Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck

    Bihar Politics: पंडित जी ने मुंहबोली बेटी को दिला दिया था अपना टिकट, राजनीति में त्याग की अनूठी मिसाल

    Updated: Mon, 27 Oct 2025 04:53 PM (IST)

    जोकीहाट के पंडित पुण्यानंद झा ने राजनीति में त्याग की अनूठी मिसाल पेश की। 1957 में पलासी से विधायक बनने के बाद, उन्होंने अपनी मुंहबोली बेटी शांति देवी को टिकट दिलाया। स्वतंत्रता सेनानी और लेखक पंडित जी ने सत्ता और सुख की परवाह किए बिना सिद्धांतों का पालन किया। उन्होंने शेक्सपियर की रचनाएँ कंठस्थ थीं और 'मिथिला दर्पण' नामक उपन्यास लिखा। आर्थिक कठिनाइयों के बावजूद, उनका त्याग आज भी याद किया जाता है।

    Hero Image

    पंडित जी ने मुंहबोली बेटी को दिला दिया था अपना टिकट

    ज्योतिष झा, जोकीहाट (अररिया)। राजनीति में त्याग की कहानियां अक्सर सुनने को नहीं मिलतीं। अधिसंख्य नेता अपने और अपने परिवार के राजनीतिक भविष्य के लिए हर संभव प्रयास करते हैं, लेकिन पंडित पुण्यानंद झा जैसे कुछ ही लोग हैं, जिन्होंने अपने सिद्धांतों के लिए त्याग किया। पंडित जी पहली बार कांग्रेस के टिकट पर पलासी विधानसभा से चुनाव जीतकर पटना पहुंचे।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    1957 में उन्होंने चुनाव न लड़ने का निर्णय लिया और अपनी मुंहबोली बेटी शांति देवी को कांग्रेस का टिकट देने की अनुशंसा की। यह राजनीतिक शुचिता की मिसाल आज भी क्षेत्र में चर्चा का विषय है।

    पंडित पुण्यानंद झा स्वतंत्रता सेनानी व लेखक थे। वे पलासी विधानसभा क्षेत्र के पहले विधायक (1952-57) भी थे। उन्होंने अपने मित्र की बेटी को टिकट देकर राजनीति में त्याग की एक अनूठी मिसाल पेश की। जब भी चुनाव का समय आता है, पंडित जी का त्याग लोगों की जुबान पर आ जाता है।

    रसल हाईस्कूल बहादुरगंज के सेवानिवृत्त प्रभारी प्रधानाचार्य मही नारायण झा जो पंडित जी के करीबी थे। उन्होंने बताया कि भौतिक सुख और सत्ता की कुर्सी कभी भी पंडित जी को सच्चाई से रोक नहीं सकी।

    पंडित जी ने जब पहली बार विधानसभा चुनाव जीतकर पटना पहुंचे, तब श्रीकृष्ण सिंह मुख्यमंत्री थे। पंडित जी ने कुछ नीतियों का विरोध किया और एक कविता एसेंबली में क्या क्या देखा लिखकर राजनीतिक त्रुटियों को उजागर किया। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान जब राजेंद्र बाबू अररिया आए थे, तो पंडित जी ने उन्हें खिचड़ी बनाकर खिलाई थी। पंडित जवाहरलाल नेहरू के साथ भी उनका करीबी संबंध था।

    पंडित पुण्यानंद झा एक प्रकांड विद्वान और लेखक थे, जिनकी अंग्रेजी, फारसी और मैथिली में अच्छी पकड़ थी। जहानपुर गांव के सेवानिवृत्त चीफ इंजीनियर अरविंद झा ने बताया कि पंडित जी को शेक्सपियर की कृतियां जैसे किंग लियर, मैकबेथ, ओथेलो और जुलियस सीजर जुबानी याद थीं। उन्होंने मैथिली उपन्यास मिथिला दर्पण भी लिखा था।

    हालांकि, पंडित जी का अंतिम समय दुखदायी रहा। आर्थिक कठिनाइयों में जीवन व्यतीत कर रहे पंडित जी को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने डाकघर के माध्यम से सहायता प्रदान की। आज भी पंडित जी के त्याग और सादगीपूर्ण जीवन की कहानी जनमानस में चर्चा का विषय है।