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    तीन सौ वर्ष पुरानी है मिथिला राज्य की अवधारणा

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    Updated: Sat, 26 May 2012 07:35 PM (IST)

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    फारबिसगंज(अररिया),जासं: मिथिला राज्य की अवधारणा तीन सौ वर्षो से भी पुरानी है। सन् 1902 ई. में मिथिला राज्य के तीस जिलों को मिला कर एक मानचित्र भी बनकर सामने आ गया था। लेकिन सरकार की उदासीनता और कुछ बड़े राजनेताओं की राजनीतिक महत्वाकांक्षा में आज तक मिथिला राज्य की स्थापना नहीं हो सकी।

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    अंतरराष्ट्रीय मैथिली परिषद के संस्थापक अध्यक्ष डा. धनाकर ठाकुर ने उक्त बातें शनिवार को प्रेस वार्ता में कही। श्री ठाकुर ने कहा कि भारत और और नेपाल का बड़ा भू-भाग मैथिल भाषी है। जहां दोनों देशों में मिथिला राज्य के गठन को लेकर आंदोलन जारी है। उन्होंने कहा कि भारत और नेपाल राजनीतिक रूप से दो देश हैं, लेकिन सांस्कृतिक रूप से दोनों देश एक सामान हैं। श्री ठाकुर ने कहा कि प्रस्तावित मिथिला राज्य में बिहार के पुराने भागलपुर एवं तिरहुत प्रमंडल के 24 जिला सारण को छोड़कर तथा झारखंड के छह जिलों कुल 30 जिला को शामिल किया गया है जिसकी आबादी करीब सात करोड़ है। वहीं क्षेत्रफल 70 हजार वर्ग किमी है। बिहार सरकार ने उर्दू को द्वितीय भाषा का दर्जा दिया। जबकि राज्य में सबसे अधिक मैथिली भाषा बोली जाती है। सन् 1919 ई. में पहली बार कोलकाता विवि., 1937 ई. में बनारस विवि., 1948 पटना विवि में मैथिली विषय की पढ़ाई शुरू हुई। लेकिन आज स्कूली शिक्षा में मैथिली को स्थान नहीं है। मैथिली शिक्षक की बहाली सरकार नहीं कर रही है। उन्होंने कहा कि 1902 ई. में अंग्रेज सरकार के एक अधिकारी सर ग्रियर्सन ने भाषा आधारित सर्वेक्षण कर मिथिला राज्य का मानचित्र तैयार किया था। जबकि 1881 ई. में मिथिला शब्द कोष भी बनकर तैयार हो गया। लेकिन बिहार अलग हो गया और मिथिला राज्य को रोकने के लिए इसके अलग अलग क्षेत्रों को कोसी, सीमांचल जैसे नाम देकर साजिश के तहत मिथिला को विखंडित करने का प्रयास किया जा रहा है। यह क्षेत्र मिथिला का भाग है। उन्होंने कहा कि 14 अप्रैल को प्रतिवर्ष मिथिला स्थापना दिवस मनाया जाता है। जबकि मिथिला राज्य की मांग को लेकर आंदोलन और तेज किया जायेगा।

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