Bihar Election 2025: पैतृक विरासत के लिए दो भाइयों में वर्चस्व की लड़ाई, सियासी माहौल गर्म
बिहार चुनाव 2025 के नज़दीक आते ही, एक परिवार में पैतृक संपत्ति को लेकर दो भाइयों में वर्चस्व की जंग छिड़ गई है। दोनों भाई अपने समर्थकों के साथ मतदाताओं को आकर्षित करने में लगे हैं, जिससे राजनीतिक माहौल और भी उत्तेजित हो गया है। मतदाताओं में इस पारिवारिक कलह को लेकर उत्सुकता बनी हुई है कि कौन विरासत को संभालेगा।

शाहनवाज आलम विधायक जोकीहाट और सरफराज आलम, पूर्व सांसद (फाइल फोटो)
ज्योतिष झा, जोकीहाट (अररिया)। जोकीहाट विधानसभा पर पूर्व केंद्रीय मंत्री स्व तसलीमुद्दीन से लेकर उनके दोनों पुत्रों का कब्जा रहा है। इस विधानसभा चुनाव में भी पिछली बार की तरह दोनों भाई एक बार फिर आमने सामने हो सकते हैं। यह चुनाव इस परिवार की प्रतिष्ठा से जुड़ी है। यहां अधिकतर चुनावों में तसलीमुद्दीन से लेकर उनके पुत्र सरफराज आलम व शाहनवाज आलम विधायक चुने गए हैं।
तसलीमुद्दीन के निधन के बाद उनके बड़े पुत्र सरफराज आलम लोकसभा उपचुनाव 2018 में अररिया से सांसद बने। जिसके बाद उन्हें जोकीहाट से विधायक पद से इस्तीफा देना पड़ा था। उस समय सरफराज आलम की इच्छा थी कि उनके पुत्र गुलाब को राजद का टिकट मिले, लेकिन तसलीमुद्दीन के छोटे पुत्र शाहनवाज आलम राजद का टिकट लेकर उपचुनाव जीत गए।
फिर 2020 के विधानसभा चुनाव में दोनों भाई जोकीहाट में आमने सामने हो गए। भाग्य ने फिर शाहनवाज का साथ दिया और वह बडे़ भाई राजद प्रत्याशी सरफराज आलम को शिकस्त देकर एआईएमआईएम से विधायक बन बैठे। तब से दोनों के बीच पिताजी तसलीमुद्दीन के राजनीतिक विरासत की असली वारिस की लड़ाई चल रही है। फिर से चुनाव सामने है।
फिलहाल, शाहनवाज आलम महागठबंधन से राजद विधायक हैं। जोकीहाट विधानसभा में उनके कुल्हैया बिरादरी की बड़ी आबादी है,जो तसलीमुद्दीन परिवार के समर्थक रहे हैं, इसलिए जोकीहाट विधानसभा को ही दोनों भाई राजनीतिक भविष्य के लिए चुनते हैं। दोनों के बीच राजनीतिक वैमनष्यता बढ़ती ही जा रही है। इसलिए इसे जोकीहाट विधानसभा में दोनों भाईयों के बीच वर्चस्व की लड़ाई के रूप में देखा जा रहा है।
दोनों भाई एक बार फिर हो सकते हैं आमने-सामने
फिलहाल शाहनवाज आलम जोकीहाट से विधायक हैं, वहीं पूर्व सांसद सरफराज आलम लगातार क्षेत्र में जमकर ताल ठोक रहे हैं। वे किस पार्टी से मैदान में आ रहे हैं यह अब तक क्लियर नहीं है। समर्थकों का कहना है कि सरफराज आलम निर्दलीय मैदान में उतर सकते हैं। हलांकि, जदयू में जाने की चर्चा भी जोरों पर है।
वहीं, पिछले विधानसभा चुनाव में एआईएमआईएम को जोकीहाट में मिली जीत से हौसले बुलंद हैं। असदुद्दीन ओवैसी के पिछले दिनों रोड शो में उमड़ी भीड़ की भी विधानसभा में चर्चा है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि एआईएमआईएम फिर से गणित बिगाड़ सकता है। वहीं, बिहार में तेजस्वी सरकार और विकास के बल पर शाहनवाज आलम और उनके समर्थकों द्वारा महागठबंधन की जीत की दावा की जा रही है।
अब तक के विधानसभा चुनावों के परिणाम पर गौर करें तो तसलीमुद्दीन के राजनीति में सक्रिय होने के बाद जोकीहाट विधानसभा में उनके ही परिवार का दबदबा रहा है। 1967 में नजामुद्दीन विधायक बने, वहीं 1969 में तसलीमुद्दीन विधायक बनकर जोकीहाट की कमान संभाली। उसके बाद सिर्फ 1980, 1990 और 2005 को छोड़कर सभी चुनावों में तसलीमुद्दीन परिवार विभिन्न दलों से जीतते रहे हैं।
