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    Bihar Politics: औरंगाबाद की 6 सीटों पर महागठबंधन की अग्निपरीक्षा, जातीय समीकरण से कटेगी जीत की फसल

    Updated: Thu, 06 Nov 2025 04:52 PM (IST)

    औरंगाबाद जिले की छह सीटों पर एनडीए और महागठबंधन के बीच मुकाबला है। 76 उम्मीदवार मैदान में हैं। 2015 में दोनों गठबंधनों को तीन-तीन सीटें मिली थीं, जबकि 2020 में महागठबंधन ने सभी सीटें जीती थीं। इस बार एनडीए के दो उम्मीदवार बागी हो गए हैं। कुटुंबा में त्रिकोणीय मुकाबला है, जबकि नबीनगर में भी मुकाबला रोचक है। ओबरा और रफीगंज में भी कड़ी टक्कर देखने को मिल रही है।

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    औरंगाबाद की 6 सीटों पर महागठबंधन की अग्निपरीक्षा, जातीय समीकरण से कटेगी जीत की फसल

    शुभम कुमार सिंह, औरंगाबाद। औरंगाबाद की छह सीटों पर एनडीए और महागठबंधन की अग्निपरीक्षा है। जिले के औरंगाबाद, ओबरा, गोह, रफीगंज, कुटुंबा एवं नबीनगर विधानसभा क्षेत्र में चुनाव हो रहा है। कुल 76 प्रत्याशी मैदान में हैं। वर्ष 2020 के विधानसभा चुनाव में कुल 79 प्रत्याशी मैदान में थे। यहां दूसरे चरण में 11 नवंबर को मतदान होना है। वर्ष 2015 के चुनाव में महागठबंधन को तीन एवं एनडीए को तीन सीट मिली थी। वर्ष 2020 के चुनाव में एनडीए का यहां खाता नहीं खुला था।

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    सभी सीटों पर महागठबंधन ने कब्जा कर लिया था। दो सीट पर कांग्रेस एवं चार सीट पर राजद विजयी बना था। एनडीए एवं महागठबंधन के लिए चितौड़गढ़ की धरती पर अग्निपरीक्षा है।

    हालांकि, इस बार चुनावी समीकरण अलग हो गया है। एनडीए के दो प्रत्याशी यहां बागी हो गए हैं। टिकट कटने से प्रत्याशी व उनके समर्थक नाराज रहे हैं। एनडीए से जदयू के दो, बीजेपी के दो, लोजपा से एक एवं हिंदुस्तानी आवागम मोर्चा से एक प्रत्याशी चुनावी मैदान में हैं। जन सुराज ने सभी सीटों से अपने प्रत्याशी को खड़ा किया है।

    कुटुंबा में दिख रहा त्रिकोणीय मुकाबला

    कुटुंबा विधानसभा सीट आरक्षित है। यहां इस बार चुनावी समीकरण पूरी तरह बदल गया है। कुल 11 प्रत्याशी मैदान में हैं। जदयू से पूर्व विधायक ललन भुइयां इस बार हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा सेक्यूलर के टिकट पर मैदान में हैं। ये कांग्रेस विधायक राजेश कुमार के सामने खड़े हैं।

    यहां से इस बार एनडीए ने ललन भुइयां पर भरोसा जताया है। राजेश कुमार वर्ष 2015 एवं 2020 में चुनाव जीत चुके हैं। श्यामबली पासवान को जन सुराज पार्टी ने टिकट दिया है। त्रिकोणीय मुकाबला होने का आसार हैं।

    आसान नहीं औरंगाबाद से जीत

    औरंगाबाद विधानसभा क्षेत्र से इस बार 15 प्रत्याशी चुनावी मैदान में हैं। भाजपा से त्रिविक्रम नारायण सिंह एवं कांग्रेस से आनंद शंकर सिंह के अलावा जन सुराज से नंदकिशोर यादव मैदान में हैं। त्रिविक्रम के आने से यहां की राजनीतिक समीकरण बदल चुकी है।

    कांग्रेस के आनंद शंकर 2015 एवं 2020 में चुनाव जीते हैं। भाजपा इस बार प्रदेश के कद्दावर नेता को टिकट दिया है जिस कारण बड़े नेताओं का प्रचार यहां खूब हो रहा है। बसपा से शक्ति मिश्रा मैदान में हैं।

    जातीय समीकरण से कटेगी जीत की फसल

    नबीनगर को मिनी चितौड़गढ़ कहा जाता है। यहां इस बार मुकाबला रोचक दिख रहा है। जदयू ने सांसद लवली आनंद के पुत्र शिवहर से विधायक चेतन आनंद को टिकट दिया है।

    राजद ने यहां से अमोद चंद्रवंशी को टिकट दिया। जन सुराज से बारुण प्रखंड की पूर्व प्रमुख अर्चना चंद्र यादव मैदान में हैं। समीकरण बदलने की तैयारी चल रही है। वैसे यहां निर्दलीय मृत्युंजय यादव का शोर भी है। जनता किसके सिर ताज देती है यह देखना यहां दिलचस्प होगा।

    चुनावी मैदान में पूर्व मंत्री के पुत्र

    ओबरा विधानसभा में पूर्व मंत्री कांति सिंह के पुत्र ऋषि कुमारी दूसरी बार अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। यहां लोजपा के टिकट पर डॉ. प्रकाश चंद्र एनडीए के उम्मीदवार हैं। वर्ष 2020 में चुनाव हारने के बावजूद प्रकाश चंद्र सक्रिय रहे हैं जिस कारण मुकाबला रोचक हो गया है। यहां जन सुराज से सुधीर शर्मा एवं बसपा से संजय कुमार प्रत्याशी हैं। यहां से सबसे अधिक कुल 18 प्रत्याशी मैदान में हैं।

    रफीगंज में रोचक दिख रहा मुकाबला

    रफीगंज विधानसभा क्षेत्र में मुकाबला रोचक हो गया है। यहां अपने से अपने को खतरा है। चुनाव से पहले लोजपा रामविलास में रहे प्रमोद कुमार सिंह के टिकट मिलने से पार्टी कार्यकर्ता नाराज हैं। विरोध कर रहे हैं। राजद से डॉ. गुलाम शहीद चुनावी जंग में हैं।

    डॉ. शाहिद रफीगंज नगर पंचायत के लगातार अध्यक्ष रहे हैं। यहां मुकाबला को रोचक बनाने में जन सुराज के विकास कुमार सिंह उर्फ बबलू सिंह मैदान में हैं। रफीगंज से कुल 12 प्रत्याशी चुनाव लड़ रहे हैं।

    दिग्गजों के बीच त्रिकोणीय मुकाबला

    गोह विधानसभा में इस बार तीन दिग्गजों के बीच त्रिकोणीय मुकाबला है। भाजपा से डॉ. रणविजय कुमार, राजद से अमरेंद्र कुशवाहा एवं जन सुराज से सीताराम दुखारी चुनावी मैदान में डटे हैं। जदयू से तीन बार विधायक रहे डॉ. रणविजय के भाजपा से आने के कारण एनडीए के कार्यकर्ता एकजुट हैं। यहां राजनीति किस करवट बैठेगी कहना मुश्किल हो गया है।