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    आस्था का प्रतिक है बिहार का शक्तिपीठ तिलडीहा दुर्गा मंदिर,40 से 45 हजार पाठा की दी जाती है बलि

    Updated: Mon, 22 Sep 2025 02:43 PM (IST)

    बांका जिले के छत्रहार पंचायत में स्थित तिलडीहा दुर्गा मंदिर एक प्रसिद्ध शक्तिपीठ है। यहाँ भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होने की मान्यता है। मंदिर की स्थापना 1603 में हरबल्लव दास ने की थी। यहाँ कृष्ण काली दुर्गा समेत 13 मूर्तियां हैं। दशहरा में विशेष पूजा होती है जिसमें बिहार बंगाल झारखंड से श्रद्धालु आते हैं।

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    आस्था का प्रतिक है शक्तिपीठ तिलडीहा दुर्गा मंदिर

    संवाद सहयोगी, शंभुगंज (बांका)। बांका जिले के छत्रहार पंचायत में स्थित तिलडीहा दुर्गा मंदिर अपने आप में एक प्रमुख शक्तिपीठ के रूप में जाना जाता है। प्रखंड मुख्यालय से छह किलोमीटर और तारापुर से दो किलोमीटर दूर, बदुआ नदी के पूर्वी तट पर स्थित यह मंदिर श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है। यहां आने वाले भक्तों की मुरादें पूरी होने का विश्वास है, जिसके कारण प्रतिदिन मंदिर में भक्तों की भीड़ रहती है।

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    मंदिर का इतिहास

    मंदिर की स्थापना 1603 में राड़ी कायस्थ परिवार के हरबल्लव दास द्वारा की गई थी। पश्चिम बंगाल के ग्राम दालपोलसा, जिला नदियापुरम के निवासी हरबल्लव दास को स्वप्न में मंदिर स्थापना की प्रेरणा मिली। उस समय यह क्षेत्र घनघोर जंगल था। आज हरिवंशपुर नामक स्थान उन्हीं के नाम पर जाना जाता है। मंदिर स्थापना के समय हरबल्लव दास ने खडग, शंख और अर्घा लाए थे, जिनका उपयोग आज भी पूजा में पहली और अंतिम बलि देने के लिए किया जाता है।

    वर्तमान में मंदिर प्रबंध समिति के सचिव शंभुनाथ दास हैं। दशहरा के अवसर पर यहां 30 से 35 हजार श्रद्धालु शामिल होते हैं और पूरे पूजा काल में लगभग 40 से 45 हजार पाठा की बलि दी जाती है।

    मंदिर की विशेषता

    तिलडीहा मंदिर की खास बात यह है कि एक ही मेढ़ पर कृष्ण, काली, दुर्गा, महिषासुर, शिव-पार्वती, गणेश-कार्तिक सहित 13 मूर्तियां बनाई जाती हैं। यही कारण है कि इसे श्रीकृष्ण काली भगवती के नाम से भी जाना जाता है। प्रथम पूजा में 108 बेलपत्र से आहुति दी जाती है और पाठा की बलि होती है। चतुर्थ पूजा में केले के वृक्ष और पान के पत्तों की माला के साथ दो कोहड़े की बलि दी जाती है।

    सप्तमी पूजा में प्रतिमा का श्रृंगार किया जाता है और रात में मेढ़पति एवं पंडित के साथ मां की आंखों का पुतली बनती है। स्थापना काल से ही पूजा बंग्ला रीति-रिवाज के अनुसार होती रही है।

    दशहरा मेला बिहार, बंगाल और झारखंड से आने वाले भक्तों के लिए आकर्षण का केंद्र है। मेला शांतिपूर्ण संपन्न कराने में हरिवंशपुर, तिलडीहा, छत्रहार, रामचुआ समेत क्षेत्रवासियों का सहयोग रहता है, जबकि विधि व्यवस्था में जिला प्रशासन सक्रिय भूमिका निभाता है।

    मां की महिमा अपरंपार है। मंदिर आने वाले भक्तों की मुरादें पूर्ण होती है। यह कारण है कि दिन-प्रतिदिन श्रद्धालुओ की भीड़ होता है। -  श्याम आचार्य, प्रधान पुजारी

    स्थापना काल से ही बंग्ला रीति रिवाज से पूजा होती है। दशहरा मेला शांतिपूर्ण संपन्न कराने में हरिवंशपुर के अलावा तिलडीहा ,छत्रहार,रामचुआ सहित क्षेत्रवासियों का भरपुर सहयोग रहता है। विधि व्यवस्था में जिला प्रशासन सक्रिय रहते हैं। -  शंभुनाथ दास, सचिव