इस तरह विधानसभा चुनाव परिणाम को देखें तो अधिकांश चुनाव में तसलीमुद्दीन और उनके पुत्र सरफरा आलम व शाहनवाज आलम विधायक की कुर्सी पर काबिज रहे हैं। लेकिन अब यहां त्रिकोणीय संघर्ष पिछले चुनाव से देखने को मिल रहा है। पिछले चुनाव में शाहनवाज आलम एआईएमआईएम से विधायक बने, उन्हें 59,596 मत मिले थे।
निकटतम प्रतिद्वंद्वी उनके बडे़ भाई सरफराज आलम राजद उम्मीदवार थे उन्हें 52,213 वोट और भाजपा के रंजीत यादव को 48,933 मत मिले थे, इसलिए पोलिंग के ट्रेंड को देखें तो जोकीहाट विधानसभा में तीन ध्रुवों में वोट बंट रहा है, इसलिए किसका पलड़ा भारी होगा यह तो चुनाव परिणाम बताएगा, लेकिन तसलीमुद्दीन परिवार की राजनीतिक साख की असली परीक्षा आगामी विधानसभा चुनाव है।
सरपंच से संसद तक का तसलीमुद्दीन का राजनीतिक सफर
4 जनवरी 1940 को जोकीहाट के सिसौना में साधारण किसान परिवार में जन्मे तसलीमुद्दीन सर्वप्रथम 1959 में सिसौना से सरपंच बने। वर्ष 1964 में वहीं से मुखिया बने। गरीबी और बाढ से जूझ रहे सीमांचल में जमीन से जुड़े नेताओं की उन्होंने कमी महसूस की। उस समय जोकीहाट में सामंतों का बोलवाला था। गरीबों और मजलूमों की आवाज बनकर एक नायक की तरह तसलीमुद्दीन का राजनीतिक जीवन में पदार्पण हुआ।
जोकीहाट विधानसभा में जरूरतमंदों के प्रति उनकी सहानुभूति ने रातोंरात उन्हें लोकप्रिय बना दिया। समर्थकों के आग्रह पर पहला विधानसभा चुनाव उन्होंने जोकीहाट से 1969 में लड़ा और जीत हासिल कर सनसनी फैला दी। इसके बाद उन्होंने राजनीति में कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
राजनीतिक कैरियर में छलांग लगाते हुए कांग्रेस, जनता दल, राष्ट्रीय जनता दल, समाजवादी पार्टी से विधानसभा से लेकर लोकसभा पहुंचे। तसलीमुद्दीन छह बार सांसद निर्वाचित हुए। सबसे पहले 1977 में जनता पार्टी से किशनगंज लोकसभा से सांसद बने फिर 1989,1996, 1998,2004 व 2014 में सांसद बने। 1996 में देवगौड़ा सरकार में उन्हें केंद्रीय गृह राज्य मंत्री बनाया गया।
वर्ष 2000 में किशनगंज विधानसभा से चुनाव जीतने पर राबड़ी मंत्रिमंडल में भवन निर्माण मंत्री बने। राजनीतिक जीवन में उतार चढ़ाव के बावजूद हमेशा जनता से जुड़े रहे। उनकी पहचान एक संघर्षशील, निष्पक्ष व निर्भीक नेता के रूप में रही, इसलिए उन्हें सीमांचल गांधी के रूप में लोग जानने लगे। वे अपने क्षेत्र और समुदाय के विकास के लिए हमेशा केंद्र व राज्य सरकारों के सामने बेबाकी से अपनी बातें रखते थे। वर्ष 2017 में अररिया से राजद सांसद रहते उनका निधन हो गया। निधन के आठ वर्ष बाद भी उनकी लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आई है।
जोकीहाट विधानसभा के अबतक के विधायक
वर्ष | नाम | पार्टी |
---|---|---|
1967 | नजामुद्दीन | प्रजा सोशलिस्ट पार्टी |
1969 | तसलीमुद्दीन | कांग्रेस |
1972 | तसलीमुद्दीन | कांग्रेस |
1977 | तसलीमुद्दीन | जनता पार्टी |
1980 | मोईदुर्रहमान | कांग्रेस |
1985 | तसलीमुद्दीन | जनता पार्टी |
1990 | मोईदुर्रहमान | कांग्रेस |
1995 | तसलीमुद्दीन | समाजवादी पार्टी |
1996 (उपचुनाव) | सरफराज आलम | जनता दल |
2000 | सरफराज आलम | राजद |
2005 | मंजर आलम | जदयू |
2010 | सरफराज आलम | जदयू |
2015 | सरफराज आलम | जदयू |
2018 (उपचुनाव) | शाहनवाज | राजद |
2020 | शाहनवाज | एआइएमआइएम |
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