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    इतिहास, आस्‍था और पर्यटन का अनूठा संगम है बिहार का बांका, डैम-जगंल-पहाड़ का लुत्‍फ उठाने ऐसे पहुंचे यहां

    By Jagran NewsEdited By: Prateek Jain
    Updated: Fri, 08 Sep 2023 06:23 PM (IST)

    बिहार पर्यटन की संभावनाओं से भरपूर प्रदेश है। यहां इतिहास और आस्था के साथ वन्यजीव पर्यटन के कई केंद्र हैं। ऐसा ही एक अनूठा लेकिन कम लोकप्रिय पर्यटन स्थल है बांका का मंदार पर्वत। यहां प्रकृति और अध्यात्म का अद्भुत संगम तो दिखता ही है साथ ही विपुल जलराशि के बीच बने द्वीप की सैर भी अलग ही अनुभव कराती है।

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    बांका: पापहरणी सरोवर और सामने मंदार पर्वत। फोटो- जागरण

    अभिषेक कुमार, बांका: बिहार पर्यटन की संभावनाओं से भरपूर प्रदेश है। यहां इतिहास और आस्था के साथ वन्यजीव पर्यटन के कई केंद्र हैं। ऐसा ही एक अनूठा, लेकिन कम लोकप्रिय पर्यटन स्थल है बांका का मंदार पर्वत।

    यहां प्रकृति और अध्यात्म का अद्भुत संगम तो दिखता ही है, साथ ही विपुल जलराशि के बीच बने द्वीप की सैर भी अलग ही अनुभव कराती है।

    सागर मंथन की पौराणिक गाथा का गान करते इस पर्वतीय क्षेत्र में मन कुछ यूं रमता है कि शहरी भाग-दौड़ की सारी थकान मिट जाती है और शरीर में ऊर्जा का नया संचार होता है। यहां डैम, रोपवे और बोटिंग का भी लुत्फ ले सकते हैं। आस-पास भी कई महत्वपूर्ण स्थल हैं। 

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    ऐसा है मंदार पर्वत

    भागलपुर जिला मुख्यालय से करीब 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित मंदार पर्वत बांका का ऐतिहासिक और धार्मिक पर्यटक स्थल है। हिंदुओं के लिए यह पर्वत देवताओं का पवित्र आश्रय है तो जैन धर्मावलंबी इसे भगवान वासुपूज्य से जुड़ा मानते हैं। 

    आदिवासी समुदाय के सफा होड़ भी मकर संक्रांति के समय यहां अपना पवित्र अनुष्ठान पूरा करने आते हैं। मकर संक्राति पर यहां मेला भी लगता है। वासुकी नाग की मथानी बनाकर इस पर्वत से समुद्र मंथन किया गया था। 

    पर्वत के चारों ओर यह निशान आज भी देखा जा सकता है। मंदार  पर्वत  की तलहटी  में  स्थित पापहरणी सरोवर  में  हाल  के दिनों  में बोटिंग भी शुरू की गई है। मंदार पर्वत पर बिहार की दूसरी रोपवे सेवा शुरू की गई है।

    फोटो- मंदार पर्वत पर जाने के लिए रोपवे

    मंदार की चट्टानों पर उत्कीर्ण सैकड़ों प्राचीन मूर्तियां, गुफाएं, ध्वस्त चैत्य और मंदिर धार्मिक और सांस्कृतिक गौरव के साक्षी हैं। मंदार की ऐतिहासिक और धार्मिक महत्ता से पर्यटकों को अवगत कराने के लिए यहां पर व्याख्यान भवन है। यहां आप प्रोजेक्टर के माध्यम से पूरे मंदार क्षेत्र के बारे में हर चीज जान सकते हैं।

    मंदार पर्वत पर हुआ करता था मधुसूदन मंदिर

    आज मंदार के पास बौंसी में भगवान मधुसूदन की प्रतिमा स्थापित है। कभी भगवान मधुसूदन का मंदिर मंदार पर्वत पर हुआ करता था। 

    मुगल आक्रांता के आक्रमण के समय लोग भगवान मधुसूदन की प्रतिमा को लेकर बौंसी आ गए। यहां मंदिर बनाकर भगवान मधुसूदन की पूजा-अर्चना की जाती है। 14 जनवरी के अवसर पर मंदार पर्वत पर भ्रमण करने के लिए मधुसूदन भगवान को लाया जाता है।

    फोटो- भगवान मधुसूदन का मंदिर।

    किंवदंती है कि जब भगवान विष्णु ने मधु दैत्य का वध किया था तो उसने लोगों के कल्याण के लिए भगवान को धरती पर स्थापित होने का वरदान मांगा था। तब भगवान विष्णु यहां मधुसूदन के रूप में स्थापित हुए। ओडिशा के पुरी की तरह मधुसूदन मंदिर से भी रथ यात्रा निकाली जाती है। इसमें हजारों की तादाद में श्रद्धालु शामिल होते हैं।

    भगवान मधुसूदन की रथयात्रा साल में दो बार निकलती है। पहली बार 14 जनवरी को गरुड़ रथ पर मंदार के लिए एवं दूसरी बार आषाढ़ शुक्ल द्वितीया तिथि को नगर भ्रमण के लिए मंदिर से निकलती है। 

    मंदार पर्वत पर सीता कुंड, शंख कुंड व आकाशगंगा नामक कुंड भी है। इनमें पूरे साल पानी रहता है। शंख कुंड में आज भी एक विशालकाय शंख है।

