निकाय चुनावः उत्तराखंड में कांग्रेस के लिए धड़ेबंदी साधने की चुनौती
आगामी निकाय चुनाव के मद्देनजर पार्टी दिग्गजों और क्षत्रपों ने चहेतों को टिकट दिलाने को दबाव की सियासत तेज कर दी है। उम्रदराज नेताओं को उभरते युवा नेताओं से भी चुनौती मिल रही है।
देहरादून, [राज्य ब्यूरो]: कांग्रेस में राहुल राज आने के बाद प्रदेश में पहली बार होने जा रहे नगर निकाय चुनाव में प्रदेश संगठन को धड़ेबंदी के नए रूप से भी दो-चार होना पड़ रहा है। प्रदेश में पार्टी दिग्गजों और क्षत्रपों ने निकाय चुनाव में अपने चहेतों को टिकट दिलाने को दबाव की सियासत तेज कर दी है, लेकिन इस बार इन उम्रदराज नेताओं को उभरते युवा नेताओं से भी चुनौती मिल रही है।
राष्ट्रीय स्तर पर युवा हाथों में पार्टी की बागडोर आने के बाद नेताओं की इस ये नई पौध की हसरतें जोर मार रही हैं। ऐसे में पार्टी निकायों में अधिकतर युवाओं पर दांव आजमा सकती है।
प्रदेश में विधानसभा चुनाव में बुरी तरह शिकस्त झेल चुकी कांग्रेस के सामने नगर निकाय चुनाव में दमदार वापसी की चुनौती है। इसे देखते हुए पार्टी भले ही फूंक-फूंक कर कदम आगे बढ़ा रही हो, लेकिन प्रदेश में क्षत्रपों के बीच खींचतान और धड़ेबंदी के रह-रहकर सतह पर आने से यह संदेह भी बढ़ रहा है कि पार्टी पूरी ताकत से भाजपा से मिल रही चुनौती का मुकाबला कर सकती है या नहीं।
वैसे भी नगर निकाय चुनाव में भाजपा को जिस तरह पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश में कामयाबी मिली है, उससे पार्टी का उत्साह और बढ़ा है। इस वजह से कांग्रेस के भीतर बेचैनी साफ दिखाई दे रही है, लेकिन पार्टी रणनीतिकारों की असली चिंता क्षत्रपों की धड़ेबंदी को लेकर है।
दिग्गजों की दबाव की रणनीति
निकाय चुनाव की सुगबुगाहट के साथ ही राज्य की सियासत पर मजबूत पकड़ रखने वाले नेताओं ने भी चहेतों का टिकट दिलाने के लिए दबाव की रणनीति पर काम शुरू कर दिया है। इसके तहत देहरादून, हरिद्वार और नैनीताल में दिग्गजों की ओर से अलग-अलग बैठकें और कार्यक्रम आयोजित किए जा चुके हैं।
वहीं एक दूसरे के कार्यक्रमों से दिग्गजों ने दूरी बनाए रखी है। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत जहां प्रदेश संगठन के कार्यक्रमों में कम शिरकत करते दिखे हैं। नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश और पूर्व मुख्यमंत्री रावत के बीच हाल के दिनों में दूरियां कम होने के बजाए और बढ़ी हैं।
विधायक-सांसद बांधे हैं टकटकी
निकाय चुनाव के लिए सज रही बिसात में इस बार विधायकों, सांसदों के साथ ही पूर्व विधायकों और पूर्व सांसदों भी अपनी पुख्ता हिस्सेदारी चाहते हैं। आने वाले लोकसभा चुनाव में दिग्गजों के टिकट पर दावे में निकाय चुनाव में प्रदर्शन को बड़ा आधार बनाया जा सकता है।
हालांकि, अनुभवी और उम्रदराज नेताओं को इस बार पार्टी के भीतर अलहदा तेवरों को लेकर भी सचेत हैं। राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद कई सियासी धुरंधरों के माथे पर बल देखे जा रहे हैं तो इसकी वजह भी है। पार्टी के भीतर तेजी से आगे बढऩे का इंतजार कर रहे युवा नेता इस बार पारंपरिक रुख में बदलाव की अपेक्षा संजोए हुए हैं।
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