मृदंग का सुर-ताल मिलाने वाला है बदहाल
बांका। फागुन मास आते ही होली की खुमारी चढ़ने लगती है। ऐसे में ढोलक, मृदंग का सुर-ताल ि
बांका। फागुन मास आते ही होली की खुमारी चढ़ने लगती है। ऐसे में ढोलक, मृदंग का सुर-ताल मिलाने वाले मोची आज भी बदहाली की ¨जदगी जीने को मजबूर है। पारंपरिक तरीके से पशुओं के खाल को शुद्ध कर ढोलक, मृदंग, नगाड़ा, डुग्गी-तबला बनाने वाले मोची को दो वक्त रोटी के लाले हैं। मगर होली के चंद बचे रसिया जो ढोल-नागाड़े नाल के प्रेमी हैं, उनसे इन परिवारों को होली पर्व में एक उम्मीद बनी रहती है। और यही वजह है कि इन परिवारों को होली पर्व का बेसब्री से इंतजार रहता है।
डीजे ने छीना रोजगार
होली में भी गाए जाने वाले गीतों की जगह अब गांवों में डीजे ने ले लिया है। इसलिए होली में फगुआ गाने वाले लोगों की संख्या में काफी कमी आने से अब ढोल नगाड़े ठीक कराने के लिए मोचियों के यहां कतार नहीं लगती।
इस बाबत नारायणुर गांव के कपिल दास, छब्बू दास, पांचू दास बताते हैं पिता के जमाने तक तो सब ठीक था। पर अब परदेश कमाना मजबूरी हो गया है।
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सरगुन का अब भी है जलवा
बाराहाट भेंड़ामोर के सरगुन दास का जलवा अब भी बरकरार है। नाल, डुग्गी तबला एवं मृदंग के निपुन इस कारीगर के यहां कभी काम की कमी नहीं रहती है। शास्त्रीय संगीत के अनुरूप वाद्य यंत्रों की मरम्मती के लिए यहां भागलपुर, गोंड्डा,जगदीशपुर, नोनीहाट, बांका, देवघर, मधुपुर सहित कई जिलों से लोग आते हैं। उसके पुत्र धोखा दास भी अच्छे कारीगर माने जाते हैं। सरगुन दास बताते हैं कि मैटेरियल में काफी महंगाई आने के कारण मजदूरी पर असर पड़ने लगा है। अभी नाल का रेट 550, डुग्गी-तबला एक हजार, ढोलक चार सौ, मृदंग डेढ़ हजार, नगाड़ा एक हजार साइ•ा के अनुसार दर निर्धारित है।
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