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कुमाऊं में मिशन मशरूम की पहली यूनिट तैयार

चार वर्ष के गहन शोध तथा गढ़वाल मंडल में सफल प्रयोग के बाद ‘मिशन मशरूम’ की कुमाऊं में भी नींव रख ली गई है।

By sunil negiEdited By: Published: Wed, 28 Sep 2016 11:49 AM (IST)Updated: Thu, 29 Sep 2016 04:00 AM (IST)
कुमाऊं में मिशन मशरूम की पहली यूनिट तैयार

रानीखेत, [दीप सिंह बोरा]: चार वर्ष के गहन शोध तथा गढ़वाल मंडल में सफल प्रयोग के बाद ‘मिशन मशरूम’ की कुमाऊं में भी नींव रख ली गई है। खासतौर पर पर्वतीय किसानों की आर्थिक उन्नति तथा पलायन से खाली हो चुके गांवों को दोबारा आबाद करने के उद्देश्य से शुरू इस मुहिम को मुकाम देने के लिए उत्तराखंड की ब्रांड एंबेसडर एवं मशरूम लेडी दिव्या रावत ने सुदूर चौगांव में पहली मशरूम उत्पादन यूनिट तैयार की। अहम पहलू कि कोरियन पद्धति वाली कम लागत व मेहनत से अधिक उत्पादन वाली हैंगिंग विधि से साल भर तक मशरूम की पैदावार कर अधिक आमदनी की जा सकेगी।

ताड़ीखेत ब्लॉक के सुदूर सिलोर पट्टी के चौगांव में कुमाऊं की पहली मशरूम उत्पादन यूनिट स्थापित कर ली गई है। पहले चरण में उत्तराखंड में मिशन मशरूम की ब्रांड एंबेसडर दिव्या रावत ने प्राकृतिक रूप से उगाई जाने वाले मशरूम की तीन किस्मों की पैदावार के लिये ग्रामीणों को प्रशिक्षण दिया। वह चार वर्षो के गहन शोध व अनुसंधान के बाद गढ़वाल मंडल के पौड़ी, रुद्रप्रयाग, चमोली, टिहरी व देहरादून के पर्वतीय गांव थानों आदि में सफल प्रयोग के बाद 20 से ज्यादा उत्पादन यूनिट खोल चुकी हैं।

चौगांव निवासी मनरेगा प्रकोष्ठ के जिला संयोजक चंदन सिंह बिष्ट के यहां यूनिट स्थापित करने के साथ ही उन्होंने कुमाऊं मंडल का प्रभारी नियुक्त किया है। रिवर्स माइग्रेशन की थीम को आगे बढ़ा मशरुम उत्पादन के जरिये पर्वतीय लोगों की आमदनी बढ़ाने को मुहिम चलाने के कारण ही मुख्यमंत्री ने दिव्या को ब्रांड एंबेसडर नियुक्त किया है। एबेसडर बनने के बाद उसने गांव में अलख जगानी शुरू कर दी है।

ताड़ीखेत बनेगा रोल मॉडल
चौगांव में स्थापित यूनिट में बारह मास मशरूम उत्पादन किया जा सकेगा। गर्मी में 30 से 40 डिग्री तापमान में मिल्की मशरूम, 20 से 25 डिग्री पर ऑइस्टर, जबकि सर्दी में 16 से 20 डिग्री पर बटन मशरूम की पैदावार की जाएगी। ताड़ीखेत ब्लॉक कुमाऊं में मशरूम उत्पादन को बढ़ावा देने में बड़ी भूमिका निभाएगा।

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विटामिन डी का भंडार है ऑइस्टर
हालांकि दिव्या रावत औषधीय गुणों से भरपूर ऑइस्टर मशरूम के उत्पादन पर ज्यादा जोर दे रही हैं। इस प्रजाति में विटामिटन डी का भंडार होता है। प्राकृतिक रूप से सुखाने के बाद विटामिन डी की प्रचुरता बढ़ जाती है। इसका चूर्ण मशरूम सूप में इस्तेमाल कर जोड़ दर्द, गठिया व हड्डी की कमजोरी से पीड़ित लोगों को दिया जाता है। इससे रोगी का हर संभव लाभ मिलता है।

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मील का पत्थर है मिशन मशरूम
मशरूम इन उत्तराखंड की ब्रांड एंबेसडर मिशन दिव्या रावत ने बताया कि मिशन मशरूम मध्यम व आर्थिक रूप से कमजोर पर्वतीय किसानों की आर्थिक उन्नति के लिये मील का पत्थर है। लोहे व एल्यूमिनियम की रैक में ही एक से डेढ़ लाख का खर्च आता है। मशीनों का खर्च अलग। हमारी प्राकृतिक विधि में बांस की रैक में 10-15 हजार, जबकि हैंगिंग पद्धति (उल्टी छत की बल्लियों से रस्सियां बांध कर) में मात्र दो से तीन हजार का खर्चा है। यह आजीविका का ठोस जरिया है।

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