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अमित जेठवा हत्याकांड मामले में BJP के पूर्व सांसद समेत सात लोगों को बड़ी राहत, गुजरात HC ने किया बरी

गुजरात उच्च न्यायालय (RTI activist Amit Jethwa murder case) ने 2010 में आरटीआई कार्यकर्ता अमित जेठवा की हत्या के मामले में पूर्व भाजपा सांसद दीनू सोलंकी समेत छह अन्य को बरी कर दिया है। जेठवा की 20 जुलाई 2010 को यहां उच्च न्यायालय परिसर के बाहर गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। बता दें कि सीबीआई अदालत ने सोलंकी और छह अन्य को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।

By Agency Edited By: Nidhi Avinash Published: Mon, 06 May 2024 02:49 PM (IST)Updated: Mon, 06 May 2024 02:49 PM (IST)
अमित जेठवा हत्या मामले में पूर्व भाजपा सांसद को बड़ी राहत (Image: ANI)

पीटीआई, अहमदाबाद। RTI Activist Amit Jethwa Murder Case: गुजरात उच्च न्यायालय ने 2010 में आरटीआई कार्यकर्ता अमित जेठवा की हत्या के मामले में पूर्व भाजपा सांसद दीनू सोलंकी और छह अन्य को बरी कर दिया है। 

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न्यायमूर्ति एएस सुपेहिया और न्यायमूर्ति विमल के व्यास की खंडपीठ ने सोलंकी और छह अन्य को आजीवन कारावास की सजा सुनाने वाले सीबीआई अदालत के आदेश को रद्द कर दिया। जेठवा की 20 जुलाई 2010 को यहां उच्च न्यायालय परिसर के बाहर गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। 

2019 में CBI की अदालत ने सुनाई थी सजा

सोलंकी और छह अन्य को हत्या और आपराधिक साजिश के मामले में 2019 में सीबीआई अदालत ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी और 15 लाख रुपये का जुर्माना भरने का आदेश दिया था। उच्च न्यायालय ने बाद में दीनू सोलंकी और उसके भतीजे शिवा सोलंकी की आजीवन कारावास की सजा को निलंबित कर दिया था, जिन्हें भी मामले में दोषी ठहराया गया था।

गुजरात हाईकोर्ट ने अपने फैसले में क्या कहा?

एचसी पीठ ने अपने आदेश में कहा, 'हम दोहराते हैं कि अपराध की शुरुआत से ही पूरी जांच लापरवाही और पूर्वाग्रह से ग्रस्त प्रतीत होती है। अभियोजन पक्ष गवाहों का विश्वास हासिल करने में विफल रहा है। ट्रायल कोर्ट ने दोषी ठहराने की पूर्वकल्पित धारणा पर क़ानून और कानूनी प्राथमिकता से अलग किए गए सबूतों का विश्लेषण किया है।' एचसी ने कहा कि ट्रायल कोर्ट कानून को लिखित रूप में लागू करने के लिए बाध्य है, न कि अपनी प्रवृत्ति के अनुसार।

क्या था मामला?

उच्च न्यायालय ने माना कि लोकतंत्र का अस्तित्व और राष्ट्र की एकता और अखंडता इस अहसास पर निर्भर करती है कि संवैधानिक नैतिकता संवैधानिक वैधता से कम आवश्यक नहीं है। बता दें कि जेठवा सूचना के अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के तहत जानकारी मांगकर कथित तौर पर दीनू सोलंकी से जुड़ी अवैध खनन गतिविधियों को उजागर करने की कोशिश कर रहे थे। 

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