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    मैथिल समाज के लोगों ने सामा चकेवा पर्व की थी शुरुआत, रोचक है इसके पीछे की कथा

    सात दिनों तक चलने वाले सामा चकेवा पर्व की शुरूआत मैथिल समाज के लोगों ने की थी। सात दिनों तक बहनें भाई के खुशहाल जीवन के लिए मंगल कामना करती हैं। इस पर्व के पीछे की कथा अद्भुत और रोचक है।

    By Anil Kumar TripathiEdited By: Shivam BajpaiUpdated: Fri, 04 Nov 2022 07:33 PM (IST)
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    बिहार में मनाया जाता है सात दिवसीय पर्व सामा चकेवा।

    अजीत कुमार, फुलकाहा (अररिया): नरपतगंज प्रखंड क्षेत्र में लोक आस्था का पर्व सामा चकेवा धूमधाम से मनाया जा रहा है। छठ पर्व के समापन के साथ हीं शारदा सिन्हा के गाये गए सामा चकेवा एवं चुगला चुगली के गीत जहां बजने लगे हैं। इस पर्व को मनाने वाली महिलाएं मिट्टी की प्रतिमा को अंतिम रूप दे दी है। इन प्रतिमाओं में सामा चकेवा चुगला, सतभैया, वृंदावन एवं कुछ खास पक्षियों की प्रतिमा शामिल है। यह पर्व भाई बहन की पवित्र रिश्ते को दशार्ता है। पौराणिक कथा के अनुसार भगवान श्री कृष्ण की पुत्री सामा के संबंध में किसी चुगले ने उसके पिता से सामा के किसी से गलत संबंध होने का आरोप लगाया। कृष्ण गुस्से से किसी से आकर सामा को पक्षी बन जाने का श्राप दिया।

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    बहुत दिनों तक सामा इस श्राप के कारण पक्षी बनी रही। किंतु अपने भाई चकेवा ने प्रेम व त्याग के बल पर सामा को मनुष्य का रूप दिलवाया। उसके साथ ही चुगले को प्रताड़ित भी करवाया। उसी कथा की याद में भाई बहन के पवित्र रिश्ते को साल में छठ पर्व के आठवें दिन पर्व के रूप में निभाया जाता है। इस पर्व में चुगले की प्रतिमा बनाकर उसकी चोटी में आग लगाकर उसे जूत से पीटने की भी परंपरा है। परंपरा के अनुसार धान की नई फसल के चूड़े़ बनाकर अपने भाईयों को पर्व मनाने वाली बहने चूड़ा दही खिलाती है।

    मिट्टी के हंडीनुमा के सेखारी में चूड़ा मूढ़ी एवं मिठाई भरकर सामा चकेवा पर्व के अंतिम दिन भाईयों को पांच पांच मुठ्ठी चूड़ा मूढ़ी एवं मिठाई देने का भी रिवाज है। सामा चकेवा मैथिल समाज के लोगों ने शुरू की थी जो आज तक चल रही है। दूसरे समाज के लोगों ने भी आस्था के साथ इसे अपना लिया। मंगलवार की देर रात इस पर्व की समाप्ति की जाएगी। इस पर्व को लेकर क्षेत्र में महिलाओं एवं बच्चों में खासा उत्साह देखा जा रहा है। नरपतगंज के हाट एवं बाजारों में कुम्हार समाज के द्वारा बनाई गई मिट्टी के सामा चकेवा सेखारी की खूब बिक्री हो रही है।

    पुराण में भी है उल्लेख लोकपर्व सामा-चकेवा का उल्लेख पद्म पुराण में भी है। नरपतगंज के पंडित मनोज झा बताते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण के पुत्री सामा और पुत्र साम्ब के पवित्र प्रेम पर आधारित है। चुड़क नामक एक चुगलबाज ने एक बार श्रीकृष्ण से यह चुगली कर दी कि उनकी पुत्री साम्बवती वृंदावन जाने के क्रम में एक ऋषि के संग प्रेमालाप कर रही थी। क्रोधित होकर श्रीकृष्ण ने अपनी पुत्री और उस ऋषि को शाप देकर मैना बना दिया। साम्बवती के वियोग में उसका पति चक्रवाक भी मैना बन गया। यह सब जानने के बाद साम्बवती के भाई साम्ब ने घोर तपस्या कर श्रीकृष्ण को प्रसन्न किया और अपने बहन और जीजा को श्राप से मुक्त कराया। तबसे ही मिथिला में सामा-चकेवा पर्व मनाया जाता है।

    सात दिनों तक चलता है यह त्योहार

    सात दिनों तक बहने भाई की खुशहाल जीवन के लिए मंगल कामना करती हैं। इस पर्व में बहनें पारंपरिक गीत गाती हैं। सामा-चकेवा व चुगला की कथा को गीतों के रूप में प्रस्तुत करती हैं। आखिरी दिन कार्तिक पूर्णिमा को सामा-चकेवा को टोकरी में सजा-धजा कर बहनें नदी तालाबों के घाटों तक पहुंचती हैं और पारंपरिक गीतों के साथ सामा चकेवा का विसर्जन हो जाता है।