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    Chhath Puja 2025: छठ पर्व की कैसे हुई शुरुआत? जानिए इससे जुड़ा पौराणिक इतिहास

    Updated: Sat, 25 Oct 2025 03:52 PM (IST)

    छठ पूजा एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है जो बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल में मनाया जाता है। यह पर्व सूर्य देव और छठी मैया को समर्पित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, इसकी शुरुआत महाभारत काल में हुई थी, जब द्रौपदी ने सूर्य देव की उपासना की थी। यह पर्व धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण है।

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    छठ पर्व का पौराणिक इतिहास


    संवाद सूत्र, अंबा (औरंगाबाद)। महापर्व छठ का चार दिवसीय अनुष्ठान शनिवार को नहाए-खाए के साथ प्रारंभ हो गया है। कुटुंबा प्रखंड के भास्कर नगर दोमुहान संड़सा स्थित बतरे-बटाने संगम तट पर स्नान करने के लिए सुबह से व्रती पहुंचते रहे। अन्य नदियों, सरोवरों एवं जलाशयों में स्नान कर व्रतियों ने छठ का प्रसाद बनाया।

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    व्रती महिलाओं ने चावल, चना दाल एवं कद्दू (लौकी) की सब्जी का प्रसाद बना व्रत आरंभ किया। प्रखंड के विभिन्न गांव, कस्बों, नदी घाट सरोवर एवं अन्य जलाशयों की सफाई कर पर्व की पवित्रता को बहाल किया है। छठ घाटों को सजाया गया है।

    दोमुहान घाट पर व्रतियों एवं श्रद्धालुओं के लिए प्रसाधन, चेंजिंग रूम समेत अन्य सुविधा का विशेष ख्याल रखा गया है। उक्त स्थल पर एक भव्य मेला लगता है जिसकी तैयारी पूर्ण कर ली गई है। खेल तमाशा वालों ने अपना डेरा जमा लिया है।

    पूजा समितियों ने व्रतियों को ठहरने, पूजा सामग्री एवं अन्य प्रकार की सुविधा का ध्यान रख रहे हैं। प्रखंड में अंबा, महसू, दधपा, ढूंढा, चौखरा, रिसियप, पिपरा बगाही समेत अन्य स्थलों पर छठ पूजा कर व्रती भगवान सूरज को अर्घ्य दे रहे हैं।

    प्राचीन सूर्योपासना का महापर्व है छठ

    छठ व्रत भगवान सूर्य की पूजा का महापर्व है जिसे देश एवं विदेश में छठ व्रत कहते हैं। भगवान सूर्य की महिमा अपरंपार है। छठ में व्रती कठिन पूजा व साधना कर साक्षात सूर्यदेव को अर्घ्य देते हैं। चार दिवसीय अनुष्ठान के दौरान व्रती उपवास रख, नदी एवं तालाब में स्नान कर भगवान सूर्य को अर्घ्य देते हैं।

    वर्तमान में यह पर्व बिहार, उत्तर प्रदेश एवं झारखंड समेत पूरे देश में मनाया जाता है। प्रवासी भारतीय विदेश में छठ मनाते आ रहे हैं। पर्व की शुरुआत नहाए-खाए के साथ आरंभ होता है। व्रती उदीयमान व अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देकर पर्व संपन्न करते हैं। आचार्य राजकुमार शास्त्री ने बताया कि छठ वर्ष में दो बार चैत्र एवं कार्तिक में मनाया जाता है।

    माता सीता ने त्रेतायुग में की थी सूर्योपासना

    आचार्य राजकुमार शास्त्री ने बताया कि छठ पूजा की परंपरा की शुरूआत को ले कई कथाएं प्रचलित हैं। मान्यता के अनुसार जब राम-सीता 14 साल के वनवास के बाद अयोध्या लौटे तो रावण वध की पाप से मुक्ति के लिए उन्होंने ऋषि-मुनियों के आदेश पर राजसूर्य यज्ञ करने का फैसला लिया था।

    पूजा के लिए उन्होंने मुग्दल ऋषि को आमंत्रित किया था। मुग्दल ऋषि ने मां सीता पर गंगाजल छिड़ककर पवित्र किया और कार्तिक के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की उपासना करने का आदेश दिया।

    माता सीता ने मुग्दल ऋषि के आश्रम में रहकर छह दिनों तक सूर्य भगवान की पूजा की थी। सप्तमी को सूर्योदय के समय फिर से अनुष्ठान कर सूर्यदेव से आशीर्वाद प्राप्त किया था।