    स्थानीय मान्यता है कि यह वही पांचजन्य शंख है, जिसके माध्यम से भगवान शिव ने समुद्र से निकले हलाहल का पान किया था, जब भी कुंड की सफाई की जाती है तो यह शंख दिखाई पड़ता है। 

    पर्वत के मध्य में भगवान नरसिंह एक गुफा में हैं। पर्वत शिखर पर राम झरोखा, जैन मंदिर, सुखदेव गुफा है। पर्वत शिखर पर काशी विश्वनाथ महादेव का मंदिर है। कुछ  दिन पूर्व बिहार के राज्यपाल के द्वारा मंदिर का शिलान्यास किया गया था।

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    जहां जलते थे एक लाख दीये 

    लक्षदीप मंदिर यानी लखदीपा मंदिर। इस मंदिर का इतिहास करीब डेढ़ हजार साल पुराना है। बताया जाता है कि पुरातन काल में लखदीपा मंदिर काफी भव्य होता था। इसमें दीपावली की रात को एक लाख दीप जलाने की परंपरा रही है।

    इतिहासकार मनोज मिश्रा बताते हैं कि सातवीं सदी से आठवीं सदी के बीच पाल वंश के प्रथम शासक राजा धर्मपाल द्वारा मंदिर  बनवाया  गया  था। 

    आज भी यहां पर दीपावली पर दीये जलाए जाते हैं। काला पहाड़ ने इस मंदिर तो तोड़ दिया था। बड़ी संख्या में पर्यटक हर साल इस मंदिर के अवशेष को देखने के लिए आते हैं। इसके साथ-साथ आप मंदार के पास स्थित कामधेनु मंदिर का भी भ्रमण कर सकते हैं। 

    बोटिंग संग आइलैंड पर बैठकर ले सकते हैं चाय की चुस्की

    मंदार के बाद सबसे अधिक खूबसूरत पर्यटक स्थल की बात की जाए तो ओढ़नी डैम का नाम आता है। आप यहां पर आकर बोटिंग के साथ आइलैंड पर बैठकर चाय की चुस्की भी ले सकते हैं। दो तरफ पहाड़ी से घिरे ओढ़नी डैम में आप वाटर स्कूटर से लेकर मोटर बोट का आनंद उठा सकते हैं। 

    इसके साथ ही डैम के बीच में आइलैंड है। अब आइलैंड पर रिसार्ट भी तैयार हो गया है। इसके साथ-साथ डैम के बगल में जल-जीवन-हरियाली पार्क में आप सुकून के वक्त गुजार सकते हैं। यहां पर थीम पार्क भी विकसित किया जा रहा है। यह डैम बांका शहर से करीब 15 किमी दूर है।

    डैम और पहाड़ी पर मना सकते हैं पिकनिक

    बांका प्रकृति की गोद में बसा हुआ है। इस जिले की पहचान  खूबसूरत पहाड़ियों,  जंगल  और डैम  से भी  होती  है।  ब जठौर, नाड़ा,  झरना, ककवारा आदि पहाड़ियों का  आप  भी  भ्रमण  कर  सकते  हैं। जेठौर पहाड़ी के ऊपर एक ऐतिहासिक शिव मंदिर है। 

    यहां पर पूरा-अर्चना के लिए बड़ी संख्या में लोग आते हैं। इसके अलावा  यहां  पर  करीब  10 बड़े डैम  हैं।  इसमें बदुआ, चांदन, विलासी,  आदि  पर  पिकनिक  मनाने  और  भ्रमण  करने  के  लिए  हर  साल बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं।

    इस तरह पहुंच सकते हैं मंदार

    मंदार पर्वत पर पहुंचने के लिए आपको भागलपुर-दुमका मुख्य मार्ग से होकर आना होगा। अगर आप ट्रेन से आने की यहां सोच रहे हैं तो भागलपुर-दुमका रेलखंड पर स्थित मंदार हिल स्टेशन पर उतरकर यहां आना होगा। मंदार हिल स्टेशन से मंदार पर्वत की दूरी करीब एक किलोमीटर है।

    हवाई जहाज से अगर आप यहां पर आना चाहते हैं तो आपको देवघर एयरपोर्ट पर उतरना होगा। मंदार पर्वत और देवघर देवघर एयरपोर्ट की दूरी करीब 75 किलोमीटर है। 

    वैसे तो यहां ठहरने के लिए बौंसी बाजार में कई होटल हैं, लेकिन अगर आप मंदार क्षेत्र में ठहरने की सोच रहे हैं तो यहां आप गेस्ट हाउस में ठहर सकते हैं। मंदार पर्वत पर जाने के लिए या तो आप पैदल जा सकते हैं या फिर रोपवे का सहारा ले सकते हैं।  

    आसपास में भी है काफी कुछ 

    मंदार के पास से 100 किलोमीटर के दायरे में आप पर्यटक स्थल भीमबांध, देवघर, सुल्तानगंज, भागलपुर इलाकों में भी पहुंच सकते हैं। भीमबांध में गर्म पानी के कुंड हैं। यहां हर वर्ष ठंड के मौसम में काफी पर्यटक पहुंचते हैं। 

    सुलतानगंज में अजगवीनाथ मंदिर है। यह मंदिर भगवान शिव के अजगव धनुष के नाम पर है। भागलपुर में महर्षि मेंहीं का आश्रम, सुल्तानगंज का चंपापुर दिगंबर जैन मंदिर भी दर्शनीय है।

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