इस पर हैरानी नहीं कि बहुराष्ट्रीय कंपनी नेस्ले के उत्पाद सेरेलेक के बारे में यह सामने आया कि विकसित देशों के मुकाबले भारत में उसमें चीनी की मात्रा कहीं ज्यादा है। चूंकि यह आरोप एक स्विस जांच एजेंसी ने लगाया है, इसलिए उसकी गंभीरता बढ़ जाती है। नेस्ले के इस दावे ने संदेह को और बढ़ा दिया है कि वह भारत में भी अपने इस उत्पाद में चीनी की मात्रा लगातार कम कर रही है।

प्रश्न यह है कि विकसित देशों की तुलना में वह भारत में अपने इस उत्पाद में चीनी की मात्रा ज्यादा रख ही क्यों रही थी और वह भी तब, जब उसे शिशुओं के लिए पोषक आहार बताया जाता है? आखिर ऐसा तो है नहीं कि भारतीय ग्राहकों ने ऐसी कोई मांग की हो कि उन्हें अपने शिशुओं के लिए चीनी की अधिक मात्रा वाला सेरेलेक चाहिए?

ध्यान रहे कि नेस्ले वही कंपनी है, जो अपने एक अन्य उत्पाद मैगी की गुणवत्ता को लेकर भी विवादों के घेरे में आ चुकी है। नेस्ले कोई इकलौती बहुराष्ट्रीय कंपनी नहीं, जिस पर यह आरोप लगा हो कि वह विकसित देशों की तुलना में भारत और इस जैसे अन्य देशों में अपने उत्पादों की गुणवत्ता से समझौता करती है या फिर दोयम दर्जे के उत्पाद खपाती है। इस तरह के आरोप अन्य अनेक बहुराष्ट्रीय कंपनियों पर भी लगते हैं।

यह चिंताजनक है कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों के अनेक खाद्य या पेय पदार्थ वे होते हैं, जिनके बारे में यह प्रचार किया जाता है कि वे सेहत के लिए बेहद लाभकारी या पोषण से भरपूर हैं। बहुराष्ट्रीय कंपनियों के खाद्य और पेय पदार्थों को लेकर यह शिकायत सुनाई ही देती रहती है कि पश्चिमी देशों में उनकी जैसी गुणवत्ता होती है, वैसी भारत में नहीं महसूस होती।

यह शिकायत उन भारतीयों में आम है, जो प्रायः अमेरिका, यूरोप, कनाडा और आस्ट्रेलिया आदि जाते रहते हैं। समस्या केवल खाद्य या पेय पदार्थों, दवाओं अथवा सौंदर्य उत्पादों तक ही सीमित नहीं है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों के अन्य उत्पादों के बारे में भी यही शिकायत रहती है। यह एक तथ्य है कि कई बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने अपने उत्पादों अथवा सेवाओं के लिए विकसित और विकासशील देशों के लिए अलग-अलग मानदंड बना रखे हैं। अब इनमें इंटरनेट मीडिया कंपनियां भी शामिल हो गई हैं।

यह भी किसी से छिपा नहीं कि अनेक चीनी कंपनियां भी पश्चिमी देशों के लिए अलग गुणवत्ता वाले उत्पाद बनाती हैं और एशियाई एवं अफ्रीकी देशों के लिए अलग यानी कम गुणवत्ता वाले। इसका एक कारण इन देशों में गुणवत्ता संबंधी मानकों का सही तरह पालन न किया जाना है। इस समस्या से भारत भी ग्रस्त है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों के दोहरे मानदंडों और उनके दोयम दर्जे के उत्पादों से तभी बचा जा सकता है, जब गुणवत्ता संबंधी नियम-कानूनों पर सख्ती से अमल किया जाएगा।