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Bihar: यहां होली में रंग डाला तो बुरा मान जाएंगे लोग, एक लाख से अधिक की आबादी बिना रंगों के खेलती है त्योहार

बिहार के बांका जिले में एक गांव ऐसा है जहां के लोग रंग की जगह पानी डालकर होली खेलते हैं। पानी भी बिल्कुल सादा। अगर आपने किसी आदिवासी पर रंग डाल दिया तो पूरा समाज इसे बुरा मान जाता है।

By Shekhar Kumar SinghEdited By: Aditi ChoudharyPublished: Tue, 07 Mar 2023 12:12 PM (IST)Updated: Tue, 07 Mar 2023 12:12 PM (IST)
Bihar: यहां होली में रंग डाला तो बुरा मान जाएंगे लोग, एक लाख से अधिक की आबादी बिना रंगों के खेलती है त्योहार
बौंसी शोभापाथर में पानी की होली खेलते आदिवासी महिला व बच्चे

शंकर मित्रा, संवाद सूत्र, बौंसी (बांका)। होली रंगों का त्योहार है। पूरे देश में इस दिन लोग जमकर एक दूसरे पर रंग और अबीर डालते हैं। हालांकि, बांका जिले की बड़ी आबादी परंपरा के रंगों से दूर है। बौंसी, कटोरिया, बेलहर, चांदन एवं फुल्लीडुमर प्रखंड में फैली आदिवासियों की एक लाख से अधिक की आबादी को होली में रंग से नफरत है।

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यहां के लोग रंग की जगह पानी डालकर होली खेलते हैं। पानी भी बिल्कुल सादा। अगर आपने किसी आदिवासी पर रंग डाल दिया तो पूरा समाज इसे बुरा मान जाता है। आदिवासी समाज के नेता बासुकी ने कहा कि खासकर अगर आपने किसी लड़की या महिला पर रंग डाल दिया तो समाज कड़ी सजा का प्रविधान करता है। होली के इस रंग पर आधारित खबर दी जाएगी।

आदिवासियों की सांस्कृतिक एवं धार्मिक मान्यता है कि जलजला से विनष्ट हुए प्राणियों में जाहेर ऐरा देवी की अमृत वर्षा से आदिवासियों को नवजीवन की प्राप्ति हुई है। तभी से पूजा-अर्चना के साथ संताल आदिवासियों के बहापर्व में पानी की होली खेलने की परंपरा है। पूर्व प्रमुख सह मांझी परगना के बाबूराम बास्के ने संताल आदिवासी जनजातियों के पानी की होली खेलने की बात कही है।

कहा कि प्राचीन काल में जंगल में निवास करने वाले वन क्षेत्र के अंचलों में अग्नि वर्षा से हाहाकार मचने से मानव, पशु-पक्षी सभी विनष्ट होने लगे थे। इस तरह प्राणियों के विलुप्त होने की संभावनाओं पर जनजीवन की मंगल कामनाओं को लेकर जाहेर ऐरा देवी(आदिवासियों का देवता ) की पूजा-अर्चना की गई। देवी ने प्रसन्न होकर अमृत वर्षा की और विलुप्त हो रहे प्राणियों में नवजीवन का संचार हुआ।

आदिवासी मान्यताओं के अनुसार होली के चार रोज पूर्व फाल्गुन शुक्ल रंगभरी एकादशी से दो-तीन दिनों तक बहापर्व मनाते हैं। पूजा-अर्चना के बाद गांव की आदिवासी पुरुष-महिलाओं ने हर्षोल्लास से नाचते-गाते पानी की होली खेलते हैं। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। केमिकल युक्त रंगों से जहां लोगों के चेहरे पर बुरा प्रभाव पड़ता है। ऐसी स्थिति में पानी की होली मानव जीवन के लिए हितकर भी है।


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