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    चार श्रम कोड लागू करने पर CPI-ML का प्रदर्शन, नेताओं ने लेबर कोड को बताया मजदूर विरोधी

    Updated: Thu, 27 Nov 2025 01:37 AM (IST)

    CPI-ML ने चार श्रम संहिताओं के कार्यान्वयन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। पार्टी के नेताओं ने इन संहिताओं को श्रमिक विरोधी करार दिया और श्रमिकों के अधिकारों को कमजोर करने का आरोप लगाया। प्रदर्शनकारियों ने सरकार से श्रम कानूनों को श्रमिकों के हित में बनाने और उनके अधिकारों की रक्षा करने का आग्रह किया।

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    सीपीआई-एमएल का श्रम संहिता के खिलाफ प्रदर्शन। फोटो जागरण

    जागरण संवाददाता, औरंगाबाद। शहर में भाकपा माले के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने बुधवार को संविधान बचाओ, मजदूर किसानों के अधिकार बचाओ के नारे के साथ प्रदर्शन किया। यह प्रदर्शन मजदूर विरोधी चार श्रम कोडों के लागू होने के खिलाफ था। केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के राष्ट्रीय आह्वान पर यह विरोध प्रदर्शन आयोजित किया गया।

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    इस प्रदर्शन का नेतृत्व अखिल भारतीय किसान महासभा के जिला सचिव कामता प्रसाद यादव, खेत मजदूर सभा के जिला सचिव चंद्रमा पासवान, निर्माण मजदूर यूनियन के जिलाध्यक्ष बिरजू चौधरी, जिला सचिव अवधेश गिरी और महिला संगठन की जिलाध्यक्ष रिंकू देवी ने किया। कार्यकर्ता भाकपा माले जिला कार्यालय से प्रदर्शन करते हुए धर्मशाला चौक, जामा मस्जिद, सब्जी बाजार और रमेश चौक होते हुए समाहरणालय पहुंचे।

    नेताओं ने कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा लागू किए गए चार श्रम कोड कॉर्पोरेट परस्ती और मजदूर विरोधी हैं, जिन्हें तुरंत वापस लिया जाना चाहिए। उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा ने विशेष मतदाता पुनरीक्षण के नाम पर 30 करोड़ रुपये बांटकर बिहार विधानसभा चुनाव को प्रभावित किया है।

    इसी दौरान, देश के बड़े पूंजीपति अडाणी को भागलपुर के पीरपैंती में एक हजार पचास एकड़ जमीन मुफ्त में दी गई। दूसरी ओर, सरकार गरीबों के घरों पर बुलडोजर चला रही है। भाजपा नेता और पूर्व केंद्रीय ऊर्जा मंत्री ने 62 हजार करोड़ के घोटाले का आरोप लगाया है, जिसकी उच्च स्तरीय जांच की मांग की गई है।

    बिहार की राजनीति में कॉर्पोरेट पूंजी का प्रवेश हो चुका है, और आने वाले दिनों में इसका हस्तक्षेप और बढ़ने की संभावना है। बिहार चुनाव का परिणाम देश को विपक्ष विहीन बनाने की भाजपा की संविधान और लोकतंत्र विरोधी साजिश का हिस्सा है।

    केंद्र सरकार ने मजदूर विरोधी चार लेबर कोड लागू कर दिए हैं, जिससे दशकों के संघर्षों के बाद हासिल मजदूरों के सभी कानून समाप्त हो गए हैं। अब मजदूरों से न केवल 12 घंटे तक काम लिया जा सकता है, बल्कि उनके संगठित होने के अधिकार को भी खत्म किया जा रहा है।