Bihar Bhumi: 9 धूर जमीन का केस 54 वर्षों तक लड़ने में बिक गई 9 बीघा जमीन, चौंकाने वाला है ये मामला
चेरिया बरियारपुर में 54 साल पुराने भूमि विवाद में न्यायालय ने फैसला सुनाया। यह मामला बसही पंचायत के भेलवा गांव की नौ धूर जमीन से जुड़ा था। न्यायालय ने नाना से जमीन पाने वाले की तीसरी पीढ़ी को हकदार माना। मुकदमे में एक वकील की तीन पीढ़ियों ने पैरवी की जिसमें प्रतिवादी की काफी जमीन और संपत्ति बिकी। अब उस जमीन पर निर्माण किया जाएगा और परिवार में खुशी है।

जागरण संवाददाता, चेरिया बरियारपुर (बेगूसराय)। विगत 17 मई को मंझौल के अनुमंडल न्यायालय ने भूमि विवाद के 54 वर्ष पुराने मामले में फैसला सुनाया। मामला बसही पंचायत के भेलवा गांव की मात्र नौ धूर जमीन पर मालिकाना हक का था। न्यायालय ने इस रिवीजन अपील में पुराने फैसले को ही बरकरार रखा है। जिसके तहत नाना से जमीन प्राप्त करने वाले व्यक्ति की तीसरी पीढ़ी को ही जमीन का वास्तविक हकदार माना गया है।
चचेरे मामा के दावे को खारिज कर दिया गया। बड़ी बात यह कि इस केस में एक की वकील की तीन पीढ़ियों ने पैरवी की, वहीं उनकी फीस व अन्य खर्च पूरे करने में प्रतिवादी पक्ष की नौ बीघा जमीन, आठ भैंस, चार बैल, सोने एवं चांदी के आभूषण बिक गए। दोनों परिवारों में विवाद न्यायालय तक ही सीमित रहा, कभी मारपीट की नौबत नहीं आई और न ही दोनों के बीच फौजदारी का मुकदमा हुआ।
दोनों पक्ष गांव से एक साथ ही पैरवी करने कोर्ट जाते रहे। बसही पंचायत के पूर्व मुखिया जगदीश प्रसाद यादव (अब स्वर्गीय) भेलवा गांव में ननिहाल की संपत्ति पर बसे थे, स्थानीय भाषा में भगिनमान कहे जाते थे। उनके चार पुत्रों में एकमात्र जीवित पुत्र 80 वर्षीय रामदेव यादव इस फैसले से हर्षित हैं।
बताया कि फैसला मंझौल कोर्ट के एडीजे संजय कुमार सिंह ने सुनाया है। अत्यधिक विलंब हुआ, लेकिन सत्य की जीत हुई है। जिस नौ धूर जमीन की लड़ाई थी, वह अभी भी परती है, अब उसपर कुछ निर्माण किया जाएगा। पोते मंटुन यादव ने कहा कि केस लड़ने में नौ बीघा जमीन बिकने का अफसोस है, परंतु जीत की खुशी है।
तीसरी पीढ़ी के डेढ़ दर्जन पोते लड़ रहे थे केस
बेगूसराय जिला बनने से पहले 1971 में टीएस नंबर 83/71 के तहत नौ धूर जमीन विवाद का मुकदमा दाखिल हुआ था। मामला बसही पंचायत के भेलवा गांव निवासी यदु यादव बनाम जगदीश यादव था।
जगदीश यादव के चार बेटे थे। तीन का निधन हो चुका है। अब डेढ़ दर्जन पोते इस केस की लड़ाई लड़ रहे थे। 1997 में पूर्व मुखिया जगदीश यादव का निधन हो गया।
घर बनाने को लेकर शुरू हुआ था विवाद:
जगदीश यादव को यह जमीन उनके नाना से मिली थी। वे यहीं बस गए थे। उनके चचेरे मामा यदु यादव पहले से खेत जोत रहे थे। विवाद तब शुरू हुआ, जब जगदीश यादव उस जमीन पर घर बनाने लगे। यदु यादव ने निर्माण रोक दिया। मामला कोर्ट में गया। 1979 में कोर्ट का फैसला जगदीश यादव के पक्ष में आया।
तीन महीने बाद विपक्षी पक्ष रिवीजन में चले गए। मुंसिफ अपील 1/1980 के तहत मामला आगे बढ़ा। भूखंड पर पांच खेसरा की जमीन शामिल है। केस में पांच वकीलों ने तीन पीढ़ियों तक पैरवी की। इनमें वर्तमान में अधिवक्ता प्रभात मणि एवं सत्यम कुमार ने केस के प्रतिवादी के पक्ष में बहस कर न्यायालय से फैसला प्राप्त किया।
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