बिहार के प्रथम सूबेदार थे दाउद खां कुरैशी
औरंगजेब। औरंगजेब के शासनकाल के बिहार में प्रथम सूबेदार थे - दाउद खां कुरैशी। सूबे के श
औरंगजेब। औरंगजेब के शासनकाल के बिहार में प्रथम सूबेदार थे - दाउद खां कुरैशी। सूबे के शासन की बागडोर दाउद खां कुरैशी के हाथों में 1659 ई. से लेकर 1664 ई. तक रही। उनका पलामू विजय अभियान उन्हें इतिहास के पन्नों में अमर कर गया। बाबर के शासनकाल में दाउद खां के पूर्वज मुहम्मद राजी काबुल से प्रवजन कर भारत में हिसार-फिरोजा, हरियाणा में आकर बस गए। दाउद खां के पिता भिखन खां, खान जहान लोदी के विश्वासपात्र थे। दोलपुर की लड़ाई में भिखन खान का देहावसान हुआ। साथ ही खान जहान लोदी मारा गया। आजम खां ने दाउद खां का परिचय दाराशिकोह से कराया। अपने साहस एवं योग्यता की बदौलत दारा के योग्यतम एवं विश्वासी जनरल बनने में दाउद खां सफल हो सके। शाहजहां के शासनकाल के 30वें राजकीय वर्ष में वे मथुरा के फौजदार बने। महावा, जलेसर और दूसरे महाल उन्हें दारा शिकोह ने जागीर के रुप में सदुल्लाह खां के मरणोपरात दिया गया। आगरा और दिल्ली के बीच के भूभाग की सुरक्षा का भार 2000 घुड़सवारों के साथ उन्हें ही सौंपा गया। श्रमण संस्कृति का वाहक - दाउदनगर पुस्तक के अनुसार उसी वर्ष दारा शिकोह के अनुमोदन पर उन्हें खान की उपाधि दी गई। उत्तराधिकारी की लड़ाई में दाउद खां दारा के पक्ष से ही लड़े। सामूगढ़ की लड़ाई में सतार साल हारा की सैन्य टुकड़ी में वे थे। उनकी पराजय के बाद दारा शिकोह सर्वप्रथम आगरा की ओर कूच किया, फिर अपने परिवार एवं विश्वासी नौकरों के साथ दिल्ली की ओर गया। दाउद खां और अन्य दारा से बाद में मिलें। दारा दिल्ली में अधिक दिनों तक नहीं रूका और यह सुनकर की औरंगजेब उसका पीछा कर रहा है, पंजाब की ओर चला गया। पीछा करने वाली सेना के ऊपर नजर रखने के लिए सतलज के किनारे तुलवा में हजारों घुड़सवारों के साथ दाउद खां को वह छोड़ गया। दारा लाहौर से मुल्तान सीफर शिकोह के साथ कूच करते समय दाउद खां को सतलज के किनारे रूककर बढ़ती सेना को रोकने एवं उनके जहाज डुबोने के बाद उनसे मुल्तान में मिलने का निर्देश भिजवाया। जो कुछ भी हो बाद में दाउद खां दारा शिकोह को छोड़ अपने घर हिसार फिरोजा लौट आया।
..और दाउद खां की हैसियत बढ़ गई :
दाउद खां को उसके गुणों, अनुभवों एवं योग्यता के चलते औरंगजेब ने अपनी शाही सेना में 21 नवंबर 1658 को ले लिया। 24 नवंबर 1658 को शाही दरबार में औरंगजेब ने दाउद खां को प्रतिष्ठा के साथ जोड़ा, एक तलवार एवं 4000 जाट, 3000 सवार मनसब से सम्मानित किया। औरंगजेब के दाहिनी सैन्य टुकड़ी के कमांडर के रुप में खाजवा की लड़ाई में शुजा के खिलाफ बड़ी बहादुरी से लड़े। पराजय के बाद शुजा बंगाल की ओर कूच कर गया। तब दाउद खां के साथ एक सुदृढ़ सैन्य टुकड़ी अपने बेटे मोहम्मद सुल्तान के नेतृत्व में उसके पीछा करने के लिए छोड़ा। 15 जनवरी 1659 में पटना पहुंचते दाउद खा को शाही फरमान मिला कि वे बिहार के सूबेदार का कार्यभार संभालें। इसी के साथ उनकी पदवी 4000/3000 को 1000 दो-आस्पा-सी-आस्पा के रुप में बढ़ा दिया गया।
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