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    अमरपुर के वीरमां गांव का चक्रधारिणी मंदिर

    By JagranEdited By:
    Updated: Tue, 26 Sep 2017 01:01 AM (IST)

    बांका। प्रखंड के बैजूडीह पंचायत अंतर्गत वीरमां गांव की प्रसिद्ध चक्रधारिणी मंदिर सभी की मनोकामनएं पू ...और पढ़ें

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    अमरपुर के वीरमां गांव का चक्रधारिणी मंदिर

    बांका। प्रखंड के बैजूडीह पंचायत अंतर्गत वीरमां गांव की प्रसिद्ध चक्रधारिणी मंदिर सभी की मनोकामनएं पूरी करती है।

    मंदिर का इतिहास

    इसका इतिहास 400 साल से भी अधिक पुराना है। सेवायत परिवार के सदस्य सह पूर्व मुखिया विश्वजीत झा ने बताया कि हिमाचल की ज्वाला देवी मंदिर के प्रति की गई भूल के प्रायश्चित स्वरूप बादशाह अकबर ने अपने दरबार के पुरोहित के सुझाव पर कुल 108 देवी मंदिर का निर्माण ऐसे जगह पर तांत्रिक विधि से करवाया जो नदियों के संगम पर व श्मशान के निकट हो। चक्रधारिणी मंदिर भी तत्कालीन स्थानीय जमींदार नाथनगर ड्योढ़ी के महाशय राजाराम घोष के द्वारा अकबर के आदेशानुसार बनवायी गयी है जो 108 मंदिरों में से एक है।

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    महाशय जी ने मंदिर की पूजा व्यवस्था श्मशान में रहकर तंत्र साधना करने वाले तांत्रिक राजाराम झा को सौंपा। राजाराम झा के बाद पंडित पन्नू झा, तूफानी झा, सनाथ झा, परमानन्द झा, चक्रधर झा एवं रणजीत झा के बाद सातवीं पीढ़ी के ज्येष्ठ वंशज इंद्रजीत झा के कंधे पर मंदिर की पूरी जिम्मेवारी है। जिन्हें वे अपने भाइयों के साथ आयोजन समिति के कैलाश झा, अनिल झा, सुरेश गोस्वामी, राजेन्द्र ¨सह, धर्मेंद्र झा, हिमांशु झा, अमरजीत गोस्वामी, रोहित पासवान एवं ग्रामीणों के सहयोग से अच्छी तरह निभा रहे हैं।

    मंदिर की विशेषता

    कैंसर जैसे असाध्य रोग से पीड़ित माता के नीरपान मात्र से चमत्कारिक रूप से स्वस्थ हो पिछले 18 वर्षों से क्षेत्र के वर्तमान मुखिया तन-मन-धन से देवी के आराधक हैं। इसके अलावा क्षेत्र के डोमी यादव, नरेश मिस्त्री व बित्तो यादव जहां पेट सम्बन्धित असाध्य रोग से सिर्फ माता पर चढ़े फूल खाकर निरोग हुए। वहीं, बिहार, बंगाल एवं झारकंड के विभिन्न स्थानों से अनेक श्रद्धालु आज भी ऐसे चमत्कारों की वजह से डलिया, बलि या अन्य साधनों से माता के दरबार मे हाजिरी देने आते हैं। मान्यता है कि विसर्जन के वक्त चक्रधारिणी देवी किसी की फरियाद अनसुनी नहीं करती।

    क्या कहते हैं सेवायत

    सेवायत विश्वजीत झा ने बताया कि माता की पूजा आरम्भ से अबतक बंगला तांत्रिक पद्धति से होती है। बोधन पूजा से लेकर एकादशी तक लगभग 500 बलि दी जाती है। साथ ही भव्य मेला का आयोजन किया जाता है।