मुहब्बत व नफासत की जुबान है उर्दू: अस्थानवी
अररिया। साझी सभ्यता एवं संस्कृति की खुबसूरत जुबान है उर्दू। इसलिए जिस प्रकार मां बाप से प्यार
अररिया। साझी सभ्यता एवं संस्कृति की खुबसूरत जुबान है उर्दू। इसलिए जिस प्रकार मां बाप से प्यार करते हैं उर्दू। इसलिए जिस प्रकार मां बाप से प्यार करते हैं उर्दू से भी घर करें। आज उर्दू के साथ भेदभाव हो रहा है। ये बातें शुक्रवार को डाक बंगला अररिया के अवामी उर्दू नेफाज कमेटी बिहार के अध्यक्ष अशरफ अस्थानवी ने प्रेस कांफ्रेंस में कही। उन्होंने कहा कि बिहार की दूसरी सरकारी जुवां उर्दू जरूर है लेकिन बावजूद इसके सरकारी उपेक्षा का शिकार है उर्दू। उन्होंने कहा कि सरकार से ज्यादा जिम्मेदार उर्दू भाषी लोग है जो इसका विकास नही चाहते हैं। केवल सरकार के भरोसे उर्दू का विकास मुमकिन नही है। अशरफ अस्थानवी ने कहा कि उर्दू तो स्वतंत्रता संग्राम की भाषा है। इनकलाब ¨जदाबाद का नारा देने वाला भाषा उर्दू आज मानों दम तोड़ रहा है। उर्दू प्रेमियों की उदासीनता एवं सरकार के सौतेले व्यवहार के कारण मोहब्बत की जुबान उर्दू लुप्त होने के कगार पर है। उन्होंने कहा सीमांचल उर्दू भाषी इलाका है। लेकिन इस क्षेत्र में अवामी एवं सरकारी स्तर से इसपर काम नही हुआ जो ¨चता की बात है। बिहार में उर्दू को द्वितीय सरकारी भाषा बने 33 वर्ष हो चुका है। लेकिन अभी भी उर्दू अनुवादक, सहायक अनुवादक एवं टंकक हर कार्यालय ये बहाल नही किए गए। उन्होंने बताया कि बिहार के 68 हजार प्राथमिक एवं मध्य विद्यालय में मात्र 32 हजार विद्यालय में ही उर्दू शिक्षक है। उर्दू को जीवित रखना है तो अपने घरों एवं कार्यक्रमों का आमंत्रण उर्दू में लिखे। उर्दू पढ़ने लिखने एवं बोलने में इस्तेमाल करें। उर्दू मैगजीन एवं अखबार भी पढ़े। उन्होंने कहा उर्दू आज केवल मुशायरा की जुबान बनकर रह गई है। इसलिए सबकों मिलकर उर्दू के तरक्की के लिए काम करने की जरूरत है।
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