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दुनिया में बेतहाशा बढ़ते कर्ज से भारत भी सतर्क, जी-20 बैठक में समाधान निकालने पर होगी चर्चा

ब्राजील में होने वाली इन बैठकों में भारत भी हिस्सा लेगा और समस्या के समाधान के लिए मेजबान देश ब्राजील का पूरा सहयोग करेगा। भारत इस संदर्भ में आइएमएफ-विश्व बैंक की तरफ से गरीब व मध्यम आय वाले देशों को राहत देने के लिए तैयार किये जा रहे नये प्रस्ताव का भी समर्थन करेगा। आइए जानते हैं पूरी खबर के बारे में।

By Jagran News Edited By: Yogesh Singh Published: Sun, 26 May 2024 07:35 PM (IST)Updated: Sun, 26 May 2024 07:35 PM (IST)
कुछ देशों की स्थिति खराब हुई तो उससे वैश्विक इकॉनमी पर होगा असर

जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। भारत की अगुवाई में जी-20 शिखर सम्मेलन के समाप्त छह महीने हो गये। इस शिखर सम्मेलन में सदस्य देशों ने दुनिया पर बढ़ते कर्ज की समस्या के समाधान को लेकर जो सहमति बनाई थी उस बारे में छह महीने से ज्यादा गुजर जाने के बावजूद कोई कदम नहीं उठाया गया है।

ऐसे में अब जून और जुलाई में ब्राजील में जी-20 के सदस्य देशों के वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंक के गर्वनरों की बैठक पर नजर है ताकि गरीब व विकासशील देशों पर बकाये कर्ज की वसूली को लेकर एक सर्वमान्य सहमति बन सके।

जी-20 बैठक में समाधान निकालने पर होगी चर्चा

ब्राजील में होने वाली इन बैठकों में भारत भी हिस्सा लेगा और समस्या के समाधान के लिए मेजबान देश ब्राजील का पूरा सहयोग करेगा। भारत इस संदर्भ में आइएमएफ-विश्व बैंक की तरफ से गरीब व मध्यम आय वाले देशों को राहत देने के लिए तैयार किये जा रहे नये प्रस्ताव का भी समर्थन करेगा।

भारत दुनिया में कई देशों पर बढ़ते कर्ज से पैदा होने वाली समस्या का शीघ्रता से समाधान निकालने की मुहिम के पक्ष में है। वजह यह है कि भारत को इस बात की चिंता है कि अगर यह समस्या ज्यादा विकराल होती है तो इसका नकारात्मक असर उनकी आर्थिक विकास पर भी पड़ेगा।

सूत्रों ने बताया कि जी-20 की 10 से 12 जून, 2024 को अंतरराष्ट्रीय वित्त व्यवस्था पर गठित कार्य दल की बैठक है। इसके बाद 22-23 जुलाई को जी-20 के केंद्रीय बैंकों के डिप्टी गवर्नरों की बैठक है। इसके बाद 25 जुलाई को मंत्रिस्तरीय बैठक है और इसके साथ ही केंद्रीय बैंक के गवर्नरों की बैठक होगी।

बहुत संभव है कि इस बैठक में भारत के नये वित्त मंत्री हिस्सा लेंगे। भारत में अभी आम चुनाव चल रहे हैं, जिसका परिणाम चार जून, 2024 को निकलेगा। जुलाई में होने वाली मंत्रिस्तरीय बैठक में कई ऐसे मुद्दे एजेंडे में है जिनको लेकर पिछले वर्ष भारत की अगुवाई में हुई बैठक में विमर्श किया गया था लेकिन अंतिम सहमति नहीं बन पाई थी। जैसे आइएमएफ की तरफ से कर्ज वितरण के नई कोटा व्यवस्था पर फैसला किया जाना है।

वैश्विक इकोनमी के लिए संवेदनशील देशों पर कर्ज के बोझ को कम करने या इन देशों को कर्ज चुकाने के लिए ज्यादा सहूलियत देने का एजेंडा भी इसमें शामिल है। इस बैठक से ठीक पहले जून, 2024 में ब्राजील की अगुवाई में इसी मुद्दे पर पेरिस क्लब (ऋण देने वाले देशों का समूह) की भी बैठक होने वाली है।

भारत वैश्विक स्तर पर बढ़ते कर्ज से कितना बेचैन है इसका पता पिछले हफ्ते आरबीआई की तरफ से जारी रिपोर्ट से पता चलता है। इसमें कहा गया है कि दुनिया पर 2,35,000 अरब डॉलर का कर्ज हो चुका है जो सभी देशों के कुल जीडीपी का 238 फीसद है। रिपोर्ट में इस बात पर चिंता जताई गई है कि कई देशों में चुनाव होने की वजह से कर्ज चुकाने पर खास ध्यान नहीं दिया जा रहा है जिसकी वजह से यह समस्या आगामी वर्षों में और विकराल हो सकती है।

बाहरी कर्ज के ब्याज के तौर पर जो राशि अभी सभी देश चुका रहे हैं वह 10 वर्ष पहले के मुकाबले पांच गुनी ज्यादा हो गई है। कई देश शिक्षा व स्वास्थ्य क्षेत्र पर जो राशि खर्च कर रहे हैं उससे काफी ज्यादा राशि कर्ज चुकाने में कर रहे हैं।

इससे वैश्विक अनिश्चतता बढ़ सकती है और कोविड के बाद वैश्विक इकोनोमी में सुधार का जो माहौल बना है उस पर भी पानी फिर सकता है। इससे तेज आर्थिक विकास करके वर्ष 2047 तक विकसित देशों की श्रेणी में शामिल होने की भारत की कोशिशों को झटका लग सकता है। ये कुछ वजहें हैं जिससे भारत भी कर्ज की बढ़ती वैश्विक समस्या का शीघ्र समाधान निकालने पर जोर दे रहा है।

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