Lok Sabha Election 2024 : चुनावी शोर में गुम मुसहरों की ये बस्ती, नेता ही नहीं आते तो वादों से भी क्या लेना-देना
Lok Sabha Election 2024 बिहार के औरंगाबाद जिले में एक बस्ती ऐसाी है जहां सरकार की हजार योजनाएं होने के बाद भी लोगों की जिंदगी में कोई बदलाव नहीं आया है। यहां सियासी दलों के नेता वोट मांगने भी नहीं पहुंचते हैं। यहां के लोगों का मतदाता सूची में नाम तक नहीं है। यहां गांव में पुरुषों से ज्यादा महिलाएं और बच्चे हैं।
मनीष कुमार, औरंगाबाद। देव थाना क्षेत्र के पतालगंगा में मुसहर समाज की बस्ती, जहां न कोई वोट मांगने आता है, न ये वोट देने जाते हैं। बाल-बच्चे मिलाकर 80-90 लोग होंगे। वोट देना इनका भी अधिकार है, पर मतदाता सूची में नाम ही नहीं।
जब लोकतंत्र के महापर्व में हर ओर चुनावी शोर है तो यह बस्ती इससे कहीं दूर अपने पेट की चिंता में जुटी रहती है। यही इनके जीवन का पहला और अंतिम लक्ष्य है कि पेट भर जाए। इन्हें न योजना के बारे में पता है, न नेताओं के बारे में।
कोई झांकने नहीं आता
अंतिम पायदान तक विकास की रोशनी पहुंचाने के हर राजनीतिक दल के हर चुनावी वादे में ये कहीं फिट नहीं बैठते। मुश्किल से छह-सात वोटर हैं, सो कोई झांकने भी नहीं आता। यही सत्य है।
इस समय चुनाव मैदान में डटे प्रत्याशियों से लेकर दल के नेता-कार्यकर्ता गांव-गांव दौड़ लगा रहे हैं, पर इस बस्ती में चुनाव का कोई रंग नहीं दिख रहा।
लोकतंत्र का छोटा सा कुनबा
दैनिक जागरण जब यहां पहुंचा तो दृश्य यही था। लगभग 30 घरों की बस्ती में पुरुषों की उपस्थिति कम, महिलाएं व बच्चे ही थे।
एक टोली दैनिक कार्यों के लिए निकल रही थी। वे जंगल में लकड़ी काटने और जंगली जानवरों के शिकार पर जा रहे थे। इनमें बच्चों सहित दर्जन भर लोग शामिल थे। बहरहाल, लोकतांत्रिक व्यवस्था में एक छोटा सा कुनबा यह भी है।
उसका मौन ही जैसे पूछ रहा हो, इस लोकतांत्रिक व्यवस्था के हजारों वादों में वे कहीं हैं भी या नहीं। 30 वर्षीय बदुरी मुसहर बड़े निर्दोष भाव से कहते हैं, वोट देवही, पर गांव में वोट मांगे कोई न अलथी हे... (हां, वोट देंगे पर अभी तक कोई मांगने आया नहीं है।) 60 वर्षीय सुदर्शन मुसहर कहते हैं कि अभी तक पक्का मकान का सपना साकार नहीं हो सका है।
18 वर्ष के हो चुके अरुण मुसहर और बिट्टू मुसहर के नाम मतदाता सूची में हैं ही नहीं। नाम चढ़ जाए तो पहली बार वोट करने का उत्साह होता। 30 वर्षीय चंदू मुसहर कहते हैं कि गांव के अधिसंख्य लोगों के नाम मतदाता सूची में नहीं हैं।
यही कारण है कि वोट नहीं दे पाते। फूलंती देवी अपने बच्चे को चुप कराती हुई कहतीं हैं, गांव में कोई वोट मांगने ही नहीं आता है। जिनका सूची में नाम है, वे चुनाव के दिन जाकर वोट दे देंगे। ये सभी शिक्षा से मीलों दूर हैं।
पूरी बस्ती में केवल छह-सात वोटर
पीढ़ियां इसी तरह आगे बढ़ रही हैं। इन लोगों ने बताया कि अधिसंख्य के पास आधार कार्ड व आवासीय प्रमाण पत्र नहीं है। मिट्टी के घर के ऊपर फूस की छप्पर है।
बस्ती के बाहर देव-अंबा रोड किनारे अपने घर के बाहर बैठे पूर्व मुखिया योगेंद्र यादव बताते हैं कि पूरी बस्ती में केवल छह-सात वोटर हैं।
इन सभी का आवासीय प्रमाण पत्र, आधार कार्ड नहीं होने से मतदाता सूची में नाम नहीं है। बैंक का पासबुक भी नहीं है। प्रश्न यही कि व्यवस्था आखिर इन तक क्यों नहीं पहुंच सकी।
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