पर्यटन की संभावनाओं को समेटे हुए है दाउद खां किला
औरंगाबाद जिले से 35 किलोमीटर दूर दाउदनगर अनुमंडल मुख्यालय के पुराना शहर में दाउद खां का ऐतिहासिक किला है। दाउत खां के नाम पर ही इस शहर का नाम दाउदनगर पड़ा। किला परिसर देखने में खूबसूरत है परंतु यहां फैली गंदगी किले के आकर्षण को कम करती है। किले को पर्यटन का दर्जा मिलने की उम्मीद संजोए लोग बैठे हैं। यह किला स्थापत्य कला का बेहतरीन उदाहरण है। किले की कलाकृति के अवशेष इसकी विशेषता को दर्शाते हैं।

सनोज पांडेय, औरंगाबाद । औरंगाबाद जिले से 35 किलोमीटर दूर दाउदनगर अनुमंडल मुख्यालय के पुराना शहर में दाउद खां का ऐतिहासिक किला है। दाउत खां के नाम पर ही इस शहर का नाम दाउदनगर पड़ा। किला परिसर देखने में खूबसूरत है परंतु यहां फैली गंदगी किले के आकर्षण को कम करती है। किले को पर्यटन का दर्जा मिलने की उम्मीद संजोए लोग बैठे हैं। यह किला स्थापत्य कला का बेहतरीन उदाहरण है। किले की कलाकृति के अवशेष इसकी विशेषता को दर्शाते हैं। इसके अंदर दक्षिण 20, पश्चिम से 10 व उत्तर में 7 अस्तबलनुमा ध्वस्त अवशेष और मस्जिद की आकृति के अवशेष अब भी विराजमान हैं। ऐतिहासिक दस्तावेजों के अनुसार 17 वीं शताब्दी में दाउद खां के किला का निर्माण हुआ था। दाउद खां मुगल शासक औरंगजेब के सिपहसलार थे। 1659 से 1664 तक वे बिहार के सूबेदार थे। पलामू फतह के बाद बादशाह औरंगजेब ने दाउद खां को अंछा, मनोरा परगना भेंट किया था, जिसके बाद दाउद खां ने किले का निर्माण कराया था। किला का सौंदर्यीकरण तो हुआ पर कार्य अधूरा रह गया। 12,715 वर्ग मीटर है क्षेत्रफल
दाउदनगर का ऐतिहासिक किला 17वीं सदी में औरंगजेब के शासन काल में उनके सिपहसालार दाउद खां ने बनवाया था। इसे बनाने में दस वर्ष लगे थे। किला परिसर का क्षेत्रफल 12715.40 वर्ग मीटर है। किसी ने ध्यान नहीं दिया जिस कारण किला खंडहर बन गया। बताया जाता है कि जीर्णोद्धार के लिए टेंडर हुआ था परंतु अतिक्रमण के कारण ठेकेदार ने निर्माण कार्य छोड़ दिया। बाद में पुरातत्व विभाग ने सुध ली। बिहार राज्य भवन निर्माण निगम से कार्य शुरू हुआ। चारदीवारी के साथ शौचालय, कमरा, चारो कोना पर शेड बनाया गया। दोनों मुख्य द्वार पर दरवाजा लगाया गया है। कई महीनों से बंद है काम पुरातत्व विभाग द्वारा करीब दो वर्ष पहले परिसर के सौंदर्यीकरण का काम शुरू किया गया था। कुछ दिनों तक कार्य धीमी गति से चलता रहा। करीब दो वर्षों से किला का कार्य बंद है। किला के दोनों तरफ गेट लगा दिया गया है। सुरक्षा गार्ड की तैनाती की गई थी परंतु मानदेय नहीं मिलने पर गार्ड घर चले गए। दक्षिण-पश्चिम की तरफ की चहारदीवारी करा दी गई है। उत्तर की ओर चारदीवारी नहीं कराई गई है। अतिक्रमण की समस्या होने के कारण उधर की चहारदीवारी अभी तक नहीं हो पाई है। परिसर में चारों तरफ पैदल पथ का निर्माण कराया गया है। पांच पीसीसी पथ बनाया गया है। कई जगहों पर लोगों को बैठने या आराम करने के लिए चबूतरा बनाया गया है। पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए पौधा और फूल लगाने के लिए दर्जनों गेवियन बनाए गए हैं। देखरेख के अभाव में कुछ गेवियन ध्वस्त हो गए हैं और जो बचे हुए हैं, उसमें अभी तक पौधे नहीं लगाए गए हैं। पीने के लिए पानी टंकी लगाया गया है, शौचालय का निर्माण कराया गया है जो चालू अवस्था में नहीं है। पलामू फतह के बाद रुके थे अंछा परगना में
ऐतिहासिक तथ्य है कि दाउद खां के आगमन से पूर्व यह बस्ती अंछा परगना का सिलौटा बखौरा था। दाउदनगर का लिखित इतिहास दाउद खां से शुरू हुआ। 1659 में औरंगजेब के शासनकाल में बिहार में प्रथम सूबेदार दाउद खां कुरैशी बनाए गए थे। तीन अप्रैल 1660 को दाउद खां पलामू फतह के लिए पटना से रवाना हुए थे जब पलामू फतह हो गया तो पटना लौटने के क्रम में उन्हें कुछ कारण वश अंछा परगना में ठहर गए, उन्हें शिकार का शौक था जब वे शिकार पर निकलने लगे तो उन्हें जानकारी दी गई कि यह इलाका बड़ा खतरनाक है। बड़े इलाके का राजस्व जब दिल्ली पहुंचाने के क्रम में इस इलाके के रास्ते में ही उसे लूट लिया जाता था। इसकी सूचना बादशाह तक पहुंचा दी गई। 1663 (1074 हिजरी) में यहां किला का निर्माण शुरू कराया गया, जो 10 साल बाद 1673 में ऐतिहासिक किला बन कर तैयार हो गया।
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