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    मनिअप्पा सरपंच का संयुक्त परिवार है मिसाल

    By JagranEdited By:
    Updated: Thu, 14 May 2020 05:31 PM (IST)

    बेगूसराय। दूसरों का ख्याल रखना छोटों से विनम्रता पूर्वक व्यवहार करना बहुओं का मान-सम्मान ही किसी परिवार को टूटने से बचा सकती है। यह मानना है मटिहानी प ...और पढ़ें

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    मनिअप्पा सरपंच का संयुक्त परिवार है मिसाल

    बेगूसराय। दूसरों का ख्याल रखना, छोटों से विनम्रता पूर्वक व्यवहार करना, बहुओं का मान-सम्मान ही किसी परिवार को टूटने से बचा सकती है। यह मानना है मटिहानी प्रखंड के मनिअप्पा गांव निवासी स्व. रामाश्रय कुंवर की पत्नी 75 वर्षीय पत्नी राजकुमारी देवी का। राजकुमारी एक बहू के रूप में पूरी जिदगी परिवार को एक धागे में पिरो कर चलीं, आज उनके चार बेटे भी उसी एक धागे में बंधे हुए हैं। पोते-पोतियां जवान हो चुके हैं। मगर फिर भी उनके चारों बेटे का परिवार संयुक्त रूप से चल रहा है। एक ही चूल्हे पर सब का खाना बनता है। घर के हर फैसले वो खुद करती हैं या उनका बड़ा बेटा कृष्ण कुमार करता है। फैसले ऐसे होते हैं कि किसी को अटपटा नहीं लगता, सबके मन को भाता है। जिसके कारण यह परिवार क्षेत्र में एक मिसाल कायम कर चुका है। एक बेटा ग्रामीण चिकित्सक दूसरा है सरपंच

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    राजकुमारी देवी बताती हैं कि उनका बड़ा बेटा कृष्ण कुमार ग्रामीण चिकित्सक है, जबकि दूसरा मुरारी कुमार पंचायत का सरपंच है। तीसरा बेटा कन्हैया कुमार शहर के एक डॉक्टर के साथ काम करता है, जबकि छोटा बेटा श्याम कुमार कानपुर से तकनीकी क्षेत्र में उच्च शिक्षा ग्रहण कर रहा है। तीन बेटों की शादी हो चुकी है। तीनों बहुएं एक साथ 14 लोगों का खाना बनाती हैं। सब साथ बैठकर खाते हैं। किसी विवाद की सूरत में वो खुद कमान संभालती हैं। वहीं, पंचायत के सरपंच मुरारी कुमार बताते हैं कि परिवार को एक धागे में पिरोए रखने में मां के साथ बड़े भैया और भाभी की भूमिका महत्वपूर्ण है। आप इस बात से अंदाजा लगा सकते हैं कि मेरे पिता के निधन के समय मात्र दो बीघा खेत था। बड़े भाई ने उसे पांच बीघा कर दिया। उन्होंने जमीन के एक टुकड़े भी अपने या अपनी पत्नी, बेटे के नाम से नहीं लिखवाई, सारी जमीन मां के नाम से लिखवाई है। हमारे घर आज भी निमंत्रण का कार्ड सिर्फ एक नाम से ही आता है। महिलाओं को मिलता है आराम

    राजकुमारी देवी कहती हैं कि जब आप अलग-अलग किचन संचालित करते हैं तब न सिर्फ आपका खर्च बहुत अधिक हो जाता है, बल्कि महिलाएं काफी तनावग्रस्त हो जाती हैं। साल के 365 दिन उन्हें काम करना होता है। जबकि ज्वाइंट फैमिली में यह बहुत आसान काम हो जाता है, आपके जिम्मे या तो आटा गूंदना आ सकता है, या सब्जी काटना या चावल-दाल बनाना। अगर किसी की तबियत ठीक नहीं है तो उसे काम से रोक दिया जाता है, महिलाओं को आराम करने का मौका मिलता रहता है।