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    Papaya Farming : वैज्ञानिक तरीके से करें पपीते की खेती तो एक बीघा में 5 लाख रुपये तक की होगी कमाई

    पपीता की खेती के बारे में जानकारी देते हुए खोदावंदपुर कृषि विज्ञान केंद्र के वरीय वैज्ञानिक व प्रधान डॉ. रामपाल ने कहा कि अगर वैज्ञानिक तरीके से पपीते की खेती की जाए तो एक बीघा में पांच लाख रुपये तक की कमाई हो सकती है।

    By Arun Kumar MishraEdited By: Deepti MishraUpdated: Mon, 01 May 2023 07:25 PM (IST)
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    कृषि वैज्ञानिक डॉ. रामपाल ने बताए पपीता की बेहतर पैदावार के लिए वैज्ञानिक तरीके। तस्‍वीर प्रतीकात्‍मक

    संवाद सूत्र खोदावंदपुर (बेगूसराय): भारत, ब्राजील, इंडोनेशिया, नाइजीरिया और मैक्सिको पपीता उत्पादन में सबसे बड़े उत्पादक राष्ट्र हैं। पपीता जल्द तैयार होने वाली फसल है। इसका फायद यह है कि एक बार लगाने में दो बार फल लगते हैं। अगर खेत में पपीता लगा है, तब भी उसमें फसल बोई जा सकती है। अगर वैज्ञानिक तरीके से पपीते की खेती की जाए तो एक बीघा में पांच लाख रुपये तक की कमाई हो सकती है। पपीता की खेती के बारे में जानकारी देते हुए खोदावंदपुर कृषि विज्ञान केंद्र के वरीय वैज्ञानिक व प्रधान डॉ. रामपाल ने यह कहा।

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    कृषि वैज्ञानिक व प्रधान डॉ. रामपाल ने बताया कि भारत में प्रमुखता से उगाई जाने वाली किस्‍में रेड लेडी उभय लिंगी किस्‍म होती। कुछ किसान सोलो टाइप पपीते की खेती भी कर रहे हैं। उन्‍होंने बताया कि पपीता उगाने के लिए आदर्श तापमान 21 डिग्री सेंटीग्रेड से लेकर 36 डिग्री सेंटीग्रेड सर्वोत्तम होता है। कम तापमान पर इसकी पत्तियों को नुकसान हो सकता है और पौधे मर भी सकते हैं।

    पपीता की खेती के लिए कितना हो मिट्टी का पीएच लेवल

    वैज्ञानिक रामपाल ने बताया कि पपीते की खेती के लिए मिट्टी का पीएच लेवल 6.0 और 7.0 के बीच सबसे अच्छा होता है। जल निकासी की भी पर्याप्‍त व्‍यवस्‍थ्‍ज्ञा होनी चाहिए। अगर पपीते के खेत में 24 घंटे से अधिक समय तक पानी रुक जाता है तो पौधे मर जाता है, उसे बचाना बेहद मुश्किल हो जाता है। इसलिए पपीता की खेती के लिए किसानों को ऊंची जमीन का चयन करना चाहिए, जहां  बारिश का पानी न भरे।

    खेत में पौधे लगाए, सीधे बीज की बुवाई न करें

    डॉ. रामपाल ने बताया कि पपीते की खेती के लिए खेत में ऊंचे मेड़ का निर्माण करना चाहिए। पपीते की खेती करने के लिए पौधे किसी ऊंची क्यारी या गमले या पॉलीथिन बैग में तैयार कर लेने चाहिए। जहां पौध तैयार करें, वहां बीज की बुवाई से पहले क्यारी को 10 फीसदी फार्मेल्डिहाइड के घोल का छिड़काव करके उपचारित करना चाहिए। इसके बाद बीज एक सेमी गहरे और 10 सेमी की दूरी पर बोना चाहिए।

    निराई-गुड़ाई और सिंचाई भी जरूरी

    डॉ. रामपाल ने बताया कि गर्मियों में पपीते की फसल की हर छह से सात दिन में सिंचाई करनी होती है। सिंचाई का पानी पौधे के सीधे संपर्क में नहीं आना चाहिए। लगातार सिंचाई करते रहने से खेत की मिट्टी कड़ी हो जाती है, जिससे पौधों की वृद्धि रुक जाती है। इसलिए जरूरी है कि हर दो-तीन सिंचाई के बाद खेत की हल्की निराई-गुड़ाई की जानी चाहिए। इससे मिट्टी में हवा और पानी का अच्छा संचार बना रहता है।

    कृषि विज्ञान ने बताया कि खड़ी पपीते की फसल में विभिन्न विषाणुजनित बीमारियों की रोकथाम के लिए दो प्रतिशत नीम का तेल, जिसमें 0.5 मिली प्रति लीटर स्टीकर मिलाकर एक-एक महीने के अंतर पर छिड़काव आठवें महीने तक करना चाहिए। उच्च क्वालिटी के फल एवं पपीता के पौधों में रोगरोधी गुण पैदा करने के लिए आवश्यक है कि चार ग्राम यूरिया, चार ग्राम जिंक सल्फेट, 04 ग्राम बोरान, 04 ग्राम लीटर पानी में घोलकर एक-एक महीने के अंतर पर छिड़काव पहले महीने से आठवें महीने तक करना चाहिए।