां के छठे अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश अरविंद माधव ने मु. नसीरुद्दीन मियां के बेटे मु. मुन्ना की हत्या मामले में कामेश्वर यादव को उम्र कैद दी थी। तब कचहरी परिसर में कामेश्वर यादव समर्थकों ने खूब हंगामा किया था। मशाकचक दंगा कांड में अभियुक्त मंटू सिंह को तत्कालीन तृतीय अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश झुलानंद झा ने सजा उम्र कैद दी थी।

    346 लोगों को हो चुकी है सजा

    दंगा मामले में अबतक न्यायालय में 346 लोगों को सजा हो चुकी है। इनमें 128 लोगों को उम्र कैद तथा शेष को 10 साल के अंदर तक की सजा मिली है। दंगे से संबंधित एक मुकदमा यहां के वर्तमान तृतीय अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश जनार्दन त्रिपाठी की अदालत में कामेश्वर यादव एवं अन्य से संबंधित सुनवाई को लंबित है। कांड संख्या 248-91 से संबंधित उक्त मामले में 6 अगस्त 2015 को बहस आरंभ होगी।

    दंगा पीड़ितों को मिले मुआवजे

    बिहार सरकार ने दंगा पीड़ितों को पहले ढाई हजार रुपये पेंशन देने का फैसला लिया जो अबतक बढ़कर 5 हजार हो गया है। साढ़े तीन लाख रुपये बतौर मुआवजा जस्टिस एमएन सिंह कमीशन की अनुशंसा पर बिहार सरकार ने दी।

    सरकार ने 17 स्थानों को अवैध कब्जे से कराया अबतक मुक्त

    बिहार सरकार ने दंगे के दौरान जबरन कब्जा किए गए 17 स्थानों को मुक्त कराया। 28 फरवरी 2015 को जस्टिस एमएन सिंह की कमीशन ने सरकार को एक रिपोर्ट दी जिसमें कहा गया है कि 80 बिक्री की गई जमीन जायदाद जो जबरन दंगा पीड़ितों से खरीदी या हथिया ली गई उन्हें डिस्ट्रेस सेल घोषित किया जाए।