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    औरंगाबाद की पुनपुन नदी... पितरों के तर्पण और पिंडदान का पवित्र स्थल, छह स्थानों पर होता है पिंडदान

    Updated: Thu, 11 Sep 2025 01:28 PM (IST)

    औरंगाबाद में पुनपुन नदी का पिंडदान के लिए विशेष महत्व है। गयाजी जाने से पहले यहां स्नान तर्पण और पिंडदान करना आवश्यक माना जाता है। जिले में छह स्थानों पर सनातनी पिंडदान करते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान श्रीराम और अहिल्याबाई होलकर ने भी यहां पिंडदान किया था। माना जाता है कि महाभारत युग में भगवान श्रीकृष्ण भी यहां आए थे।

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    औरंगाबाद में पुनपुन किनारे छह स्थानों पर होता है पिंडदान

    उपेंद्र कश्यप, दाउदनगर (औरंगाबाद)। पितरों को पिंडदान करने के लिए गयाजी सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान है। विश्व भर से यहां लोग आते हैं। इसके अलावा पुनपुन नदी का भी अपना महत्व है। गयाजी जाने से पहले पुनपुन में स्नान, तर्पण व पिंडदान करना आवश्यक माना जाता है। इस नदी के कई नाम हैं और इसकी अपनी विशेषता भी है। जिले के छह स्थानों पर सनातनी पिंडदान करते हैं।

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    कर्मकांडी आचार्य पंडित लाल मोहन शास्त्री ने बताया कि पितृ पक्ष शुरू होते ही सनातनी अपने पितरों के उद्धार के लिए तर्पण करते हैं। गया श्राद्ध करने वाले यात्री प्रथम पुनपुन में स्नान, तर्पण और पिण्डदान करने के गया में प्रवेश करते हैं। महत्वपूर्ण है कि औरंगाबाद में जीटी रोड पर शिरीष, अनुग्रह नारायण रोड स्टेशन से पश्चिम जम्होर विष्णु घाम में, अदरी पुनपुना संगम ओबरा, सूर्यघाट चनहट हसपुरा, भृगुरारी देवहरा (गोह) में और दक्षिण पथ गामिनी गोरकट्टी में तर्पण पिण्ड दान करते हैं।

    ध्यान रहे कि झारखंड के वायव्य कोण से निकल कर बिहार के औरंगाबाद जिला के नबीनगर, ओबरा, हसपुरा, गोह प्रखंड क्षेत्र से होते हुए जहानाबाद में प्रवाहित होकर फतुहा पटना के पास गंगा में मिल जाती है पुनपुन। इसमें महत्वपूर्ण तीन संगम हैं। प्रथम बटाने नदी पर जम्होर में, अदरी नदी पर ओबरा में और मदाड़ नदी पर गोह के भृगुरारी में। इसमें जम्होर औरंगाबाद अनुमंडल में जबकि अन्य दो दाउदनगर अनुमंडल क्षेत्र में हैं। शास्त्री बताते हैं कि यह तीनों संगम महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती के प्रतीक स्वरूप सनातनी मानते हैं। 

    भगवान श्रीराम व अहिल्या बाई ने किया है पुनपुन में पिंडदान

    पौराणिक और आधुनिक इतिहास के अनुसार पुनपुन नदी में दाउदनगर अनुमंडल क्षेत्र में दो स्थानों पर भगवान् श्रीराम और अहिल्याबाई होलकर ने अपने पितरों के लिए पिंडदान दिया है। बताया जाता है कि श्री राम अपने परिवार के साथ गया श्राद्ध के लिए जाने के क्रम में देवकुंड में शिव लिंग स्थापित किये। गोह के भृगुरारी स्थित मदाड़- पुनपुन के संगम स्थल ओर एक शिव लिंग स्थापित किया। जो मन्दारेश महादेव के नाम से विख्यात है।

    भगवान श्रीराम ने संगम में स्नान तर्पण कर पिण्डदान किया। इसके बाद गया जी धाम गये। दूसरा महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि इन्दौर की महारानी अहिल्या बाई होलकर ने देवहरा में पुनपुन किनारे शिव लिंग स्थापित किया। पुनपुना में सीढ़ी और धर्मशाला बनवाया। स्नान, तर्पण पिण्डदान कर गया जी धाम गईं।

    महाभारत से भी है अनुमंडल क्षेत्र का संबंध

    माना जाता है कि महाभारत युग में भगवान श्रीकृष्ण अर्जन और भीम के साथ देवहरा पुनपुन में स्नान पूजन कर राजगीर जरासंघ के घर गये थे। यह क्षेत्र हर युग में प्रसिद्ध रहा है। मान्यता है कि पुनपुन क्षेत्र में मरने वाले व्यक्ति के पार्थिव देह को दूसरी जगह नहीं ले जाना चाहिये। पुनपुन तट पर दाह संस्कार करने से जीव को सद्गति प्राप्त हो जाती है।