दुर्लभ पद्म के पौधे भी विलुप्त, वन मकहमा लाचार
उत्तराखंड में विलुप्ति के कगार पर जा पहुंचे पद्म वृक्ष को लेकर वन विभाग भी लापरवाह बना हुआ है। वन विभाग ने इसके पौध तो रोपे, लेकिन मगर, एक भी पौधा धरत ...और पढ़ें

गोपेश्वर, [जेएनएन]: उत्तराखंड में विलुप्ति के कगार पर जा पहुंचे पद्म वृक्ष को लेकर वन विभाग भी लापरवाह बना हुआ है। पद्म वृक्ष के संरक्षण के लिए नंदा देवी राष्ट्रीय पार्क प्रशासन ने वर्ष 2012 में कैट प्लान के तहत जोशीमठ क्षेत्र में 10 लाख रुपये खर्च कर एक हजार पौधे रोपने का दावा किया। मगर, एक भी पौधा धरती पर नजर नहीं आया। हैरत देखिए कि अब विभाग पौधों का संरक्षण न होने के पीछे धनराशि की कमी का हवाला दे रहा है।
वन विभाग का दावा है कि उसने सीमांत चमोली जिले के अंतर्गत जोशीमठ से लेकर ढाक तक दस किमी क्षेत्र में सड़क के किनारे पद्म के पौधों का रोपण किया था। असल में जब पौधरोपण होना था, तब पौधों की सुरक्षा के लिए बाहर से डबल ट्री गार्ड भी लगाए जाने थे।
बताते हैं कि तब वन विभाग ने पौधे तो रोपे, मगर डबल की जगह सिंगल ट्री गार्ड ही लगाए। जो पौधे रोपे गए थे, उनमें से कुछ को तो मवेशी खा गए और कुछ राहगीरों ने तोड़ डाले।
अब इस लापरवाही को छिपाने के लिए नंदा देवी राष्ट्रीय पार्क प्रशासन धनराशि की कमी का हवाला दे रहा है। पार्क के उप प्रभागीय वनाधिकारी सर्वेश कुमार दुबे का कहना है कि पौधरोपण के वक्त वन विभाग की सोच थी कि पहले सिंगल और पौधों के बड़े होने पर डबल ट्री गार्ड लगाए जाएं। लेकिन, डबल ट्री गार्ड के लिए अतिरिक्त धनराशि की जरूरत थी, जो उस समय नहीं मिल पाई।
गुणों की खान है पद्म वृक्ष
पद्म को देव वृक्ष माना गया है। इसके फूल, फल व पत्तों के अलावा छाल भी गुणकारी मानी जाती है। छाल से रंग व दवा का निर्माण होता है। पौष के महीने पर्वतीय अंचल में जब पेड़ों की पत्तियां गिरने लगती हैं और प्रकृति में फूलों की कमी हो जाती है, उस दौरान पद्म वृक्ष हरियाली से लकदक रहता है।
पौष के प्रत्येक रविवार को सूर्य की उपासना इसी पवित्र पेड़ की पत्तियां चढ़ाकर की जाती है। धाॢमक आयोजनों में वाद्ययंत्रों को भी पद्म के पेड़ की डंठल से से ही बजाया जाता है।
शहद का स्रोत
मधुमक्खी पालन के लिए भी पद्म वृक्ष बेहद उपयोगी है। मधुमक्खी इसके फूल से पराग लेकर शहद बनाती है। शीतकाल में पद्म का पेड़ ही मधुमक्खी का मुख्य आसरा है। यही कारण है कि इसके पराग से बने शहद को सर्वाधिक गुणकारी माना जाता है।
चंदन जैसा पवित्र
रोजेशी वंश के इस पेड़ का वानस्पतिक नाम प्रुन्नस सीरासोइडिस है। आर्द्रता वाले क्षेत्रों में होने के कारण इसकी लकड़ी भी चंदन के समान पवित्र मानी जाती है। मवेशियों के लिए इसका चारा काफी पौष्टिक माना जाता है। इसकी पत्तियों को मवेशी बेहद चाव से खाते हैं।

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