Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    Bihar Election: बिहार की इस सीट पर RJD-BJP की सीधी टक्कर, M-Y वोटर बिगाड़ सकते हैं खेल

    Updated: Sun, 09 Nov 2025 04:22 PM (IST)

    अररिया जिले की नरपतगंज विधानसभा सीट पर इस बार भाजपा और राजद के बीच कड़ा मुकाबला है। यहां यादव और मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं। भाजपा की देवंती यादव और राजद के मनीष यादव आमने-सामने हैं, जबकि जनसुराज और बागी उम्मीदवार भी मैदान में हैं, जो चुनावी समीकरण बदल सकते हैं। मुख्य मुद्दा विकास और विश्वास का है।

    Hero Image

    बीजेपी प्रत्याशी देवंती यादव और आरजेटी प्रत्याशी मनीष यादव। (जागरण)

    संवाद सूत्र, फुलकाहा (अररिया)। जिले की राजनीति में नरपतगंज विधानसभा सीट हमेशा सुर्खियों में रही है। सीमांचल के इस क्षेत्र को राजनीतिक विश्लेषक बिहार की राजनीति का जातीय आईना भी कहते हैं, क्योंकि यहां हर चुनाव में सामाजिक समीकरण परिणाम तय करते हैं।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    नरपतगंज का राजनीतिक इतिहास यह दर्शाता है कि यह सीट लंबे समय से यादव समुदाय के प्रभाव में रही है। इस बार भी यहां मुकाबले में यादव ही हैं। यहां यादव मतदाता लगभग 30 प्रतिशत तो मुस्लिम मतदाता लगभग 25 प्रतिशत है। जो यहां जीत में निर्णायक भूमिका निभाते हैं।

    यहां मुख्य मुकाबला भाजपा की देवंती यादव और राजद के मनीष यादव के बीच माना जा रहा है। देवंती यादव 2010 में यहां से भाजपा से विधायक रह चुकी है, तो मनीष यादव पहली बार चुनाव मैदान में हैं। भाजपा से चार बार विधायक रहे जर्नादन यादव इस बार जनसुराज से तो राजद से बागी पूर्व विधायक अनिल कुमार यादव निर्दलीय चुनाव मैदान में हैं।

    यहां यादव मतदाताओं के अलावा मुस्लिम, अनुसूचित जाति और पिछड़े वर्गों की भी बड़ी आबादी है, जो चुनावी परिणामों को प्रभावित करती है। पिछले दो दशकों में भाजपा और राजद के बीच मुख्य मुकाबला रहा है।

    2000 में भाजपा के जनार्दन यादव तो 2005 में राजद के अनिल कुमार यादव ने जीत दर्ज की, 2010 में फिर भाजपा की देवंती यादव तो 2015 में राजद की वापसी हुई और 2020 में भाजपा ने एक बार फिर विजय पताका फहराई। यानी, पार्टी बदली पर जाति नहीं बदली।

    जन सुराज के कार्यकर्ता लगातार क्षेत्र में सक्रिय हैं और स्थानीय मुद्दों को लेकर जनता के बीच संवाद बना रहे हैं। ऐसे में पुराने समीकरणों पर असर पड़ना तय माना जा रहा है।

    भाजपा के संगठनात्मक ढांचे और राजद के पारंपरिक यादव–मुस्लिम समीकरण के बीच अगर कोई तीसरी ताकत सक्रिय होती है तो चुनावी तस्वीर बदल सकती है।

    राजद विकास, शिक्षा, रोजगार और स्थानीय समस्याओं को मुद्दा बनाकर मैदान में है तो भाजपा केंद्र और राज्य सरकार की उपलब्धियों को गिनाते हुए विकास और विश्वास का नारा दे रही है। दोनों ने अपने स्टार प्रचारकों को मैदान में उतारा। इधर जनसुराज और निर्दलीय अनिल यादव भी क्षेत्र में मजबूत पकड़ बनाए हुए हैं।