मेहमान पक्षियों के कलरव से गूंज रहा कावर पक्षी विहार
बेगूसराय। ठंड बढ़ते ही कावर झील पक्षी विहार में प्रवासी मेहमान पक्षियों का आगमन शुरू हो गया है। सात समंदर पार से मीलों दूर सफर तय कर रंग-बिरंगे पक्षियों का झील में उतरना शुरू हो गया है। पक्षियों की चहचहाहट व कलरव से लोगों का मन प्रफुल्लित हो रहा है। वहीं झील की रमणीयता बढ़ गई है। रंग-बिरंगे पक्षियों की कलरव से झील की सुंदरता में चार चांद लग गया है।

बेगूसराय। ठंड बढ़ते ही कावर झील पक्षी विहार में प्रवासी मेहमान पक्षियों का आगमन शुरू हो गया है। सात समंदर पार से मीलों दूर सफर तय कर रंग-बिरंगे पक्षियों का झील में उतरना शुरू हो गया है। पक्षियों की चहचहाहट व कलरव से लोगों का मन प्रफुल्लित हो रहा है। वहीं झील की रमणीयता बढ़ गई है। रंग-बिरंगे पक्षियों की कलरव से झील की सुंदरता में चार चांद लग गया है। प्रत्येक वर्ष दर्जनों प्रजाति के पक्षी यहां आते हैं। आनेवाले पक्षियों की संख्या सैकड़ों में नहीं बल्कि कई हजारों में होती है। इस झील में पांच माह के प्रवास के बाद गर्मी शुरू होते ही अपने वतन को लौट जाते हैं। इन मेहमान प्रवासी पक्षियों के आगमन के साथ ही शिकारी सक्रिय हो गए हैं। जाल लगा इन बेजुबानों का शिकार शुरू कर दिया गया है। फिलहाल एक हजार से तीन हजार प्रति पक्षी बेचे जा रहे हैं।
इस सबसे अलग झुंड में उड़ान भरते इन मेहमान पक्षियों के करतब-कलरव देख लोग काफी प्रसन्न हो रहे हैं। वन विभाग स्थानीय पर्यावरण कार्यकर्ताओं के साथ प्रवासी पक्षियों की सुरक्षा को लेकर जागरुकता अभियान आरंभ किए है।
आइए स्वागत है मेहमान
कावर परिक्षेत्र के पांच हेक्टेयर में फैली विस्तृत झील में इस बार मानसून की भारी बारिश के कारण लगभग तीन हजार हेक्टेयर रकबा में पानी भरा है। मुख्य जलग्रहण इलाके महालय, कोचालय, धनफर, नयन महल, कमलसर, गुआवाड़ी, जयमंगलागढ़, श्रीपुर एकंबा आदि जल ग्रहण क्षेत्र में मुख्य रूप से लालसर, दीघौंच, कसुरार, डुमर, निलसर, डार्टर, ब्लैक नेकेड स्टाक, कूट, किगफिशर, मूर हेन, ग्रै हेरान, कामन इगरेट, लार्ज इगरेट, स्नालर इगरेट, लिटिस इगरेट, नाइट हेरान, लिटिल ग्रीब, शावलर, शिकरा, इजिप्शियन वल्चर, बार हेडेड गीज, पर्पल हेरान, टिल, पर्पल हेरान आदि प्रजाति के मेहमान पक्षी ठंडे इलाके वाले देश साइबेरिया, स्विट्जरलैंड, इंडो तिब्बत, वर्मा, थाईलैंड, जापान, रूस, अफगानिस्तान, मंगोलिया, इंडोनेशिया आदि देशों से यहां पहुंचते हैं। प्रत्येक वर्ष तीन चार माह प्रवास कर पुन: अपने इलाके को लौट जाते हैं। इन पक्षियों को कावर का स्वच्छ जल, कम ठंड एवं धान के अवशेष के रूप में चारा की पर्याप्त उपलब्धता के कारण रुकने में आसानी होती है।
धड़ल्ले से हो रहा शिकार
प्रतिबंधित एरिया कावर में पक्षियों के डेरा डालने के साथ ही शिकारी सक्रिय हो गए हैं। फिलहाल एक हजार से तीन हजार रुपये प्रति पक्षी बेचे जा रहे हैं। प्रतिबंधित एरिया एकंबा श्रीपुर इलाके में मिले एक शिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि कम से कम पांच हजार रुपये जोड़ा विदेशी पक्षी बिकता है। सबसे अधिक कीमत लालसर चिड़िया की है। एक लालसर की कीमत 25 सौ से तीन हजार रुपये तक मिल जाता है। बताया कि तीन बजे रात से सात बजे सुबह तक शिकारी इसका शिकार करते हैं।
कहते हैं अधिकारी
इस संबंध में बात करने पर वन प्रमंडल बेगूसराय के रेंजर ने बताया कि दिन-रात प्रतिबंधित एरिया के चारों बगल सिपाहियों के साथ गश्त कर रहे हैं। विगत दिनों में दर्जनों जाल एवं पक्षियों के फंसाने के यंत्रों को भी बरामद किया गया है। शिकारियों, पक्षियों पर 24 घंटे नजर है। जागरुकता अभियान भी चलाया जा रहा है। विस्तृत भौगोलिक क्षेत्र के कारण निगरानी में कुछ कठिनाई मानव बल की कमी के कारण तो हो रही है, परंतु किसी कीमत पर पक्षियों का शिकार नहीं करने दिया जाएगा। वन विभाग पूरी तरह सक्रिय और प्रतिबद्ध है। गंगा के उत्तरी मैदानी भाग में 57 हजार वर्ग हेक्टेयर लो-लैंड में प्रमुख है 15,780 एकड़ ( पांच हजार हेक्टेयर) में फैला कावर झील सह पक्षी विहार। सबसे ज्यादा रकबा छौड़ाही अंचल के अधीन है। बखरी एवं मंझौल अनुमंडल के छौडा़ही, चेरिया बरियारपुर ,खोदावंदपुर, गढ़पुरा, नावकोठी प्रखंड में फैले इस इलाके को 20 जनवरी 1989 को कावर पक्षी बिहार घोषित किया गया। दो जनवरी 1989 को वन मंत्रालय ने कावर को देशभर के 10 रामसर साइट में शामिल किया।
दूसरी तरफ झील के ठीक बीच में टीले पर स्थित है माता जयमंगला जी का मंदिर। वहीं एक किलोमीटर उत्तर में है हरसाई स्तूप। इसके अलावा दर्जन भर स्तूप झील के चारों बगल स्थित हैं। यहां खुदाई में पाल कालीन शिवलिग, बड़ाह मूर्ति, शिव पार्वती की मूर्ति, सिक्के आदी मिले जो बेगूसराय संग्रहालय में सुरक्षित हैं। कावर अधिसूचित पक्षी विहार है। मशहूर पक्षी विशेषज्ञ सलीम अली इसे पक्षियों का स्वर्ग कहा करते थे।
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