अनीता का फुटवियर स्टार्टअप बना बिहार के आरा का ब्रांड, महिलाओं को रोजगार भी
अनीता की फैक्ट्री में प्रतिदिन 150 जोड़े जूते बनाए जाते हैं। कुछ मशीनें भी लगा रही हैं जिससे दिसंबर के अंत तक चार सौ जोड़े जूते रोज बनने लगेंगे। फैक्ट्री में अभी दस महिला और पुरुष कारीगर काम कर रहे हैं।
कंचन किशोर, आरा: चमड़े से जुड़े उत्पाद में बिहार के आरा की एक महिला ने वोकल फार लोकल की अवधारणा को बल देते हुए अच्छी सफलता प्राप्त की है। उनके परिवार में कोई भी ऐसे किसी कारोबार से नहीं जुड़े हैं। उन्होंने अलग हटकर कुछ करने की ठानी और नोयडा में फुटवियर डिजाइनिंग एंड डेवलपमेंट इंस्टीच्यूट से मास्टर डिग्री ली। इस पढ़ाई का सदुपयोग कर कहीं नौकरी की बजाय खुद उद्यमी बनीं और 20 अन्य महिलाओं को प्रशिक्षण देकर उन्हें अपने यहां रोजगार भी दे रही हैं। वे 'फैक्ट्री' ब्रांड से जूते-चप्पल तैयार कर दुकानों को सप्लाई कर रही हैं। साथ ही शहर के पकड़ी इलाके में फैक्ट्री ट्रेड जोन (एफटीजेड) नाम से एक आउटलेट भी बना लिया है।
अनीता बताती हैं कि किसी बड़ी फुटवियर कंपनी में नौकरी करने का उनके पास आसान विकल्प था, लेकिन उन्होंने जो कुछ सीखा, उसका प्रयोग अपने शहर में करने का निर्णय लिया। डेढ़ साल पहले एमएसएमई से सहयोग लेकर रोशनीता इंटरप्राइजेज नाम से लेदर उत्पाद की अपनी कंपनी बनाई। बाजार की नब्ज पकड़ी, सस्ते में नए डिजाइन प्रस्तुत किए, इससे कम समय में इनका उद्योग चल निकला। अब तो आसपास के शहरों में भी इनके ब्रांड की पहचान बन गई है। एमएसएमई और सुविधा कार्यालय के सहयोग से वे महिलाओं को फुटवियर निर्माण का प्रशिक्षण भी देती हैं। साफगोई से स्वीकार करती हैं कि इस उद्योग में लाभ अच्छा है। अब प्रयास है कि फुटवियर और लेदर के अन्य उत्पाद में भोजपुर की देश स्तर पर पहचान बने।
अनीता ने एक अनूठा प्रयोग किया। वे लोगों के लगाव और आराम से जुड़े उनके पुराने जूते-चप्पल को नया लुक देने का प्रस्ताव देने लगीं, ग्राहकों को यह तरीका पसंद आया और आर्डर देने लगे। कहती हैं, अधिकतर भारतीय संबंध हो या वस्तु, उससे अपनापा महसूस करते हैं, संवेदनात्मक तौर पर जुड़ जाते हैं। इसी कारण उनका यह आइडिया चल निकला, वे अपनी फैक्ट्री में पुराने फुटवियर को नया नहीं करतीं बल्कि संबंधों को तरोताजा कर देती हैं।
अनीता का दूसरा सिद्धांत है, अच्छी गुणवत्ता के साथ ज्यादा बिक्री और कम मुनाफा। अब इसे ग्राहक और दुकानदार दोनों समझने लगे हैं, इससे ब्रांड वैल्यू बढ़ गई है, लोग आंख मूंद भरोसा करने लगे हैं। वे शीघ्र ही ग्राहकों की मांग पर घर जाकर जूते की मरम्मत करने के लिए कारीगर उपलब्ध कराएंगी।
अनीता की फैक्ट्री में प्रतिदिन 150 जोड़े जूते बनाए जाते हैं। कुछ मशीनें भी लगा रही हैं, जिससे दिसंबर के अंत तक चार सौ जोड़े जूते रोज बनने लगेंगे। फैक्ट्री में अभी दस महिला और पुरुष कारीगर काम कर रहे हैं। कारीगर अनुराधा, सफीका, शबनम और खुशबू बताती हैं कि काम के अनुसार यहां पैसे मिलते हैं और अभी माह में सात-आठ हजार रुपये तक हो जाते हैं।