ग्लेशियर समिति के 10 साल, बस एक रिपोर्ट तैयार
जून 2006 में तैयार ग्लेशियर समिति को 10 साल पूरे हो गए हैं और अभी तक यह समिति महज एक रिपोर्ट ही तैयार कर पाई है।
देहरादून, [सुमन सेमवाल]: वर्ष 2013 में चौराबाड़ी ग्लेशियर से निकली केदारघाटी की तबाही को उत्तराखंड कभी भुला नहीं पाएगा। केदारनाथ आपदा के निशां लोगों के मन-मस्तिष्क पर ताउम्र अंकित रहेंगे। शायद इस आपदा को टाला या इसको कम किया जा सकता था। यदि जून 2006 में बनी ग्लेशियर संबंधी विशेषज्ञ समिति की सिफारिशों पर अमल कर लिया जाता।
आपदा के लिहाज से बेहद संवेदनशील हिमालयी राज्य उत्तराखंड में ऐसी आपदा की पुनरावृत्ति दोबारा और कहीं पर भी हो सकती है। अफसोस कि ठोकर खाकर भी सीख न लेने वाला हमारा सिस्टम केदारनाथ आपदा से भी सीख लेता नजर नहीं आ रहा। जून 2006 में तैयार ग्लेशियर समिति को 10 साल पूरे हो गए हैं और अभी तक यह समिति महज एक रिपोर्ट ही तैयार कर पाई है।
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तत्कालीन प्रमुख सचिव आपदा प्रबंधन एनएस नपलच्याल के निर्देश में बनाई गई 12 सदस्यीय समिति के गठन का एक अहम मकसद ग्लेशियरों से होने वाली क्षति को रोकना भी था। चौराबाड़ी ग्लेशियर की झील में हुए ग्लेशियर लेक आउटब्रस्ट (ग्लेशियर झील का फट जाना) जैसी घटनाओं के प्रति सचेत रहने की हिदायत समिति की पहली रिपोर्ट में दी गई है।
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यह रिपोर्ट समिति के गठन के कुछ समय बाद ही जारी कर दी गई थी। रिपोर्ट में यह भी बताया गया था कि 1439 ग्लेशियर वाले उत्तराखंड में 127 ग्लेशियर झीलें हैं। ये झीलें तब खतरनाक रूप ले लेती हैं, जब संबंधित ग्लेशियर से बहाव तेज हो जाए या एवलॉन्च आ जाए। रिपोर्ट बताती है कि उत्तराखंड में इस तरह की आशंका हर समय बनी रहती है।
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आपदा न्यूनीकरण व प्रबंधन केंद्र के अधिशासी निदेशक डॉ. पीयूष रौतेला के मुताबिक यह सच है कि समिति गठन के कुछ समय के बाद से ही निष्क्रिय पड़ी है। हालांकि समिति की सिफारिश के आधार पर गंगोत्री में पर्यटकों की आवाजाही को नियंत्रित करने का निर्णय लिया गया था।
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इसलिए असफल हुई समिति
-राज्य सरकार व वैज्ञानिक संस्थानों के बीच तालमेल न होना।
-विशेषज्ञों के विभिन्न शोधों पर राज्य सरकार का संज्ञान न लेना।
-समिति की पहली रिपोर्ट पर भी आवश्यक कार्रवाई न किया जाना।
विशेषज्ञ समिति, जो निष्क्रिय पड़ी
अध्यक्ष: निदेशक, वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान
सदस्य सचिव: अधिशासी निदेशक आपदा न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केंद्र
सदस्य: निदेशक भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण संस्थान या उनके नामित प्रतिनिधि
सदस्य: निदेशक जीबी पंत हिमालयन पर्यावरण एवं विकास संस्थान या उनके नामित प्रतिनिधि
सदस्य: निदेशक आइआइटी रुड़की या उनके नामित प्रतिनिधि
सदस्य: वन अनुसंधान संस्थान या उनके नामित प्रतिनिधि
सदस्य: निदेशक नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइड्रोलॉजी या उनके नामित प्रतिनिधि
सदस्य: निदेशक (अब महानिदेशक) उत्तराखंड विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद या उनके नामित प्रतिनिधि
सदस्य: निदेशक आइसीमोड नेपाल या उनके नामित प्रतिनिधि
सदस्य: निदेशक भारतीय सुदूर संवेदन संस्थान या उनके नामित प्रतिनिधि
सदस्य: पुलिस महानिरीक्षक आइटीबीपी या उनके नामित प्रतिनिधि, जो कमांडेंट से निम्न न हो
सदस्य: निदेशक केंद्रीय मृदा एवं जल संरक्षण अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान या उनके नामित प्रतिनिधि
सदस्य: प्रधानाचार्य नेहरू पर्वतारोहण संस्थान
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