कभी प्रमुख की कुर्सी ठुकराई, आज ओबरा की विधायकी पर कब्जा!
ओबरा के नए विधायक डॉ. प्रकाश चंद्र ने पंचायत समिति सदस्य के रूप में राजनीतिक जीवन शुरू किया। 2004 में पहली बार चुनाव जीतकर सदस्य बने। अनुकूल परिस्थिति होने पर भी उन्होंने प्रमुख का पद ठुकरा दिया था। 2020 में लोजपा के टिकट पर चुनाव लड़े और राजग के समर्थन से विधायक बने। डॉ. चंद्र हमेशा संजय सोम और संजय पटेल के राजनीतिक सहयोग को स्वीकारते हैं।

ओबरा की विधायकी पर कब्जा
संवाद सहयोगी, दाउदनगर (औरंगाबाद)। ओबरा के नवनिर्वाचित विधायक डॉ. प्रकाश चंद्र की राजनीतिक यात्रा पंचायत समिति की राजनीति से शुरू हुई थी। उन्होंने अनुकूल परिस्थिति के बीच प्रमुख बनने से इंकार कर दिया था। बिहार में त्रिस्तरीय ग्राम पंचायत का चुनाव 2001 में पुनः आरंभ हुआ था। तब तरारी क्षेत्र संख्या 13 से निर्वाचित हुए थे गंगा तिवारी, एक मामले में सजायाफ्ता होने के बाद विधि के तहत में पदच्युत कर दिए गए थे। इसके बाद यह पद रिक्त हो गया।
यहां 2004 में उप चुनाव हुआ तो डॉ.प्रकाश चंद्र पहली बार राजनीति में आए। चुनाव लड़े और पंचायत समिति के सदस्य निर्वाचित घोषित किए गए। इनके साथ तब पंचायत समिति के सदस्य थे संजय सोम और संजय पटेल। वर्ष 2001 में चुनाव होने के बाद संजय सोम प्रमुख बने थे।
प्रमुख बनने से अंतिम समय में इनकार
एक साल के बाद उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव आया और उन्हें पद छोड़ना पड़ा। जब तीनों की तिकड़ी बनी तो एक कोशिश यह की गई कि डॉ. प्रकाश चंद्र को प्रमुख बनाया जाए। तब 21 सदस्य पंचायत समिति में 12 सदस्यों का समर्थन प्रमुख बनने के लिए आवश्यक था।
संजय सोम और संजय पटेल बताते हैं कि तब 14 सदस्यों का हस्ताक्षर भी कर लिया गया था। लेकिन प्रकाश चंद्र ने प्रमुख बनने से अंतिम समय में इनकार कर दिया। फिर समाज सेवा में सक्रिय रहे। कोई चुनाव नहीं लड़ा।
2020 में लोजपा के टिकट पर चुनाव
उसके बाद 2020 में विधानसभा का चुनाव लोक जनशक्ति पार्टी से लड़ा और दूसरे स्थान पर रहे। इस बार लोक जनशक्ति पार्टी रामविलास से एनडीए के समर्थन से प्रत्याशी बने और राजग के आधार वोटरों और समर्थकों की एकजूटता के कारण उनकी जीत सुनिश्चित हो गई। तब से ही बनी यह तिकड़ी लगातार सक्रिय रही।
स्वयं डॉ. प्रकाश चंद्र भी सार्वजनिक मंच से कई बार बता चुके हैं कि राजनीति में इन दोनों ने ही उनको लाया और लगातार राजनीतिक तौर पर सहयोग किया।

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