बांका की 5 सीटों पर 73 साल में केवल चार महिला विधायक, क्या आगामी चुनाव में महिलाओं को मिलेगा नेतृत्व
बांका में 73 सालों में केवल चार महिलाओं को पांच बार विधायक बनने का अवसर मिला है। पहली महिला विधायक विंध्यवासिनी देवी 1957 में कांग्रेस से बांका विधानसभा सीट से जीतीं। 1972 में शकुंतला देवी बेलहर से विधायक बनीं। 2015 में स्वीटी सीमा हेम्ब्रम और 2020 में डॉ. निक्की हेम्ब्रम विधायक बनीं। अमरपुर और धोरैया में कोई महिला विधायक नहीं बनीं।

राहुल कुमार, बांका। आधी आबादी को अब अगले संसदीय चुनाव से एक तिहाई सुरक्षित सीटें मिलेंगी। खासकर बिहार में महिला आरक्षण का ढोल पिछले डेढ़ दो दशक से खूब पीटा जा रहा है।
पंचायतों में आधी आबादी का डंका भी खूब बज रहा है। मगर विधायकी में बांका की आधी आबादी काफी पीछे छूटी हुई है। 73 साल के संसदीय इतिहास में बांका की पांच सीटों पर केवल चार महिला को पांच बार विधायक बनने का ही अवसर मिला है।
पहली बार 1957 में बांका विधानसभा सीट से कांग्रेस की विंध्यवासिनी देवी विधायक बनीं थी। उन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी ब्रजमोहन सिंह को हराकर का चुनाव जीता था। तब 10 हजार से भी कम वोट लाकर विंध्यवासिनी देवी बांका जिला या तब के बांका संसदीय सीट क्षेत्र की पहली महिला विधायक बनीं थी।
इस चुनाव के बाद विंध्यावासिनी देवी 1962 के विधानसभा चुनाव में ब्रजमोहन सिंह ने चुनाव हार गईं। मगर साल भर बाद ही 1963 में हुए उपचुनाव में ब्रजमोहन सिंह को हरा कर विंध्यवासिनी फिर विधायक बन गईं।
चौथी लड़ाई में 1967 के विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस ने इन्हें प्रत्याशी बनाया। लेकिन तब जनसंघ के बाबूलाल मंडल से वह हार गईं। अब इनको जानने वाले भी नहीं हैं। बांका की पहली महिला नेत्री विंध्यवासिनी देवी गुमनामी की शिकार हो गई हैं।
इसके बाद बेलहर से शकुंतला देवी कांग्रेस पार्टी से दूसरी महिला विधायक बनीं। शकुंतला देवी 1972 में बेलहर की विधायक बनीं। कांग्रेस पार्टी ने 1967 में भी बेलहर से प्रत्याशी बनाकर उन्हें मैदान में उतारा था, मगर वह सोशलिस्ट नेता चतुर्भुज मंडल से चुनाव हार गए थे।
इसके बाद करीब चार दशक तक बांका में महिला विधायकों का सूखा रहा। 2015 में राजद ने स्वीटी सीमा हेम्ब्रम को अनुसूचित जनजाति सुरक्षित सीट से अपना प्रत्याशी बनाया। तब उनके खिलाफ भाजपा ने भी महिला उम्मीदवार डॉ. निक्की हेम्ब्रम को मैदान में उतारा।
मगर बाजी स्वीटी सीमा के हाथ लगी। वह चुनाव जीतकर बांका की तीसरी महिला विधायक बनीं। मगर 2020 यानी पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा की डॉ. निक्की हेम्ब्रम ने बाजी मारकर चौथी महिला विधायक बनने का इतिहास अपने नाम किया।
इस सीट पर नहीं रही महिला विधायक
अमरपुर और धोरैया विधानसभा सीट पर कभी कोई महिला विधायक नहीं रहीं। बल्कि, कभी किसी महिला ने इस सीट पर दूसरा स्थान भी हासिल नहीं किया। आगामी चुनाव में भी कटोरिया को छोड़कर और किसी सीट से कोई महिला दावेदार नहीं दिख रही हैं।
पूर्व सांसद व तब के विधायक जनार्दन यादव बताते हैं कि आजादी के बाद बांका में कृति सिंह सबसे ईमानदार व सच्चे कांग्रेसी थे। कृति बाबू नारायणपुर गांव के रहने वाले थे। बांका के पहले विधायक राघवेंद्र नारायण सिंह जीते थे।
उनके निधन के बाद दूसरे विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को टिकट के प्रत्याशी की खोज थी। पार्टी ने कृति सिंह को प्रत्याशी बनाने क प्रयास किया। लेकिन वे तैयार नहीं हुए, तब उनकी बेटी विंध्यवासिनी देवी को टिकट मिला और वह चुनाव जीतीं।
अब उनका परिवार कहां है, इसका पता उन्हें भी नहीं है। चंद्रशेखर सिंह और ठाकुर कामख्या सिंह से पहले विंध्यवासिनी देवी बांका की बड़ी कांग्रेस नेत्री रहीं।
कब कौन किस दल से रहीं कहां की महिला विधायक
वर्ष | उम्मीदवार का नाम | पार्टी | विधानसभा क्षेत्र |
---|---|---|---|
1957 | विंध्यवासिनी देवी | कांग्रेस | बांका विधानसभा |
1963 (उपचुनाव) | विंध्यवासिनी देवी | कांग्रेस | बांका विधानसभा |
1972 | शकुंतला देवी | कांग्रेस | बेलहर विधानसभा |
2015 | स्वीटी सीमा हेम्ब्रम | राजद | कटोरिया विधानसभा |
2020 | डॉ. निक्की हेम्ब्रम | भाजपा | कटोरिया विधानसभा |
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