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    Bakhri Election 2025: भाजपा भेद पाएगी भाकपा का अभेद्य किला? 11 बार इस सीट पर रहा वामपंथ का कब्जा

    Updated: Thu, 09 Oct 2025 05:05 PM (IST)

    बखरी विधानसभा क्षेत्र में हमेशा कांटे की टक्कर होती है, जहां वामपंथियों का दबदबा रहा है। भाकपा के सूर्यकांत पासवान वर्तमान विधायक हैं, लेकिन पिछली बार उनकी जीत का अंतर बहुत कम था। भाजपा के रामानंद राम ने भी यहाँ जीत दर्ज की है। अब देखना यह है कि क्या भाजपा इस बार भाकपा के गढ़ को भेद पाती है। यह एनडीए के लिए एक बड़ी चुनौती है।

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    उमर खान, बखरी (बेगूसराय)। 147 बखरी सुरक्षित विधानसभा में हमेशा ही आमने सामने की टक्कर होती है। यह क्षेत्र वामपंथियों के लिए लेनिनग्राद कहलाता है। वर्तमान में भाकपा के सूर्यकांत पासवान यहां से विधायक हैं। ऐसे भी अब तक के 17 चुनावों में 11 बार यह सीट वामपंथियों के पास रही है।

    बखरी विधानसभा के चुनावों का सफर 1951-52 में हुए पहले आम चुनाव से आरंभ होता है। तब देश में कांग्रेस के एक दलीय प्रभुत्व के दौर में शिवव्रत नारायण सिंह को बखरी के पहले विधायक बनने का गौरव प्राप्त हुआ। शासन में उनके अख्खर रवैये के कारण उन्हें डिक्टेटर के नाम से जाना जाता था।

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    तब इनके इस स्वभाव से आहत बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह ने इस सीट को बड़ी चालाकी से अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित करा दिया। 1957 में बदली परिस्थिति में मेदिनी पासवान को कांग्रेस का टिकट मिला और वे जीते भी। 1962 में भी मेदिनी पासवान ही कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े और बाजी मारी।

    1962 में चीन तथा 1965 में पाकिस्तान के भारत पर आक्रमण के बाद देश में राजनीतिक परिवर्तन का दौर आरंभ हुआ। इसका नतीजा 1967 के चुनाव में देखने को मिला और पहली बार बखरी में सीपीआइ (मार्क्सवादी) के उम्मीदवार युगल किशोर शर्मा को जीत मिली। 1969 के चुनाव में भी जनता ने युगल किशोर शर्मा को ही जीत का ताज पहनाया। इस बीच चीन के समर्थन और विरोध को लेकर वामपंथ में फूट पड़ गई।

    इधर बखरी की सामाजिक और आर्थिक विषमताओं का लाभ उठाकर यहां पहले से पैर पसार चुके वामपंथ की इस धरती पर भाकपा ने अपनी पकड़ मजबूत बनाते हुए उनके उम्मीदवार रामचंद्र पासवान ने 1972 में जीत दर्ज की और उनकी यह जीत 1977 और 1980 के चुनाव तक जारी रही।

    1985 में भाकपा ने अपने साधारण कार्यकर्ता रामविलास पासवान को मैदान में उतारा और वे जीते। उनकी जीत का यह सिलसिला अगले 1990 और 1995 में भी जारी रहा। लेकिन 2000 के चुनाव में उनका यह मिथक टूटा और आरजेडी के रामानंद राम ने भाकपा को धूल चटा दी। परंतु अगले 2005 के फरवरी और नवंबर में हुए दो चुनाव में भाकपा के रामविनोद पासवान ने जीतकर अपनी हार का बदला ले लिया।

    हालांकि इस चुनाव में भाजपा के टिकट पर मैदान में उतरे अयोध्या में राम मंदिर की पहली ईंट रखनेवाले कामेश्वर चौपाल का प्रदर्शन भी अच्छा रहा। उनकी रखी उस नींव पर ही राजद से पाला बदलकर मैदान में उतरे रामानंद राम ने 2010 में पहली बार बखरी में भाजपा का कमल खिलाया। लेकिन 2015 के राजद के उपेंद्र पासवान ने भाकपा और भाजपा के बीच से सीट निकालने में सफल रहे।

    2020 में महागठबंधन की राजनीति में यह सीट सीपीआइ के खाते में चली गई। सीपीआइ के टिकट पर सूर्यकांत पासवान महागठबंधन के उम्मीदवार बने और जीते। लेकिन उनके हार-जीत का अंतर महज 777 मतों का रहा। उन्हें एनडीए के भाजपा प्रत्याशी रामशंकर पासवान से कड़ी टक्कर मिली। चुनाव में सूर्यकांत पासवान को 72177 जबकि रामशंकर को 71400 मत मिले थे। अब देखना यह होगा कि काफी कम अंतर से मिली हार को भाजपा अबकी जीत में बदलती है कि नहीं। यह उसके और एनडीए के दलों के लिए एक चुनौती होगी।

    1952 से अब तक का चुनावी सफर

    वर्ष नाम पार्टी
    1952 शिवव्रत नारायण सिंह कांग्रेस
    1957-1962 मेदिनी पासवान कांग्रेस
    1967-1969 युगल किशोर शर्मा सीपीआई (एम)
    1972, 77 एवं 80 रामचंद्र पासवान सीपीआई
    1985, 90 और 95 रामविनोद पासवान सीपीआई
    2000 रामानंद राम राजद
    2005 रामविनोद पासवान सीपीआई
    2010 रामानंद राम भाजपा
    2015 उपेंद्र पासवान राजद
    2020 सूर्यकांत पासवान सीपीआई