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    औरंगजेब को मिली हार, एक रात में पलटा द्वार, कुष्ठ रोगी राजा को मिला चमत्कार, अनोखी है रहस्यमयी देव सूर्य मंदिर की कहानी

    Updated: Sun, 26 Oct 2025 11:28 PM (IST)

    औरंगाबाद के देव में स्थित सूर्य मंदिर अपनी अनूठी वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है। किंवदंतियों के अनुसार, मुगल शासक औरंगजेब भी इस मंदिर को नहीं तोड़ पाया था, क्योंकि चमत्कारिक रूप से इसका द्वार रातोंरात बदल गया था। माना जाता है कि यहाँ राजा ऐल ने एक कुंड में स्नान करके अपने कुष्ठ रोग से मुक्ति पाई थी। छठ पूजा के दौरान यहाँ लाखों श्रद्धालु आते हैं।

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    रहस्यमयी देव सूर्य मंदिर की कहानी

    गंगा भास्कर, देव (औरंगाबाद)। ऐतिहासिक सूर्य नगरी देव स्थित विश्वप्रसिद्ध पौराणिक सूर्य मंदिर अनूठी शिल्प कला के लिए प्रख्यात है। पत्थरों को तरासकर मंदिर का निर्माण कराया गया है। मंदिर की नक्काशी शिल्प कला बेहतर नमूना है। मंदिर के निर्माण के संबंध में इतिहासकार छठी से आठवीं सदी के मध्य होने का अनुमान लगाते हैं। 

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    पौराणिक कथाओं पर आधारित मान्यताएं और जन श्रुतियां इसे त्रेता युगीन अथवा द्वापर युग के मध्य काल में निर्मित बताता है। अनेक जान श्रुति है जो निर्माण का अलग-अलग कारण और समय बताते हैं। मान्यता है कि आज तक इस मंदिर से कोई भी याचक खाली हाथ नहीं लौटा है। भगवान सूर्य अपने भक्तों को मनोवांछित फल देते हैं। 

    लाखों की संख्या में व्रती पहुंचते

    कार्तिक एवं चैत में छठ मेला लगता है। लाखों की संख्या में व्रती पहुंचते हैं। प्रचलित जनश्रुति है कि मुगल शासक औरंगजेब मंदिरों एवं मूर्तियों को तोड़ता हुआ यहां पहुंचा तो देव मंदिर के पुजारी एवं स्थानीय लोगों ने विरोध किया। आग्रह किया कि मंदिर को न तोड़ें क्योंकि यहां प्रत्यक्ष भगवान विराजमान है। 

    इतने में कहा कि रात भर का समय देता हूं। यदि इस मंदिर का द्वार पूरब से पश्चिम हो जाएगा तो मैं इसे नहीं तोडूंगा। पुजारी ने इसे स्वीकार कर लिया। सभी लोग रात में भगवान की प्रार्थना में लगे सवेरे उठते ही देख सचमुच मंदिर का द्वार पूरब से पश्चिम हो गया। तब से मंदिर का मुंह पश्चिम की ओर है। 

    जहां पानी के छींटे पड़े वह ठीक हो गया

    मान्यता के अनुसार सतयुग में राजा इला के पुत्र ऐल देव के जंगल में शिकार खेलने गए थे। वह कुष्ठ रोग से पीड़ित थे। शिकार करते हुए जब राजा जंगल में भटक गए तो यहां रात्रि विश्राम का निर्णय लिया। राजा ने जब यहां शौच के पश्चात पुराने गड्ढे के जल से नित्य क्रिया किया तो उनका कुष्ट रोग से पीड़ित शरीर में जहां पानी के छींटे पड़े वह ठीक हो गया। वे पानी से भरे गड्ढे में कूद गए। 

    रात में उन्हें सपना आया कि गड्ढे में भगवान सूर्य की प्रतिमा है। सूर्यदेव ने उनसे यहां मंदिर बनवाकर स्थापित करने को कहा। राजा ने देव में मंदिर का निर्माण करा पोखर से मिली ब्रह्मा, विष्णु, महेश की मूर्ति को स्थापित किया। उसके बाद यहां पूजा शुरू की गई जो अब तक चल रहा है। 

    वैसे एक मान्यता यह भी है कि मंदिर का निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने सिर्फ एक रात में किया था। पुरातात्विक प्रमाण भी प्राचिनता की ओर इशारा करते हैं।