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World Economy: वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए चुनौतियां बढ़ीं, संयुक्त राष्ट्र ने बताया कितनी रहेगी विकास दर

भारत आर्थिक मोर्चे पर लगातार शानदार प्रदर्शन कर रहा है। IMF और गोल्डमैन सैक्स जैसे प्रतिष्ठित वैश्विक रेटिंग एजेंसियां भारत की जीडीपी ग्रोथ का अनुमान लगातार बढ़ा रही हैं। लेकिन वैश्विक अर्थव्यवस्था की बात करें तो उसमें ज्यादा तेजी की संभावना नजर नहीं आती। आइए जानते हैं कि वैश्विक अर्थव्यवस्था किस रफ्तार से बढ़ेगी और उसके सामने किस तरह की चुनौतियां हैं।

By Jagran News Edited By: Suneel Kumar Published: Fri, 17 May 2024 06:03 PM (IST)Updated: Fri, 17 May 2024 06:03 PM (IST)
इस साल जनवरी से वैश्विक अर्थव्यवस्था में कुछ सुधार दिखा है।

एएनआई, नई दिल्ली। भारत आर्थिक मोर्चे पर लगातार शानदार प्रदर्शन कर रहा है। IMF और गोल्डमैन सैक्स जैसे प्रतिष्ठित वैश्विक रेटिंग एजेंसियां भारत की जीडीपी ग्रोथ का अनुमान लगातार बढ़ा रही हैं। लेकिन, वैश्विक अर्थव्यवस्था की बात करें, तो उसमें ज्यादा तेजी की संभावना नजर नहीं आती।

वर्ल्ड इकोनॉमिक सिचुएशन एंड प्रोस्पेक्ट्स रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ल्ड इकोनॉमी की अनुमानित ग्रोथ 2024 में 2.7 और 2025 में 2.8 फीसदी के आसपास बनी रहने की संभावना है। इस रिपोर्ट को संयुक्त राष्ट्र के डिपार्टमेंट ऑफ इकोनॉमिक एंड सोशल अफेयर्स ने जारी किया है।

सुधर रही है वैश्विक अर्थव्यवस्था

रिपोर्ट के मुताबिक, इस साल जनवरी से वैश्विक अर्थव्यवस्था में कुछ सुधार दिखा है। खासकर, बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में गंभीर गिरावट का ट्रेंड नहीं दिख रहा। साथ ही, वे बेरोजगारी को बढ़ाए बिना महंगाई को नीचे ला रही हैं, जो इकोनॉमी के लिए काफी अच्छा संकेत है।

यही वजह है कि वर्ल्ड इकोनॉमी की ग्रोथ के अनुमान को जनवरी के मुकाबले बढ़ाया गया है। अगर 2024 की बात करें, तो इसमें 0.3 पर्सेंटेज प्वॉइंट और 2025 में 0.1 पर्सेंटेज प्वॉइंट का इजाफा किया गया है।

चुनौतियां भी कम नहीं

हालांकि, संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट ने वर्ल्ड ग्रोथ आउटलुक को सावधानीपूर्वक ऑप्टिमिस्टिक यानी आशावादी कैटेगरी में रखा है। उसका कहना है कि ब्याज दरों में काफी लंबे वक्त से बदलाव नहीं हुआ है और वे ऊंचे स्तर पर बनी हुई हैं। कर्ज से जुड़ी चुनौतियां भी बढ़ रही हैं। भूराजनीतिक तनाव अलग माहौल खराब कर रहा है। जयवायु परिवर्तन से जुड़ा संकट भी बढ़ रहा है।

संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि ये समस्याएं दशकों में हासिल किए गए विकास को मिट्टी में मिला सकती हैं। उसने कहा कि यह समस्या खासकर कम विकसित मुल्कों और छोटे द्वीपीय देशों के लए है, जो अभी विकासशील कैटेगरी में हैं।

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