लटकन की दसों उंगलियां घी में, नेता का सिर कढ़ाई में
अररिया [आशुतोष कुमार निराला]। चुनाव से अच्छा मौसम कोई होता ही नहीं है खासकर वैसे लोगों के लिए जो थोड
अररिया [आशुतोष कुमार निराला]। चुनाव से अच्छा मौसम कोई होता ही नहीं है खासकर वैसे लोगों के लिए जो थोड़ा सा दिमाग लगाना जानता हों। बस ऐसे लटकनों की तो दसों उंगलियां घी है। हां अलग बात है कि उनके नेता का सिर खौलते कढ़ाई में जाना भी तय है! अभी दिन-रात का भोजन के साथ-साथ पॉकेट भी थोड़ा भारी हो जा रहा है। अभी ऐसे लटकन टाइप नेताओं की तो यहां बाढ़ सी आ गई है। वे ¨जस पैंट के उपर क्रीजदार कुर्ता और एक एंड्रायड फोन हाथ में लेकर अपने नेताजी को पटाने के लिए उंगली पर वोट गिनाने शुरू कर देते हैं। यह अलग बात है कि उनके कहने पर उनके रिश्तेदार या दोस्त भी वोट नहीं देंगे। खैर दुकान चलना चाहिए न। इसके लिए वे इस तरह की चिकनी चुपड़ी बातों में नेताजी को लाने का प्रयास करते हैं दिन भर नेताजी के पैसे पर ऐश करने के बाद अगले दिन का खर्चा-पानी लेने के लिए जब रात्रि में नेताजी के पास पहुंचते हैं तो साफ तौर पर दिन भर की थकावट को बताते हुए ये कहना नहीं भूलते हैं कि आज तो और भी पॉकेट से खर्चा हो गया क्योंकि वोट के अमुख लोग तैयार ही नहीं थे। मनाने में पान-पुड़िया के साथ नास्ता-चाय भी कराना पड़ा और कल के लिए गला तर का भी आश्वासन दिए हैं। इनमें से कई ऐसे लटकन भी यहां जुगाड़ लगाकर पहुंच गए है जो दिल्ली-पटना में किसी तरह दो रोटी का जुगाड़ करते हैं और चुनाव के समय नेताजी में सटकर हाईटेक चुनाव प्रचार का तरीका बताकर माल छांक रहे हैं। जबकि सच्चाई ये है कि जो दिल्ली मुम्बई की तर्ज पर हिन्दी बोलकर लोगों को वोट देने के लिए कहते हैं उससे कार्यकर्ता व ग्रामीण भी चिढ़ते हैं क्योंकि उनसे उनको अपनी भाषा या अपनापन का बोध नहीं होता है। लेकिन, अभी तो भैया चुनाव का मौसम है ये सब तो चलता ही रहता हैँ।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।