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    Kartik Purnima 2022 : भगवान विष्‍णु के शूकर अवतार ने भारत और नेपाल को जोड़ा, कार्तिक पूर्णिमा के दिन आइए यहां

    Kartik Purnima 2022 नेपाल के वराह क्षेत्र में कार्तिक पूर्णिमा के कार्यक्रमों की धूम है। हालांकि इस दिन चंदग्रहण है। भगवान विष्‍णु के शूकर अवतार से यह क्षेत्र जुड़ा हुआ है। बिहार के अररिया जिले से ही वहां 15 से 20 हजार लोग जाते हैं।

    By Jagran NewsEdited By: Dilip Kumar shuklaUpdated: Mon, 07 Nov 2022 01:10 PM (IST)
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    Kartik Purnima 2022 : कोसी नदी के तलहटी में बसा नेपाल का वराह मंदिर।

    संवाद सूत्र, सिकटी, (अररिया)। कार्तिक पूर्णिमा को नेपाल के वराह क्षेत्र में लगने वाले मेले में कोशी-सीमांचल के हजारों श्रद्धालु पहुंचते हैं। भारत और नेपाल दो देशों के बीच सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और धार्मिक रिश्ता सदियों पुराना रहा है। कोरोना काल के कारण पिछले दो वर्षों से यहां मेले का आयोजन नहीं किया गया था। इस बार मेले में यहां अधिक भीड़ उमड़ने की संभावना है। भारत के सिर्फ अररिया जिले से ही वहां 15 से 20 हजार लोग जाते हैं। आसपास के जिलों से भी लोग पहुंचते हैं। यहां नदी के किनारे मंदिर भी बना है। इसमें भगवान विष्णु वराह रूप में विराजमान है। महेंद्र राजमार्ग पर इटहरी की ओर करीब 20 किलोमीटर के बाद ही आता है झुनकी चौक। यहां से चतरा के लिए नहर किनारे सड़क बनी है। छह किलोमीटर नहर के किनारे पैदल चलने के बाद चतरा से से ही कोसी नदी के साथ-साथ पहाड़ की चढ़ाई शुरू हो जाती है।

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    खासकर भगवान विष्णु का वराह मंदिर दो देशों को हीं नही बल्कि दो दिलों को भी जोड़ता है। माना जाता है कि भगवान विष्णु के दस अवतारों मीन, कच्छप, शुकर, नरसिंह, वामन, राम, बलराम, बुद्ध और कल्कि अवतारों में तीसरा अवतार अर्थात शुकर अवतार नेपाल के वराह क्षेत्र में विराजमान है। कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर बराह क्षेत्र में लगने वाले इस मेले में हर वर्ष भारत से हजारों लोग पहुंचते हैं। लोगों में ऐसा मानना है कि कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर इस क्षेत्र के कोसी में स्नान के पश्चात वराह भगवान की पूजा अर्चना व दर्शन से मोक्ष की प्राप्ति होती है। वराह क्षेत्र में बहने वाली कोसी नदी हिमालय से नीचे उतरती है और भारत के वीरपुर पहुंचकर कोसी बेराज में सम्मिलित हो जाती है। रोटी-बेटी का संबंध रखने वाला पड़ोसी देश नेपाल भौगोलिक दृष्टि के जरिए एक दूसरे के करीब है हीं साथ हीं अध्यात्म के माध्यम से भी एक दूसरे से जुड़ा है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार आदिकाल में हिरण्याक्ष नामक दैत्य के अत्याचार से सारे जीव त्राहिमाम कर रहे थे। यहां तक कि वह पृथ्वी को भी पाताल लोक में छिपा रखा था। सारे देवी -देवताओं ने भगवान विष्णु से पृथ्वी को बचाने की याचना की। देवताओं की विनती पर भगवान विष्णु ने वराह रूप धारण कर हिरण्याक्ष का संहार किया औऱ पृथ्वी को बाहर निकाला। वराह रूप होने के कारण उस स्थान का नाम वराह क्षेत्र पड़ा।

    मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन जो भी कोशी नदी का जल भरकर भगवान वराह को अर्पित करता है वह पुण्य का भागी बनता है। अध्यात्म की निकटता मिटा देती है दूरी: कुर्साकांटा तथा सिकटी प्रखंड से लगभग 80 किमी दूर कोशी नदी के तलहटी में स्थित भगवान विष्णु का वराह मंदिर है। इस क्षेत्र के लोग नेपाल के बार्डर क्षेत्र बेतौना के रास्ते विराटनगर होते हुए चतरागद्दी पहुंचते हैं। चतरागद्दी में 10-12 बजे तक सैकड़ों की संख्या में लोग जमा होते है।

    मध्य रात्रि के बाद से लोग मंदिर जाने के लिए प्रस्थान करते है। वहां से छह किमी दूर पहाड़ियों का रास्ता तय कर पहुंचना होता है। रास्ते भर वराह क्षेत्र कि प्राकृतिक छटा, लोगों का रहन-सहन, बोलचाल आदि को नजदीक से जानने का मौका मिलता है। दिल की निकटता दूरी को मिटा देती है।

    मिट जाती है भाषा की विविधताएं: लगातार वराह क्षेत्र जाने वाले दीपक केशरी, चंदन यादव, भोला साह, सरदार गोरख सिंह, पवन साह, ठेंगापुर से बिनोद कुमार मंडल, करण सिंह, विनोद चौधरी, कूर्साकांटा से पप्पू गुप्ता आदि बताते हैं कि नेपाल पहुंचने पर वहां की टूटी-फूटी भाषा बोलने लगते हैं। नेपाली समझ में भी आती है। यही कारण है कि भीतरी इलाकों में भी भारतीय लोगों को कोई परेशानी नहीं होतीं।

    क्या कहते हैं पंडित

    बराहक्षेत्र को काफी पवित्र माना जाता है और इसका वर्णन कई सारे पुराणों में भी मिलता है। विद्वान पंडित उमेश तिवारी कहते हैं कि ब्रह्म पुराण, वराह पुराण और स्कंद पुराण के साथ-साथ महाभारत में भी इस पवित्र और चमत्कारिक स्थल का वर्णन किया गया है। हिन्दू धर्म के पौराणिक कथाओं के अनुसार जिस तरीके से चार धाम का महत्व है वैसे ही चार क्षेत्र का भी महत्व है। चार में से दो क्षेत्र भारत में कुरुक्षेत्र और धर्मक्षेत्र और दो क्षेत्र बराहक्षेत्र और मुक्तिक्षेत्र नेपाल में है।