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    Harivansh Rai Bachchan jayanti: रेणु की धरती पर याद किए गए हरिवंश राय बच्चन, साहित्याकारों ने कही मन की बात

    By Anil Kumar TripathiEdited By: Shivam Bajpai
    Updated: Sun, 27 Nov 2022 06:19 PM (IST)

    Harivansh Rai Bachchan jayanti फणीश्वर नाथ रेणु की धरती अररिया में साहित्यकारों ने हरिवंश राय बच्चन की जयंती पर उनके तैल चित्र पर श्रद्धा सुमन अर्पित कर श्रद्धांजलि दी। इस अवसर पर बच्चन की लिखी कविताओं का जिक्र किया गया।

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    Harivansh Rai Bachchan jayanti: 27 नवंबर 1907।

    संवाद सूत्र, फारबिसगंज (अररिया): फणीश्वर नाथ "रेणु" की धरती अररिया के फारबिसगंज की प्रोफेसर कालोनी स्थित द्विजदेनी प्रांगण में हिंदी साहित्य के महान कवि हरिवंश राय बच्चन की जयंती मनाई गई। कार्यक्रम की अध्यक्षता बाल साहित्यकार हेमंत यादव शशि और संचालन युवा कवि गौतम केसरी ने की। सर्वप्रथम बच्चन की तस्वीर पर उपस्थित साहित्यकारों एवं साहित्य प्रेमियों द्वारा श्रद्धा सुमन अर्पण किया गया।

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    कार्यक्रम में प्रतिभाग करने वाले साहित्यकार सुरेन्द्र प्रसाद मण्डल, हर्ष नारायण दास, विनोद तिवारी, अरविन्द ठाकुर एवं सभाध्यक्ष यादव ने बताया कि हरिवंश राय बच्चन का जन्म 27 नवंबर 1907 को प्रयागराज और मृत्यु 18 जनवरी 2003 को मुंबई में हुई। वे हिंदी साहित्य के एक प्रसिद्ध कवि और लेखक थे। वे हिंदी कविता के उत्तर छायावाद काल के प्रमुख कवियों में से एक थे। उनकी सबसे प्रसिद्ध कृति मधुशाला है। बताया 1976 में उन्हें हिंदी साहित्य में उनकी सेवा के लिए पद्म भूषण मिला। वहीं 2003 में भारत सरकार ने उनकी स्मृति में डाक टिकट भी जारी किया। भारत सरकार ने उन्हें राज्यसभा के लिए भी मनोनीत किया था। मधुशाला, मधुबाला, निशा निमंत्रण, सूत की माला आदि उनकी प्रसिद्ध रचनाएँ हैं। इस अवसर पर अनेक साहित्य प्रेमी और स्कूली बच्चे उपस्थित थे।

    साहित्यकारों ने बताया कि हरिवंश राय बच्चन की कई कविताएं हैं। इनमें तेरा हार (1929), मधुशाला (1935), मधुबाला (1936), मधुकलश (1937), आत्म परिचय (1937), निशा निमंत्रण (1938), एकांत संगीत (1939), आकुल अंतर (1943), सतरंगिनी (1945), हलाहल (1946), बंगाल का काल (1946), खादी के फूल (1948), सूत की माला (1948), मिलन यामिनी (1950), प्रणय पत्रिका (1955), धार के इधर-उधर (1957), आरती और अंगारे (1958), बुद्ध और नाचघर (1958), त्रिभंगिमा (1961), चार खेमे चौंसठ खूंटे (1962), दो चट्टानें (1965), बहुत दिन बीते (1967), कटती प्रतिमाओं की आवाज (1968), उभरते प्रतिमानों के रूप (1969), जाल समेटा (1973) और नई से नई-पुरानी से पुरानी (1985) आदि रचनाएं लोगों के जहन में उन्हें अमर कर जाती हैं।