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    नए साल पर क्यों बढ़ती है कारों की कीमत? यहां समझिए पूरा मामला

    Updated: Tue, 23 Dec 2025 02:03 PM (IST)

    नया साल आते ही कार निर्माता कंपनियां कीमतें बढ़ाने की घोषणा करती हैं, जिसका मुख्य कारण बढ़ती उत्पादन लागत, बाजार की चाल और कंपनियों की दीर्घकालिक व्या ...और पढ़ें

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    नए साल में क्यों बढ़ जाती हैं कारों की कीमतें?

    ऑटो डेस्क, नई दिल्‍ली। अक्सर देखने के लिए मिलता है कि नया साल करीब आते ही कार निर्माता कंपनियां कीमत बढ़ाने की घोषणा करने लगती है। कंपनियां इसके पीछे का कारण इजिंग इनपुट कॉस्ट यानी बढ़ती उत्पादन लागत को बताती है, लेकिन हकीकत कुछ और ही होती है। असली वजह तो बाजार की चाल, ग्राहकों का माइंडसेट और कंपनियों की लॉन्ग-टर्म बिजनेस प्लानिंग होती है। हम यहां पर आपको विस्तार में बता रहे हैं कि आखिर जनवरी के आसपास कारों के दाम क्यों बढ़ते हैं और इससे कार कंपनियों को क्या फायदा होता है?

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    1. कार मैन्युफैक्चरिंग

    किसी भी कार का निर्माण करना कैपिटल-इंटेंसिव बिजनेस होता है। इसके लिए एक कंपनी को फैक्ट्री, मशीनरी, सप्लायर नेटवर्क, लॉजिस्टिक्स और डीलरशिप पर भारी निवेश करना पड़ता है। इसके साथ ही कई तरह के और भी खर्चे होते हैं, जो मुनाफे पर असर डालते हैं। अगर बिक्री सही रही तो यह बिजनेस को मजबूत कमाई करता है, लेकिन थोड़ी-सी भी गड़बड़ी पूरे सिस्टम को हिला सकती है। यही वजह है कि हर छोटा-बड़ा फाइनेंशियल फैसला कार कंपनियों के लिए बेहद अहम होता है।

    2. अनसोल्ड इन्वेंट्री

    किसी भी कार कंपनी के लिए सबसे बड़ा डर बिकी न जा सकी गाड़ियां का होता है। जब कारें डीलर यार्ड में खड़ी रह जाती हैं, तो कंपनी का कैश फंस जाता है। इसकी वजह से स्टोरेज और इंश्योरेंस जैसे खर्च बढ़ते हैं। साथ ही ब्रांड इमेज पर भी असर पड़ता है। सोचिए, कोई ग्राहक 20 लाख रुपये की कार उस ब्रांड से क्यों खरीदेगा, जिसकी गाड़ियां बिना बिके खड़ी हों? भारत जैसे बाजार में जहां डिमांड, रीसेल वैल्यू और भरोसे को बहुत अहमियत दी जाती है, वहां यह स्थिति और भी खतरनाक हो जाती है।

    3. ग्राहक का माइंडसेट

    कई ग्राहकों की सोच बहुत साफ होती है। पिछले साल की बनी कार भले ही बिल्कुल नई हो, लेकिन पुरानी मानी जाती है। भले ही कार मैकेनिक तौर पर बिल्कुल एक-सी हो, लेकिन नया कैलेंडर साल शुरू होते ही पुराना मॉडल ईयर रीसेल वैल्यू के मामले में कमजोर लगने लगता है। ऐसे में ग्राहक तभी पिछले साल की कार खरीदता है, जब उसे अच्छा-खासा डिस्काउंट मिल रहा होता है।

    सालाना कीमत बढ़ाने की रणनीति

    दिसंबर में आमतौर पर कार बिक्री धीमी हो जाती है। इसे संभालने के लिए कंपनियां ईयर-एंड डिस्काउंट और ऑफर्स देती हैं। इससे बिक्री तो बढ़ती है, लेकिन मुनाफा घटता है। नया साल शुरू होते ही कंपनियों के पास दो तरह की गाड़ियां होती हैं पहली पिछले साल की इन्वेंट्री (MY25) और दूसरी नए साल की इन्वेंट्री (MY26)।

    अब अगर MY26 कारों की कीमत थोड़ा बढ़ा दी जाए और MY25 पर डिस्काउंट दिया जाए, तो क्या होता है?

    1. MY25 कार अचानक ज्यादा वैल्यू फॉर मनी लगने लगती है।
    2. ग्राहक सोचता है कि वह “प्राइस हाइक से बच रहा है।
    3. कंपनी बिना ज्यादा डिस्काउंट बढ़ाए पुराना स्टॉक क्लियर कर लेती है।

    कंपनियों को और कैसे फायदा होता है?

    नई साल की कारों की ऊंची कीमत, पुराने स्टॉक पर दिए गए डिस्काउंट से हुए नुकसान की भरपाई करती है। छोटी-छोटी सालाना बढ़ोतरी मिलकर लंबे समय में नई प्राइस रेंज और सेगमेंट बना देती है। आगे चलकर कंपनियां इन्हीं नए प्राइस पॉइंट्स पर नए मॉडल या वेरिएंट लॉन्च कर पाती हैं।

    जनवरी ही क्यों होती है कीमत बढ़ाने के लिए सबसे सही समय?

    भारतीय बाजार में अगस्त से नवंबर तक फेस्टिव सीजन में बिक्री पीक पर होती है। फरवरी में यूनियन बजट बिक्री पर असर डाल सकता है। इसलिए जनवरी ऐसा समय होता है जब बाजार अपेक्षाकृत स्थिर रहता है और कीमत बढ़ाने का असर कम महसूस होता है।

    हमारी राय

    जनवरी में कारों की कीमतें इसलिए नहीं बढ़ती कि कंपनियां मजबूर होती हैं, बल्कि इसलिए क्योंकि यह उनके लिए सबसे स्मार्ट बिजनेस मूव होता है। इससे पुराने स्टॉक की बिक्री तेज होती है, मुनाफे का बैलेंस बना रहता है और ग्राहक को भी डिस्काउंट का फायदा मिलता है।