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    Bakhri Durga Pandal: इस नवरात्रि बालाजी की थीम पर सजेगा 70 फीट ऊंचा पंडाल, कोलकाता से बुलाए गए हैं कारीगर

    बेगूसराय के बखरी में नवरात्र मेले के लिए भव्य तैयारी की जा रही है। इस वर्ष दुर्गा मंदिर में तिरुपति बालाजी मंदिर की झलक दिखाई देगी। पंडाल 70 फीट ऊंचा होगा और मुख्य बाजार में तोरण द्वार बनाया जा रहा है। मंदिर में वर्षभर शून्य की पूजा होती है और नवरात्र में विशेष आयोजन होते हैं।

    By Umar Khan Edited By: Krishna Parihar Updated: Mon, 25 Aug 2025 05:03 PM (IST)
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    शक्तिपीठ बखरी में इस नवरात्र दिखेगा तिरुपति बालाजी मंदिर की छंटा

    उमर खान, बखरी (बेगूसराय)। तंत्र-मंत्र और जादू टोने की नगरी बखरी नवरात्र मेले के लिए देश-परदेश में जाना जाता है। इस प्रसिद्धि के अनुरूप ही यहां आने वाले भक्तों के लिए भव्य पूजा पंडाल, तोरण द्वार और आकर्षक साज सज्जा की जाती है।

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    पंडाल का थीम देश के प्रसिद्ध और ऐतिहासिक मंदिरों तथा राष्ट्रीय प्रतीकों को बनाया जाता है। इसी कड़ी में बखरी बाजार के मध्य स्थित शक्तिपीठ पुराना दुर्गा मंदिर परिसर में इस वर्ष आंध्र प्रदेश के तिरुपति बालाजी मंदिर की झलक देखने को मिलेगी, जबकि पिछले वर्ष इस मंदिर में केदारनाथ मंदिर की तर्ज पर पूजा पंडाल बना था।

    पिछली झांकी से उत्साहित मंदिर कमेटी ने इस वर्ष तिरुपति बालाजी मंदिर की छंटा के प्रदर्शन का निर्णय लिया है। इसका निर्माण आरंभ है और बांस बल्ले का कार्य लगभग समाप्ति पर है।

    पंडाल निर्माण का काम कोलकाता से आए कारीगर कर रहे हैं। जबकि इसके निर्माण की संपूर्ण जिम्मेदारी फिर लवली टेंट हाउस के संचालक प्यारेलाल और उनके पुत्रों को सौंपा गया है।

    पूजा पंडाल की ऊंचाई लगभग 70 फीट और चौड़ाई 45 फीट होगी। वहीं मुख्य बाजार के पूर्वी भाग में लगभग सौ फीट ऊंचा और 35 फीट चौड़ा भव्य तोरण द्वार बनाया जा रहा है। इस बार मुख्य बाजार में साज सज्जा का क्षेत्र विस्तार कर उसे पश्चिम कर्पूरी चौक से आगे सब्जी मंडी तक बढ़ाया जाएगा।

    मंदिर का इतिहास और विशेषता

    मंदिर में मां दुर्गा की पूजा कब और कैसे आरंभ हुई, इसकी कोई सटीक जानकारी नहीं है। कहा जाता है, यहां उत्तर मध्यकाल से ही माता भगवती की पूजा होती रही है। यहां मांगी गई सभी मनोकामनाएं पूरी होती है। तंत्र-मंत्र के साधक यहां सिद्धि प्राप्त करते हैं।

    मंदिर में वर्षभर शून्य की पूजा की परंपरा है। नवरात्र में प्रतिमा निर्माण की जाती है। प्रतिमा निर्माण गणेश चतुर्थी के दिन से गंगा से लाई गई मिट्टी से होती है। महाअष्टमी के दिन माता को छप्पन भोग लगाए जाते हैं।

    इसी दिन तंत्र-मंत्र के साधक मंदिर पहुंचते और सिद्धि प्राप्त करते हैं। नवरात्र के दसों दिन वाराणसी के अस्सी घाट की तर्ज पर माता की महाआरती वहीं के पुरोहितों द्वारा की जाती है। विजयादशमी के दिन यहां नीलकंठ उड़ाने तथा जतरा निकालने की परंपरा है।

    कहते हैं मंदिर के पुजारी?

    इस मंदिर की महिमा निराली है। यहां नि:संतान दंपतियों की मन्नतें मां दुर्गा पूरी करती हैं। महाअष्टमी की रात मां के हाथ पर फूल दिया जाता है, कुछ समय बाद फूल स्वयं गिर जाता है, जो भक्तों की मुराद पूरी होने का द्योतक होता है। मन्नत पूरी होने के बाद महिलाएं खोईछा भरती हैं। -अमरनाथ चौधरी, मंदिर के पुजारी

    मंदिर परिसर में भक्तों की सुविधा और सुरक्षा का हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी विशेष ध्यान रखा जाएगा। महिला पुरुष भक्तों के लिए अलग-अलग प्रवेश द्वार होंगे। पूरा पंडाल सीसी कैमरे की निगरानी में होगा। चोर उचक्कों और जेब कतरों पर प्रशासन के साथ-साथ मंदिर के स्वयंसेवकों की भी नजर रहेगी। -तारानंद सिंह, सचिव, मंदिर पूजा समिति