पुल न होने से काला पानी की सजा भुगत रहे यहां के ग्रामीण
टिहरी जिले में प्रतापनगर विधानसभा क्षेत्र में बहुचर्चित डोबरा-चांटी पुल का निर्माण दस साल में भी पूरा नहीं हो सका है। इससे प्रतापनगर क्षेत्र की करीब डेढ़ लाख की आबादी प्रभावित है।
नई टिहरी, [अनुराग उनियाल]: 10 साल और ये हाल, पुल से गुजरने की हसरत कब पूरी होगी पता नहीं। ये बात अलग है कि हर चुनाव में सियासतदां पुल के शीघ्र निर्माण का वादा करते हैं, लेकिन यह इंतजार कब खत्म होगा पता नहीं।
टिहरी जिले में प्रतापनगर विधानसभा क्षेत्र में बहुचर्चित डोबरा-चांटी पुल के मामले में तस्वीर कुछ ऐसी ही है। 2006 से निर्माणाधीन यह पुल अब तक नहीं बन पाया है। परिणामस्वरूप क्षेत्र की डेढ़ लाख से अधिक की आबादी 'काला पानी' की सजा भुगत रही है। जाहिर है, इस चुनाव में सियासतदां और सियासी दलों को इस मामले में जनता के तीखे सवालों का सामना तो करना ही पड़ेगा।
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यह है पुल की कहानी
टिहरी झील बनने के बाद प्रतापनगर ब्लॉक और जिला मुख्यालय के बीच अथाह पानी की दीवार खड़ी हो गई। 42 वर्ग किमी में फैली झील के चलते प्रतापनगर को जोडऩे वाले रास्ते और सड़कें झील में जलमग्न हो गई। इसे देखते हुए जिला मुख्यालय से प्रतापनगर को जोड़ने के लिए शुरू हुई डोबरा-चांटी पुल की कसरत।
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2006 में लोनिवि ने इसका निर्माण प्रांरभ किया तो लोगों को उम्मीद जगी कि अब आवाजाही की दिक्कत दूर हो जाएगी। लेकिन, इन उम्मीदों को तब झटका लगा, आइआइटी रुड़की से तैयार कराया गया पुल डिजाइन फेल हो गया।
फिर लोनिवि ने आइआइटी खडग़पुर से डिजाइन बनवाया, मगर यह भी फेल हो गया। नतीजा ये रहा कि 2010 में पुल का काम बंद कर दिया गया। हालांकि, पुल के लिए सिर्फ दो खंभे खड़े करने में ही 1.32 अरब की भारी-भरकम राशि खर्च कर दी गई।
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2013 में दोबारा से पुल निर्माण की कवायद हुई और 2014 में सरकार ने पुल निर्माण और डिजायन के लिए अंतरराष्ट्रीय निविदा जारी की। कोरिया की योसीन कंपनी ने पुल का डिजाइन तैयार किया। जनवरी 2016 से पुल का निर्माण कार्य शुरु हुआ। यह कंपनी चीन के इंजीनियरों के साथ मिलकर पुल का काम करा रही है। पुल पर 150 करोड़ रुपये की लागत आएगी, लेकिन पुल कब तक बनकर अस्तित्व में आएगा पता नहीं।
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जनजीवन हो रहा प्रभावित
डोबरा-चांटी पुल न बनने से प्रतापनगर ब्लॉक में जनजीवन बुरी तरह प्रभावित हुआ है। प्रतापनगर जाने के लिए पीपलडाली पुल से लगभग 80 किमी की दूरी तय कर जाना पड़ता है। इस पुल के बनने पर दो घंटे में नई टिहरी से प्रतापनगर पहुंचा जा सकता था।
परिणामस्वरूप लोगों को रोजमर्रा के सामान की जरूरत के लिए तो दिक्कतें झेलनी ही पड़ रही, बीमार और गर्भवती महिलाओं को जिला मुख्यालय नई टिहरी लाने में खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
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ठंडे बस्ते में पुल की जांच
डोबरा-चांटी पुल के पहले चरण के निर्माण में अनियमितताओं की बात भी सामने आई। लोनिवि ने डिजाइन बनने से पहले ही करीब 80 करोड़ का सामान खरीद लिया गया, जो बर्बाद हो रहा है। सरकार ने 2015 में गढ़वाल कमिश्नर को प्रकरण की जांच के आदेश दिए। जांच में लोनिवि अफसरों की गलती की बात सामने आई। लेकिन, कार्रवाई अब तक नहीं हुई और जांच को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।
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