लुप्त होने की कगार पर कटोरिया की हस्तकरघा कला, चुनाव में बड़ा मुद्दा बनेगा बुनकरों का दर्द
अमरपुर के कटोरिया की हस्तकरघा कला अब कुछ घरों तक सिमट गई है। कच्चा माल और बाजार के अभाव में बुनकरों को उचित मूल्य नहीं मिल पा रहा है। एक डाई हाउस बंद हो गया जिससे निराशा है। वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट के तहत चयन होने से उम्मीद जगी है पर सरकारी ध्यान न देने पर यह कला अंतिम पीढ़ी साबित हो सकती है।

संवाद सहयोगी, अमरपुर (बांका)। देश-विदेश में मशहूर अमरपुर के कटोरिया की हस्तकरघा की कला रेशम बुनकरों का दर्द हस्तकरघों की खटखट की आवाजें, जो बेहतरीन सिल्क के कपड़े बुनने की अहसास कराती थी। वर्तमान समय में हस्तकरघा की यह बुनकरों की कला अब कुछेक घरों में सिमट कर रह गया है। जो पारंपरिक बुनकरों का भविष्य एक रेशम के पतले धागे पर लटका भी नजर आ रहा है।
अब यह हस्तकरधा के बुनकरों की कला लुप्त होने की कगार पर पहुंच गई है। लेकिन एक जिला एक उत्पाद के तहत सिल्क कपड़ा के लिये बांका जिला का चयन होने पर लुप्त होने के कगार पर हस्तकरघा बुनकरों में एक उम्मीद की रोशनी दिखाई देने लगी थी।
लेकिन अभी तक इस दिशा में कोई भी सार्थक कदम नहीं उठाए जाने से बुनकरों में निराशा का भाव उत्पन्न होने लगा है। जो क्षेत्र के लिए एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है।
कच्चा माल एवं समुचित बाजार नहीं होने से हस्तकरघा बुनकरों के रोजगार पर असर
बांका जिला पहले भागलपुर जिला का हिस्सा हुआ करता था। बांका के कटोरिया सहित अन्य गांवों में तैयार सिल्क की साड़ी एवं अन्य तैयार कपड़े पर भागलपुर सिल्क की मुहर लग जाती थी। जिससे यहां के बुनकरों की हस्तकरघा की कला गुमनाम ही रह जाती थी।
जिसका दर्द आज भी बुनकरों के चेहरे पर देखी जा सकती है। लेकिन बदलते हालात में भी कच्चा माल कोकून की उपलब्धता की कमी, एवं तैयार सिल्क के कपड़े का समुचित बाजार नहीं होने से बुनकरों की हस्तकरघा की कला का वाजिब मूल्य नहीं मिल पाता है।
इसका सीधा लाभ बडे-बडे व्यापारी एवं बिचौलिए लेकर मालामाल हो रहे है। यहां के तैयार हस्तकरघा पर रेशम की साड़ियों, कुर्ते, दुपट्टे आदि की कीमत काफी ज्यादा होती है। जो देश विदेशों में भी मांग है।
कटोरिया की डाई मशीन का भागलपुर के व्यवसायी ले रहे हैं लाभ
बुनकर बाहुल्य गांव कटोरिया में मई 2022 में भारत सरकार वस्त्र मंत्रालय के शत-प्रतिशत अनुदान पर तत्कालीन बिहार सरकार के उद्योग मंत्री शाहनवाज हुसैन ने भागलपुर मेगा हैंडलूम क्लस्टर के अंतर्गत कटोरिया प्राथमिक बुनकर सहयोग समिति लिमिटेड को एक करोड़ रुपये की लागत का डाई हाउस का उद्घाटन किया। ताकि कटोरिया सहित बांका जिला के बुनकरों को सस्ता एवं सुलभता से डाई हो सके।
डाई हाउस अत्याधुनिक थी। लेकिन कटोरिया प्राथमिक बुनकर सहयोग समिति लिमिटेड के द्वारा सही से संचालन नहीं करने पर डाई हाउस शुरू होने के पहले बंद हो गई। विभाग ने डाई हाउस की सारी मशीन भागलपुर के हबीबपुर में जाकर स्थापित कर दिया। जिससे बुनकरों में काफी निराशा है।
कटोरिया में दो क्लस्टर एवं दर्जनभर है सहयोग समिति
कटोरिया में अमरपुर प्राथमिक बुनकर सहयोग समिति सहित दो क्लस्टर है। जिसमें 278 बुनकर निबंधित है। इसके अलावा एक दर्जन से अधिक सहयोग समिति भी है। जो बुनकरों को रोजगार भी मुहैया करा रहा है।
जिसमें केजीएन सिल्क फैब्रिक्स इंडस्ट्रीज लिमिटेड एवं ताज हैंडलूम बुनकर सहयोग समिति के अध्यक्ष मु. टारजन ने बताया कि कोकून की भी कई क्वालिटी है। ए ग्रेड एक कोकून की कीमत सात रुपया, बी ग्रेड की पांच रुपये एवं सी ग्रेड कोकून की तीन रुपये कीमत पर खरीद किया जाता है।
एक कोकून में एक से डेढ़ ग्राम धागा निकलता है। कोकून से धागा निकालना महिलाओं के लिए कष्टप्रद होता था। वह समिति के माध्यम से सेंट्रल सिल्क बोर्ड के द्वारा 350 महिलाओं के बीच मुफ्त में रिलिंग मशीन का नि:शुल्क वितरण किया।
रिलिंग मशीन से महिलाएं आसानी से धागा निकाल रही है। वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट के तहत बांका जिला का चयन होने की खबर बुनकरों के लिए काफी सुकूनदायक है।
अगर बुनकरों के हित के लिए सरकार ध्यान नहीं देती तो संभवतः पारंपरिक बुनकरों की आखिरी पीढ़ी साबित होकर रह जाती है। इससे बुनकरों को बिचौलिए से भी राहत मिलेगी। और उत्पाद का भी समुचित बाजार मिलने से बुनकरों का दिन भी बहुरेंगे।
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