सूप के कारीगरों को मजदूरी पर आफत
बांका। महंगाई के दौर में सूप बनाने वाले कारीगरों को मजदूरी पर भी आफत है। ...और पढ़ें

बांका। महंगाई के दौर में सूप बनाने वाले कारीगरों को मजदूरी पर भी आफत है। पुश्तैनी धंधे को जीवित रखने के लिए आज भी कुरमा के दर्जन भर महादलित परिवार इस धंधे में लगे हैं।
सुभाष चंद्र मोहली, बिनोद मोहली, कैलाश मोहली, रंजीत मोहली, बीरू मोहली ने बताया कि महंगाई के कारण बांस की कीमत भी बढ़ती जा रही है। अभी एक बंस 225 रुपये में मिलता है।
अभी गोड्डा के चलना और डमरू गांव से बांस ला रहे हैं। मेहनत मजदूरी के नाम पर फूटी कौड़ी भी नहीं बचती है। एक सूप तैयार करने में 35 से 40 रुपये लागत आता है। दो कारीगर मिलकर एक दिन में आधा दर्जन सूप तैयार करते हैं। जिसकी कीमत बाजार में 120 से 140 रुपये जोड़ा होती है।
रोजगार को जीवित रख बच्चों की पढ़ाई-लिखाई और परिवार का भरण पोषण करना मुश्किल होता है। कोई काम नहीं देख गरीबी से लड़ने के लिए इस काम से जुड़े हुए हैं। स्थानीय हाट कुरमा, धोरैया, सन्हौला के अलावा झारखंड के बसंतराय में बेचकर स्वजनों का भरण पोषण करते हैं। उनकी पूरी बस्ती झुग्गी-झोपड़ी में रहकर दिन गुजार रहे हैं। किसी को अब तक सरकारी आवास तक नहीं मिला। सुभाष ने बताया कि कुछ साल पहले तक बाहर से व्यापारी कुरमा गांव आते थे। यहां से सूप-डलिया दूर के बाजार तक ले जाते थे। अब स्थानीय व्यापारी मनमर्जी करते हैं। जिससे रोजी-रोटी पर भी आफत है।

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