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    मोटर व्हीकल टैक्स को लेकर सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला, इस्तेमाल न होने वाले वाहनों पर कोई रोड टैक्स नहीं

    Updated: Mon, 01 Sep 2025 12:51 PM (IST)

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अगर कोई वाहन सार्वजनिक स्थान पर इस्तेमाल नहीं होता तो उस पर मोटर वाहन टैक्स नहीं लगेगा। कोर्ट ने आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील पर यह निर्णय दिया। जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस उज्ज्वल भुयान की बेंच ने कहा कि मोटर वाहन टैक्स सड़कों के उपयोग के बदले लिया जाता है।

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    सुप्रीम कोर्ट का फैसला, सार्वजनिक स्थान पर इस्तेमाल न होने वाले वाहनों पर मोटर वाहन टैक्स नहीं

    ऑटो डेस्क, नई दिल्‍ली। सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि अगर किसी वाहन का इस्तेमाल या उसे सार्वजनिक स्थान पर इस्तेमाल के लिए नहीं रखा जाता है, तो उसके मालिक पर मोटर वाहन टैक्स का बोझ नहीं डाला जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट के एक फैसले के खिलाफ दायर अपील पर यह फैसला सुनाया।

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    जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस उज्ज्वल भुयान की बेंच ने कहा कि मोटर वाहन टैक्स क्षतिपूर्ति के रूप में होता है, यानी यह सार्वजनिक बुनियादी ढांचे जैसे सड़कों और राजमार्गों के उपयोग के बदले लिया जाता है। अगर कोई वाहन सार्वजनिक स्थान पर इस्तेमाल नहीं हो रहा है, तो वह इन बुनियादी ढांचों से कोई लाभ नहीं ले रहा है, इसलिए उस पर टैक्स नहीं लगाया जाना चाहिए।

    सार्वजनिक स्थान पर ही लगता है टैक्स

    • सुप्रीम कोर्ट ने आंध्र प्रदेश मोटर वाहन कराधान अधिनियम, 1963 की धारा 3 का हवाला दिया, जो वाहनों पर टैक्स लगाने से संबंधित है। कोर्ट ने कहा कि इस प्रावधान में सार्वजनिक स्थान शब्द का इस्तेमाल सोच-समझकर किया गया है। इसका मतलब है कि टैक्सेबल इवेंट तभी होता है, जब कोई वाहन राज्य में सार्वजनिक स्थान पर इस्तेमाल किया जाता है या इस्तेमाल के लिए रखा जाता है।
    • कोर्ट ने इस मामले में एक लॉजिस्टिक फर्म की अपील को स्वीकार करते हुए यह फैसला सुनाया। यह फर्म राष्ट्रीय इस्पात निगम लिमिटेड (RINL) के परिसर के भीतर लोहे और स्टील के सामानों के लिए लॉजिस्टिक सपोर्ट दे रही थी। फर्म ने अपनी 36 गाड़ियों को केवल RINL के अंदर ही इस्तेमाल किया, जो कि एक बंद और प्रतिबंधित क्षेत्र था।

    RINL परिसर सार्वजनिक स्थान नहीं है

    • फर्म ने कोर्ट को बताया कि RINL का सेंट्रल डिस्पैच यार्ड चारदीवारी से घिरा हुआ है और इसमें प्रवेश और निकास दरवाजों से कंट्रोल होता है, जहां CISF के जवान तैनात होते हैं। इस परिसर में किसी भी आम नागरिक को जाने का अधिकार नहीं है। इसलिए, यह एक सार्वजनिक स्थान नहीं है।
    • पहले, आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट के एक सिंगल जज ने भी फर्म के पक्ष में फैसला सुनाया था और अधिकारियों को 22,71,700 रुपये की टैक्स राशि वापस करने का निर्देश दिया था। हालांकि, बाद में एक डिवीजन बेंच ने उस आदेश को रद्द कर दिया था। अब सुप्रीम कोर्ट ने सिंगल जज के फैसले को सही ठहराया है।
    • सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब वाहनों का इस्तेमाल केवल RINL के प्रतिबंधित परिसर के भीतर हो रहा था, तो उन्हें सार्वजनिक स्थान पर इस्तेमाल किए जाने या रखे जाने का सवाल ही नहीं उठता। इसलिए, उन वाहनों पर टैक्स नहीं लगाया जा सकता।

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