सोन नदी की खेती पर खनन का साया, सैकड़ों किसानों की आजीविका संकट में
बारुण प्रखंड में सोन नदी के किनारे हो रही खेती पर खनन का खतरा मंडरा रहा है, जिससे सैकड़ों किसानों की आजीविका खतरे में है। वर्षों की मेहनत से उपजाऊ बनी ...और पढ़ें

खेत बर्बादी के कगार पर
जागरण, बारुण (औरंगाबाद)। बारुण प्रखंड में सोन नदी के किनारे सैकड़ों एकड़ में हो रही खेती पर खनन का गंभीर खतरा मंडराने लगा है। वर्षों की मेहनत से बंजर जमीन को उपजाऊ बनाकर आत्मनिर्भर बने गरीब और भूमिहीन किसान अब फिर से बेरोजगारी और पलायन के कगार पर पहुंचते नजर आ रहे हैं। सोन नदी के मेह-इंद्रपुरी से लेकर जानपुर तक करीब 15 किलोमीटर क्षेत्र में फैली खेती खनन के कारण धीरे-धीरे तबाही की ओर बढ़ रही है।
स्थानीय किसानों का कहना है कि सोन नदी की बालू और मिट्टी वाली जमीन को समतल कर उन्होंने सब्जी और अनाज की खेती शुरू की थी।
इस खेती से न केवल उनका परिवार चल रहा था, बल्कि आसपास के लोगों को भी मजदूरी का काम मिल रहा था। धान, गेहूं, आलू, चना, सरसों के साथ-साथ साग-सब्जियों की भरपूर पैदावार होती रही है।
वर्तमान समय में आलू, मटर, सेम, मूली, लहसुन, टमाटर और बैंगन जैसी सब्जियां खेतों में लहलहा रही हैं, जिन्हें स्थानीय बाजारों के साथ-साथ डेहरी और अन्य शहरों के बाजारों में भेजा जाता है।
भीआपी प्रभारी एवं चौधरी समाज के नेता तथा पूर्व मुखिया प्रतिनिधि रंजीत कुमार चौधरी ने बताया कि सोन नदी क्षेत्र में करीब एक सौ एकड़ भूमि पर सैकड़ों किसान खेती कर जीवन यापन कर रहे थे।
लेकिन सरकारी स्तर पर हो रहे खनन से उपजाऊ खेत बड़े-बड़े गड्ढों में तब्दील हो गए हैं। खनन के बाद गड्ढों को भरा नहीं जा रहा, जिससे दुर्घटना की आशंका भी बनी रहती है। खेत खत्म होने से किसानों के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है।
किसान अभिषेक चौधरी, सुदामा चौधरी, माला चौधरी, जयप्रकाश चौधरी, उमेश चौधरी, जितेंद्र चौधरी, जोखन चौधरी और विनोद चौधरी ने बताया कि उबड़-खाबड़ जमीन को खेत में बदलने के लिए उन्होंने वर्षों तक मेहनत की।
बिजली से सिंचाई की सुविधा लेकर खेती को आगे बढ़ाया। इस खेती के कारण उन्हें रोजगार के लिए बाहर नहीं जाना पड़ता था, लेकिन अब खनन से खेत उजड़ने लगे हैं।
किसानों का कहना है कि अगर यही स्थिति रही तो एक बार फिर उन्हें दूसरे प्रदेशों में मजदूरी के लिए पलायन करना पड़ेगा। उन्होंने प्रशासन और सरकार से मांग की है कि खनन कार्य को नियंत्रित किया जाए और खेती योग्य जमीन को सुरक्षित रखा जाए।
ताकि सोन नदी क्षेत्र में आत्मनिर्भर बने किसानों की मेहनत पर पानी न फिर जाए और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बचाया जा सके।

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