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रहस्य का किला है हिमाचल का ये गांव, लोग मानते है खुद को सिंकदर

यहां के लोग खुद को सिकन्दर के सैनिकों का वंशज मानते हैं। भारतीय कानून को मानने के बजाये इस गांव का अपना संविधान है, जिसके तहत ही ये लोग अपने फैसले लेते हैं।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Sat, 08 Oct 2016 11:24 AM (IST)Updated: Sat, 08 Oct 2016 11:34 AM (IST)
रहस्य का किला है हिमाचल का ये गांव, लोग मानते है खुद को सिंकदर
रहस्य का किला है हिमाचल का ये गांव, लोग मानते है खुद को सिंकदर

चारों ओर से ऊंची पहाड़ियों से घिरा और मलाणा नदी के मुहाने पर बसा मलाणा हिमाचल प्रदेश के कुल्लू ज़िले में समुद्र तल से 8640 फीट की ऊंचाई पर स्थित है।यहां के लोग खुद को सिकन्दर के सैनिकों का वंशज मानते हैं। भारतीय कानून को मानने के बजाये इस गांव का अपना संविधान है, जिसके तहत ही ये लोग अपने फैसले लेते हैं।इस गांव की एक खासियत यह भी है कि ये भारत का एकलौता ऐसा गांव है, जहां मुग़ल बादशाह अकबर की पूजा की जाती है, जिसके बारे में प्रचलित है कि अकबर के अभिमान को तोड़ने के लिए एक बार जमलू देवता ने दिल्ली को बर्फ से ढक दिया था। इसके बाद अकबर ने खुद यहां आकर जमलू देवता से माफी मांगी थी।
इस गांव की अपनी अलग संसद है, जिसके दो सदन हैं पहली ज्येष्ठांग (ऊपरी सदन) और कनिष्ठांग (निचला सदन)। ज्येष्ठांग में कुल 11 सदस्य हैं। जिनमें तीन सदस्य कारदार, गुर व पुजारी स्थायी सदस्य होते हैं। शेष आठ सदस्यों को गांववासी मतदान द्वारा चुनते हैं। इसी तरह कनिष्ठांग सदन में गांव के प्रत्येक घर से एक सदस्य को प्रतिनिधित्व दिया जाता है। यह सदस्य घर का सबसे बुजुर्ग व्यक्ति होता है। अगर ज्येष्ठांग सदन के किसी सदस्य की मृत्यु हो जाये तो पूरे ज्येष्ठांग सदन को पुनर्गठित किया जाता है।

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भारत के अन्य राज्यों की तरह छुआछूत यहां कुछ ज़्यादा ही देखने को मिलती है। दुकानों में बाहरी लोगों को न तो प्रवेश दिया जाता है, साथ ही उनका किसी भी चीज़ का छूना वर्जित है। सामान खरीदने के लिए भी लोगों को पैसे बाहर रखने पड़ते हैं और बाहर ही उनका सामान रखवा दिया जाता है। यहां के लोग अपने कल्चर को लेकर काफी सचेत रहते हैं और बाहरी लोगों पर हमेशा अपनी निगाहें गड़ाए रखते हैं। किसी भी तरह की लापरवाही पर यहां के लोग 1000 रूपये जुर्माना लगाते हैं। सैलानियों के लिए आकर्षण का केंद्र होने के बावजूद इस गांव में उनके रहने के लिए कोई जगह नहीं है। पर्यटकों को यहां गांव की सीमा से बाहर टेंट में ही रुकना पड़ता है।

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