कब और कैसे बनता है राजयोग? इस तरह व्यक्ति के जीवन को बनाता है खुशहाल
ज्योतिषीय ग्रंथों में राजयोग के विशेष महत्व के बारे में बताया गया है। इस योग के बनने से कई तरह के लाभ मिलते हैं। ऐसे में आइए एस्ट्रोलॉजर आनंद सागर पाठक से जानते हैं कि कब और कैसे बनता है राजयोग और किस तरह व्यक्ति के जीवन को बनाता है खुशहाल।

आनंद सागर पाठक, एस्ट्रोपत्री। राज योग लाभकारी योग होता हैं जो जातक को उनके जीवन और करियर में उच्च पदों की प्राप्ति में सहायता करते हैं। ज्योतिषीय ग्रंथों में राज योगों को अत्यधिक महत्व दिया गया है। यद्यपि आज के समय में राजा नहीं होते, फिर भी एक प्रतिज्ञात राज योग व्यवसाय, पेशे या सरकारी सेवाओं में प्रतिष्ठित स्थिति दे सकता है। यह जातक को मंत्रियों की पदवी भी दे सकता है। यदि कुंडली में अच्छे राज योग हों तो जातक महान व्यावसायिक और सामाजिक स्थिति प्राप्त कर सकता है।
कैसे बनता है राज योग?
यदि जन्म के समय तीन या अधिक ग्रह केंद्रों में अपनी राशियों में हों, तो जातक बड़ा अधिकारी बनता है। पांच या अधिक ग्रह यदि उच्च या स्वगृह में केंद्र में हों, तो सामान्य कुल में जन्मा व्यक्ति भी करोड़ों का मालिक बनता है, उसके पास महंगी गाड़ियां होती हैं।
अमीर और बड़े परिवार में जन्मा व्यक्ति तब बनता है जब उस पर दुर्योग न हो और कोई ग्रह अस्त न हो। यदि तीन या अधिक ग्रह उच्च या स्वगृह में केंद्र में हों और जातक राजपरिवार से हो, तो वह बेहद अमीर बनता है। सामान्य कुल में हो, तो लोकप्रिय और समृद्ध बनता है।
एक ग्रह भी यदि नीच न होकर पाप भावों (6, 8, 12) में न हो, अस्त न हो, प्रखर हो, वक्री न हो तो जातक बड़ा पदाधिकारी समान बनता है। शुभ भावों और नवांश में कई ग्रह हों तो जातक राज चिह्नों सहित उच्च पद प्राप्त करता है।
दिग्बल का नियम:-
- सूर्य-मंगल को दशम, चंद्र-शुक्र को चतुर्थ, बुध-बृहस्पति को प्रथम, और शनि को सप्तम भाव में दिग्बल मिलता है।
- यदि शनि को छोड़कर पांच या कम से कम चार ग्रह दिग्बल युक्त हों, तो सामान्य कुल में जन्मा जातक भी उच्च पद प्राप्त करता है।
- यदि लग्न और चंद्रमा दोनों वर्गोत्तम हों और लग्न को चंद्रमा को छोड़कर चार ग्रह देखें, तो निम्न कुल का व्यक्ति भी उच्च स्थान प्राप्त करता है।
- यदि लग्नेश वर्गोत्तम होकर केंद्र या त्रिकोण, या नवम में उच्च/स्वगृह में हो, तो जातक राजसवारी करता है, बड़ी और महंगी गाड़ियां खरीदता है।
- चंद्रमा यदि उज्ज्वल हो, और उच्च/स्वगृह में ग्रह की दृष्टि हो, तो भले जातक की वैधता संदिग्ध हो, वह उच्च पद प्राप्त करता है। पूर्ण चंद्रमा यदि केंद्र (लग्न छोड़कर) में हो, तो जातक अत्यंत प्रतिष्ठित और संपन्न होता है।
- यदि शुक्र अश्विनी नक्षत्र में लग्न में हो और तीन ग्रह उसे देखें, तो जातक शत्रु विजेता बनता है।
- यदि शक्तिशाली लग्नेश, द्वितीय भाव में नीच/शत्रुहीन शुक्र के साथ हो, तो जातक उच्च पद प्राप्त करता है।
- मंगल यदि मेष/धनु लग्न में मित्र दृष्टि से युक्त हो, तो भी जातक को उच्च पद की प्राप्ति होती है।
- यदि नवमेश दशम में और दशमेश नवम में हो, तो जातक अत्यंत प्रशंसित होता है यह एक बलवान राजयोग है।
- यदि सूर्य-चंद्रमा धनु में हों, शनि लग्न में हो और मंगल उच्च में हो, तो शत्रु भय से दूर से नमन करते हैं, जातक पराक्रमी होता है।
