Move to Jagran APP

संसारी माई दुर्गा मंदिर: दो देशों की आस्था का केंद्र है बिहार का ये देवी स्थान, प्रसिद्ध हैं अनूठी मान्यताएं

संसारी माई दुर्गा मंदिर में नेपाल और भारत के हजारों देवी भक्त दर्शन के लिए पहुंचते हैं। नवविवाहित जोड़ों के लिए ये मंदिर अलग ही मान्यता रखता है। अपनी इन्हीं तमाम अनोखी मान्यताओं के चलते इस देवी स्थान की प्रसिद्धी दूर-दूर तक है।

By Ashutosh Kumar NiralaEdited By: Shivam BajpaiPublished: Mon, 03 Oct 2022 08:04 PM (IST)Updated: Mon, 03 Oct 2022 08:04 PM (IST)
संसारी माई दुर्गा मंदिर: दो देशों की आस्था का केंद्र है बिहार का ये देवी स्थान, प्रसिद्ध हैं अनूठी मान्यताएं
बिहार के अररिया जिले में स्थित है संसारी माई दुर्गा मंदिर।

दीपक कुमार गुप्ता, अररिया: जिले से नजदीक रंगेली नगरपालिका में एक प्राचीन और पुराना मंदिर है, जो चिसांग नदी के नदी तट पर हुलाकी राजमार्ग के दक्षिण में स्थित है। इसे संसारी माई देवी स्थान नाम से जाना जाता है। संसारी माई दुर्गा मंदिर विराटनगर से लगभग 20 किमी दूर यह मंदिर मोरंग जिले के सबसे महत्वपूर्ण मंदिरों में से एक है। इस मंदिर में प्रतिदिन भारत व नेपाल के सैकड़ों श्रद्धालु नतमस्तक होते हैं। इस दृष्टि से भी यह मंदिर भारत व नेपाल की सांस्कृतिक एकता ही नहीं, बल्कि दोनों देशों के दो दिलों को भी जोड़ता है।

loksabha election banner

पुजारी राजू अधिकारी बताते हैं कि यह मंदिर आपरूपी है। यह शक्तिपीठ का एक स्वरूप है। यहां मां दुर्गा पाखड़ पेड़ के रूप में प्रकट हुई है। नवविवाहित जोड़ों के पास अपने सुखी विवाह के लिए देवी के दर्शन करने और उनका आशीर्वाद लेने की रस्म भी होती है। दुर्गा पूजा में भारतीय क्षेत्र से काफी संख्या में यहां पूजा करने लोग जाते हैं।

मंदिर के अन्य पुजारी केदार नाथ ठाकुर ने बताया कि मंदिर का स्थान लगभग 1500 वर्ष पुराना है। पाखड पेड़ के जड़ में अठारह हाथों वाली मां चंडी का चित्र बना है। जो अब भूमि के नीचे चली गई है। उसी स्थान पर अब अष्टधातु की मूर्ति स्थापित की गई है। नेपाल राजा के शासन में वैशाख की पूर्णिमा में राजघराने के लोग साल में एकबार विशेष पूजा करते थे। नेपाल नरेश राजा वीरेंद्र वीर विक्रम शाहदेव द्वारा अंतिम पूजा की गई थी।

स्थानीय लोगों के बीच एक लोकप्रिय धारणा मौजूद है कि यह स्थान देवत्व का एक सच्चा स्रोत है और माई (देवी) को उन सभी तीर्थयात्रियों की इच्छाओं और इच्छाओं को पूरा करने के लिए कहा जाता है, जो करुणा और भक्ति की सच्ची भावना के साथ उनकी पूजा करने आते हैं। वहीं निजी व गुप्त दान देने वालों का तांता लगा हुआ है। मंदिर के सौंदर्यीकरण का कार्य तेजी से हो रहा है ।

शनिवार और मंगलवार को विशेष पूजा

मंदिर के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। मंदिर के भीड़ में 60 फीसद नेपाली तथा 40 फीसद भारतीयों को देखा जा सकता है। लोगों का मानना है इस मंदिर में मांगी गई हर मुरादें पूरी होती है। लोग मन्नत मांगते है और उनकी मनोकामना पूर्ण होती है , ऐसा लोग कह रहे हैं। जिसके कारण श्रद्धालुओं की आस्था बढ़ती जा रही है। शनिवार और मंगलवार की विशेष पूजा में लगभग पांच हजार से ऊपर लोग शामिल होते हैं। शादी-विवाह, मुंडन, हवन सहित कई अन्य अनुष्ठान मंदिर के प्रांगण में आयोजित किए जाते हैं। वहीं नवरात्रि के समय दस दिनों तक 51 पंडितों के द्वारा पूजा आयोजित होती है।

एकादशी को बलि निषेध

यहां प्रतिदिन बलि प्रदान की जाती है । बलि में छागर, कबूतर, हंस की प्रधानता है । शनिवार के दिन दर्जनों की संख्या में बलि दी जाती है। पुजारी ने बताया कि एकादशी के दिन बलि निषेध है। बलि प्रदान की गई प्रसाद को मंदिर प्रांगण के अंदर ही ग्रहण किया जाता है। अपनी मन्नत को लेकर विराटनगर, काठमांडू, धरान, अररिया, पूर्णिया, कटिहार, सुपौल, किशनगंज, मधेपुरा, सहरसा आदि जिले के श्रद्धालु यहां पहुंचते है।

पहुंचते हैं नवविवाहिता जोड़ें

संसारी माई स्थान मंदिर एक विशाल और झाड़ीदार पेड़ के आधार पर स्थित है जिसे स्थानीय रूप से काभरो कहा जाता है। नवविवाहित जोड़ों के पास अपने सुखी विवाह के लिए देवी के दर्शन करने और उनका आशीर्वाद लेने की रस्म भी होती है। इस मंदिर की लोकप्रियता का मुख्य कारण इसका ऐतिहासिक और रहस्यमय महत्व के साथ-साथ इस मंदिर के आसपास का शांतिपूर्ण वातावरण है।

पर्यटन स्थल के रूप में हो रहा विकसित

फिलहाल दस वर्षों से श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ी है। रंगेली नगरपालिका मोरंग जिले का पिछला मुख्यालय और मोरंग के केंद्रीय शहरों में से एक है। यह मंदिर क्षेत्र में एक प्रसिद्ध हिंदू तीर्थ है और अपने शांतिपूर्ण माहौल के कारण पर्यटन के केंद्र के रूप में भी विकसित हो रहा है। यह मंदिर दशकों पुराना माना जाता है और मोरंग जिले के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है। देवी की पूजा और भक्ति लंबे समय से चली आ रही है और इस प्रकार स्थानीय लोगों के बीच संस्कृति और परंपरा के हिस्से के रूप में स्वीकार की जाती है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.