नेताजी जयंती विशेष: जब गया में गूंजा था 'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हे आजादी दूंगा' का नारा
बिहार के गया जिले से नेताजी सुभाषचंद्र बोस की यादें जुड़ी हैं। यहीं से गूंजा था-तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा का नारा। जानिए उनसे जुड़ी यांदें...
औरंगाबाद, संतोष अमन। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक नेताजी सुभाषचंद्र बोस का औरंगाबाद के दाउदनगर प्रखंड के चौरम गांव से भी जुड़ाव था। सन् 1939 में नौ फरवरी को वे चौरम में चतुर्थ गया जिला राजनीतिक सम्मेलन में भाग लेने आए थे। आयोजन के स्मृति शेष कुछ बुजुर्गों के जेहन में अब भी बचे हैं।
उस सम्मेलन में भी 'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हे आजादी दूंगा' का नारा बुलंद हुआ था। यह स्मरण जमींदोज होने की कगार पर था। स्थानीय लोगों व मुखिया की पहल पर उसे बचाए रखने के लिए उक्त स्थल पर नेताजी की प्रतिमा लगाई गई है। यहां हर साल उनकी जयंती उल्लासपूर्वक मनाई जाती है। इस मौके पर खेलकूद का आयोजन भी होता है।
कोलकाता से आए थे नेताजी
सुभाष आदर्श उद्योग मंदिर चौरम में 9-10 फरवरी 1939 को चतुर्थ गया जिला राजनीतिक सम्मेलन का आयोजन किया गया था। इसमें भाग लेने के लिए नेताजी सुभाषचंद्र बोस कलकत्ता (अब कोलकाता) से यहां आए थे।
इसी सम्मेलन में उन्होंने अंग्रेजों को ललकारते हुए कहा था, 'वे रोज गोली चला रहे हैं, यह अब बर्दाश्त से बाहर हो गया है। तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हे आजादी दूंगा।' बाद में इसी नारे ने आजादी के दीवानों में जोश भरा था। यह सम्मेलन 10 दिनों तक चला था। नेताजी यहां दो दिन रुके थे।
किसानों को मिली जमींदारों से मुक्ति
कुमार बद्री नारायण की जमींदारी में बसे चौरम (तत्कालीन गया जिला और वर्तमान मगध प्रमंडल) को राजनीतिक जिला सम्मेलन के लिए चुना गया था। इस आयोजन में सैकड़ों किसानों को जमींदारों से मुक्ति मिली थी। कुमार बद्री नारायण ने अपनी 400 बीघा जमीन किसानों के बीच बांट दी थी।
इस स्थल को संरक्षण की जरूरत थी, लेकिन शिलान्यास के कई पत्थर अब जमींदोज हो गए। जमीन का बड़ा हिस्सा बेच दिया गया या अतिक्रमित कर लिया गया। मात्र पांच एकड़ जमीन, जो स्कूल खोलने के लिए बिहार के राज्यपाल के नाम निबंधित है, वही सुरक्षित बची है।
समाजवादी नेता मोहन सिंह यादव ने बताया कि उनके पिता कुंजबिहारी, कुमार बद्रीनाथ के साथ रहते थे। बद्रीनाथ ने स्कूल खोलने के लिए राज्यपाल के नाम पांच एकड़ जमीन निबंधित की थी। तब एक आशा जगी थी कि इस गांव का भला होगा। 14 जनवरी 1956 को राजनीतिक साजिश के तहत बद्रीनाथ की हत्या हो गई तो कुछ नहीं हो सका।