- यदि चंद्रमा उज्ज्वल होकर सूर्य की राशि के नवांश में हो और शुभ ग्रह केंद्र में हों, तो जातक उच्च पद और वैभव का स्वामी होता है।
- यदि पूर्ण चंद्रमा के साथ तीन ग्रह अपनी नवांश में हों और शुभ दृष्टि प्राप्त हो, तो जातक शत्रुओं को हराने वाला प्रभावशाली व्यक्ति होता है।
- यदि चंद्रमा वर्गोत्तम हो, शक्तिशाली ग्रह से दृष्ट हो और लग्न में पाप ग्रह न हो, तो जातक प्रभावशाली और सुंदर स्वरूप वाला होता है।
- यदि बृहस्पति, बुध, शुक्र या चंद्रमा नवम में उज्ज्वल किरणों सहित मित्र दृष्टि से युक्त हों, तो जातक देवता के समान पूजित होता है।
राजयोगों के विशेष सूत्र: केंद्र, दृष्टि और नवांश के अद्भुत संयोग
- यदि बृहस्पति और चंद्रमा केंद्र में हों, और शुक्र इन्हें देख रहा हो, साथ ही कोई ग्रह नीच का न हो, तो ऐसा व्यक्ति बहुत प्रसिद्ध और प्रभावशाली होता है।
- यदि जन्म के समय चंद्रमा जल राशि (कर्क, वृश्चिक, मीन) में हो और वही नवांश लग्न भी हो, साथ ही चंद्रमा अपनी ही राशि या शुभ नवांश में हो, और केंद्र स्थानों में कोई पाप ग्रह न हो, तो ऐसा व्यक्ति तेजस्वी, समृद्ध और प्रभावशाली होता है।
- यदि शुक्र को बृहस्पति दृष्ट कर रहा हो और व्यक्ति राज परिवार में जन्मा हो, तो वह अत्यंत प्रभावशाली और प्रतिष्ठित होता है।
- यदि बृहस्पति मकर राशि को छोड़कर किसी भी राशि में लग्न में स्थित हो, तो जातक अत्यंत प्रभावशाली और समृद्ध होता है।
- यदि लग्नेश पूर्ण बल से युक्त होकर केंद्र में स्थित हो, तो ऐसा व्यक्ति अत्यंत प्रभावशाली और प्रतिष्ठा प्राप्त करता है।
- यदि पूर्ण चंद्रमा अपनी उच्च राशि में हो, तो जातक अत्यंत उदार, दानशील और प्रशंसनीय होता है।
- यदि चंद्रमा अधिमित्र के नवांश में हो और शुक्र से पूर्ण दृष्ट हो, तो जातक अत्यंत धनवान और प्रभावशाली होता है।
- नीचे दिए गए चार राज योग ज्योतिष शास्त्र में पारंगत लोगों द्वारा घोषित किए गए हैं: –
- यदि लग्नेश, चंद्रमा या लग्न से गिने गए तीसरे, छठे और ग्यारहवें भावों में पाप ग्रह स्थित हों।
- सूर्य और शुक्र एक साथ चतुर्थ भाव में स्थित हों।
- मंगल, शनि और बृहस्पति क्रमशः दशम, एकादश और लग्न में स्थित हों।
- यदि चंद्रमा से विचार करने पर एकादश, नवम या द्वितीय भाव का स्वामी किसी केंद्र में स्थित हो और बृहस्पति द्वितीय, पंचम या एकादश भाव का स्वामी हो, तो ऐसा योग बनता है जो जातक को एक समृद्ध और संपूर्ण साम्राज्य का स्वामी बना सकता है।
समापन
यह लेख इस बात की झलक देता है कि जन्मपत्री में स्थित ग्रहों का संयोजन व्यक्ति को किस प्रकार असाधारण सफलता, नेतृत्व और प्रतिष्ठा की ओर ले जा सकता है। राजयोग केवल भौतिक वैभव का नहीं, बल्कि आत्मबल, प्रभाव और सम्मान का भी प्रतीक है। यदि आपकी कुंडली में ऐसे योग मौजूद हैं, तो यह आवश्यक नहीं कि आप सिंहासन पर बैठें लेकिन जीवन में प्रभावशाली भूमिका निभाना निश्चित है।
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लेखक: आनंद सागर पाठक, Astropatri.com अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए hello@astropatri.com पर संपर्क करें।
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